बॉडी शेमिंग (Body shaming meaning in Hindi) का अर्थ है किसी भी स्त्री, पुरुष, बच्चे या वृद्ध को उसके शरीर की किसी कमी या भिन्नता के कारण शर्मिंदा करना। व्यावहारिक रूप से इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर किसी ग्रुप या समाज में किसी को पतला होने, मोटा होने, अलग रंग के होने या फिर किसी शारीरिक कमजोरी के कारण हीनता का बोध कराया जाता है तो वह बॉडी शेमिंग है। बॉडी शेमिंग की इस प्रक्रिया में सामने वाले को अपने शरीर के प्रति असहज कर दिया जाता है या उसके मन खुद के लिए हीन भावना बैठा दी जाती है।
कैसे होती है कंडीशनिंग?
आइए बॉडी शेमिंग को एक उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं (Body shaming meaning in hindi with examples)। जैसे यदि किसी लड़की का रंग सांवला है तो जाहिर सी बात है कि इसी रंगत को लेकर वह पैदा हुई है। यही उसका कुदरती रूप है। न तो वह खुद इसे बदल सकती है और न ही ऐसा करने की जरूरत है।
इसके बावजूद अगर बचपन से उस लड़की की ऐसी कंडिशनिंग हो कि गोरे रंग के लोग सुंदर होते हैं और सांवले बदसूरत का कम सुंदर तो वह उसी बात को एक सोशल वैल्यू की तरह अपने मन में बिठा लेगी और उसी नजरिए से खुद का भी मूल्यांकन करेगी।
यानी वह हमेशा इस कांप्लेक्स में रहेगी कि वह सुंदर नहीं है। कुदरत ने उसे सुंदर नहीं बनाया है। जबकि कुदरत ने तो हर किसी को अलग बनाया है। कुछ गोरे है, कुछ बहुत ज्यादा गोरे, कुछ सांवले और कुछ गहरी रंगत वाले। यानी लड़की ने प्रकृति की इस भिन्नता को समझने और स्वीकार करने की बजाय अपनी सोसाइटी में बनाई गई परिभाषा को स्वीकार कर लिया और उसके दिमाग की कंडिशनिंग उसी तरह से होती गई।
क्योंकि उसे ऐसी ही टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जहां उसे बार बार अपनी सांवली रंगत के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। जैसे, “तुम रंग गोरा करने के लिए कोई क्रीम लगाओ”, “बड़ी बहन तो सुंदर है मगर इसकी शादी में दिक्कत आएगी”, या फिर “तुम एयरहोस्टेस या रिसेप्शनिस्ट नहीं बन सकती वहां पर गोरी और सुंदर लड़कियां ही चुनी जाती है”।
बॉडी शेमिंग (Body Shaming) से हीनता का शिकार हो जाते हैं लोग
बॉडी शेमिंग का प्रभाव सिर्फ असहज या अपमानित करने वाली टिप्पणियों तक ही नहीं सीमित रहता है। इसका असर व्यक्ति के मनोविज्ञान पर भी पड़ता है और उसका आत्मविश्वास खत्म होता जाता है। योग्य होते हुए भी इस किस्म के सामाजिक भेदभाव की वजह से करियर में वह पीछे जा सकता है।
इतना ही नहीं उसके सामाजिक रिश्तों पर भी इसका असर हो सकता है। वह अंतर्मुखी या दब्बू बन सकता है। उसके रिश्तों पर भी इसका असर पड़ सकता है। उसका लाइफ पार्टनर उसे किसी भी शारीरिक कमी के लिए अपमानित करे तो इसका भी असर उसके पूरे जीवन पर पड़ेगा। अब यह तो बात हुई रंग की। यही स्थितियां किसी दुबली-पतली लड़की, मोटी लड़की, हाइट में छोटी या बहुत लंबी स्त्री या पुरुष के साथ भी हो सकती हैं।
हमारे भारतीय समाज में इस तरह की टीका-टिप्पणियां हम बचपन से देखते हैं लिहाजा इसे सामान्य मानने लगते हैं। हमारे समाज में कुछ लोग इस तरह के कमेंट्स को सहजता से ले लेते हैं तो कुछ संवेदनशील लोग मानसिक रूप से विचलित हो जाते हैं। लेकिन आपने गौर किया होगा कि पिछले कुछ समय से बॉडी शेमिंग पर चर्चा बढी है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि संचार और यातायात के बढ़ते साधनों की वजह से लोगों का मेलजोल ज्यादा बढ़ा है। दिल्ली में नॉर्थ ईस्ट की लड़कियां पढ़ने आ रही हैं तो बिहार के लोग मुंबई में जॉब कर रहे हैं। चेन्नई और बेंगलुरु में हिंदी भाषी लोग आइटी कंपनियों मे नौकरी कर रहे हैं तो पूणे और अहमदाबाद में उत्तर भारत के स्टूडेंट्स पढ़ने जा रहे हैं।
समय के साथ जागरूकता बढ़ी
मल्टीनेशनल कंपनियों में भी अलग अलग देशों और रूप रंग के लोग एक साथ काम करते और उठते बैठते हैं। उन सभी का रंग-रूप, पