शालिनी श्रीनेत
अपने घर स्त्रियों को भूलकर स्त्री विमर्श करने वाले पुरुषों से ये सवाल है। ये कैसा स्त्री विमर्श है कि अपने घर की स्त्री सुबह से उठ रात ग्यारह बजे तक तुम्हारी खिदमत में लगी है। बच्चों के खाने लेकर पोतड़े धोने-सुखाने तक जिम्मेदारी भी उसी की होती है। वो मशीन नहीं तुम्हारी माँ, तुम्हारी बहन, तुम्हारी बीवी होती है। तुम कहीं से आते हो तो स्त्री पानी का लोटा गिलास और साथ में कुछ खाने को भी लेकर तुम्हारे सामने उपस्थित रहती है। स्त्री कहीं से आती है तो तुम समय देखते हो और तमाम सवालो के बौछार करने लगते हो।
आजकल तो तुम्हारी फितरत और बदल गयी है। अपने फेसबुक पर, तुम्हारा पेज है तो पेज अपने पेज को हाईलाइट करने के लिए लाइक, कमेंट के लिए कुछ भी लिखने और दिखाने लगते हो। ये भी नहीं समझते कि तुम्हारे घर की स्त्री वो देखना पसन्द करेगी भी या नहीं। खैर तुम मर्दो की फितरत ही यही है। हमेशा से स्त्री की उपेक्षा की है, जिसके साथ स्त्री विमर्श करते हो, वो कामर्शियल मामला है। अपने घर की स्त्री फुल स्लीव का कुर्ता पहने पर बाहर की स्त्री छोटे कपड़े में ही ज्यादा अच्छी दिखती है। घर की स्त्री खाना बनाती, घर और बच्चा सम्भालती हुई और दूसरी स्त्री तुम्हारे साथ माल या हिल स्टेशन घूमती हुई और सिनेमा देखती हुई अच्छी लगती है। ऐसा क्यों? घर की स्त्री भी तो उसी हाड़-मांस से बनी है।
हमारे ऐसे सवाल उठाने पर लोगों ऐतराज होता है। पर मेरा मानना है कि समाज की इकाई हमारा घर-परिवार होता है ये विमर्श घर की स्त्री पर क्यों नहीं। घर से शुरु करो। पूछो घर की स्त्री से तुम्हें क्या करना, क्या खाना, क्या पहनना, कहां और कैसे घूमना पसन्द है? घर से प्रैक्टिकल करके निकलो विमर्श करने तो विमर्श और धारदार होगा। यहां से शुरू करो कि घर की बहन, बेटी, बीवी घर से बाहर जा रही है। चाहें वो जिस वजह से जा रही हो। पढ़ने, नौकरी करने या तुम्हारी तरह ये कहकर जाये कि किसी काम से जा रही हूं, अभी आती हूं और देर से आने पर तुम उसकी परवाह से परेशान रहो कि बहुत देर हो गयी भूखी-प्यासी होगी न कि उसके आने पर सवालों की बौछार करो।
कहीं भी जाना हो तो तुम अपने घर की स्त्री के साथ जाते हो। पुरुष के साथ क्यों नहीं जाते सोचना जरा कभी अकेले में बैठकर। यहां तक कि स्त्री अपने मायके जाती है तो तुम उसकी पूंछ बनकर जाते हो और चाहते हो कि वो तुम्हारे साथ ही वापस आ जाय। तुम भी वहीं जम जाते हों ससुराल में, बीवी के सर वहां भी कि कहीं मेरे चले जाने पर अपने पुराने दोस्तों से मिलने न चली जाए। हे पुरुष, पहले अपनी मानसिकता बदलो फिर आना स्त्री विमर्श करने। तुम खुद चटकारे लगाने वाली चीजें देखते और दूसरे मर्दों के लिए भी परोस रहे हो या परोसते हो। जरा अपने घर की स्त्री से पूछो उसे पसन्द है क्या तुम्हारा स्त्री विमर्श। तुम्हारे स्त्री विमर्श से किसी स्त्री को उलटी आने लगे या जी मिचलाने लगे। किसी सी स्त्री को अपने बच्चों से कहना पड़े कि बेटा अभी मेरे पास मत बैठो मैं जो देख रही हूं तुम नहीं देख सकते। दूसरे बच्चे के उस स्त्री विमर्श के एक शब्द की मींनिंग पूछने पर मां जवाब न दे सके और कहना पड़े कि बेटा इसका मीनिंग मैं भी नहीं जानती, पता नहीं क्या बकवास कर रहे हैं।
हे पुरुष, अगर स्वस्थ विमर्श नहीं कर सकते तो छोड़ दो हम काफी हैं स्त्री विमर्श के लिए। अगर तुम्हें नहीं समझ है स्त्री की तो छोड़ दो स्त्री विमर्श। वैसे हर विमर्श तो तुम्ही करते हो। एक विमर्श छोड़ भी दोगे तो क्या बिगड़ जायेगा। कहते हैं न गोजर का एक टांग टूट भी जाय तो क्या अनेक और पैर भी तो है… कितने बंधनों के लानत लेकर घूमोगे। छोड़ दो न थोड़ा स्वतंत्र स्त्री को। हे पुरुष, हम तुम्हारे आभारी रहेंगे। मत परोसो ऐसी चीजे जो हम अपने परिवार के साथ नहीं दे सकते। जिसको देखते हुए शर्म आती है। अगर बहुत तीव्र इच्छा हो रही है तो करा लो अपने घर में ऐसा विमर्श फिर देखो कितने लात-मुक्के खाते हो। पहले स्त्री को समझो और पूरे मनुष्य बन जाओ फिर स्वागत है तुम्हारा स्त्री विमर्श में। हम स्त्रियों को बहुत उल्लू बना लिए लिए बहुत कमजोर समझ लिए, बहुत इस्तेमाल कर लिए। अब नहीं होने देंगे।
बदलो अपनी पितृसत्तात्मक सोच को। मत परोसो हमारा शरीर सबके सामने। तुम्हें नहीं तो मुझे तो लाज आती है न। हे पुरुष तुम बलात्कार करके भी नहीं लजाते, न ही घर से निकलने की मनाही होती है। तो हमारे शरीर का क्या करना है हमे ही सोचने दो। मैंने पहले कहा है अगर इच्छा हो रही है तो अपने घर में करा लो…। तुम मनुष्य नहीं पुरुष सत्ता की सीचने वाले लोगों के प्रतिनिधि हो। इतिहास गवाह है कि हमेशा स्त्री का ही चीर खीचा गया वो भी अपने महाबली पतियों के सामने। कब खत्म होंगी तुम्हारी इस तरह की इच्छाएं… कि स्त्री को भी मनुष्य समझोगे, नहीं फेंकोगे किसी के सामने अपने जुए के लिए, अपने प्रमोशन के लिए, अपने सोशल मीडिया प्रमोशन के लिए। नहीं करोगे उसके शरीर की चीरफाड़, नहीं उधेड़ोगे उसके अस्मिता की बखिया।
हर महिला प्रधान का काम उसका पति देखता है। स्त्री पर आधारित फिल्में पुरुष बनाता है। हर मीडिया पर स्त्री विमर्श कैसा होगा पुरुष तय करता है। हर चीज हर जगह अपना वर्चस्व। स्त्री के नाम पर साइट शुरु कर देते हैं पर उस पर मैटीरियल कैसा जायेगा पुरुष तय करता है। हे पुरुष इस्तेमाल करना बंद करो। अपने मालिक हम हैं तुम नहीं। तुम्ही हमें बेचते और खरीदते हो। स्त्री के नाम पर तुम्हारी दुकान चलती है। कभी स्त्री के कपड़े, कभी सौंदर्य प्रसाधन, कभी विज्ञापन में स्त्री को बेचते हो। हम स्त्रियां तुम पुरुष सत्ता के हाथ की कठपुतली बने रहे पर अब नहीं, हम स्त्रियां बेचने नहीं देंगे। हां, वो स्त्रियां जो पुरुष सत्ता को पालने पोषने और सींचने का काम कर रही है… उनके लिए तो बस इतना ही कि उनको उन सभी स्त्रियों की बद्दुआएं लगेंगी जो पढ़-लिख रही हैं, रिसर्च कर रही हैं, आत्मनिर्भर होने के लिए रात-दिन मेहनत कर रही हैं और अपने हक-अधिकार को समझने लगी हैं।
शालिनी श्रीनेत मेरा रंग फाउंडेशन की संस्थापक हैं। मेरा रंग के माध्यम से शालिनी ने जेंडर, स्त्री सुरक्षा, एलजीबीटी से जुड़े कई मुद्दे उठाए हैं। उन्होंने गोरखपुर यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन और रुहेलखंड विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद और मूक-बधिर बच्चों के लिए काम करने वाले दो स्वयंसेवी संगठनों ‘जीवनधारा’ और ‘दिशा’ से सामाजिक क्षेत्र में अपना काम शुरू किया था।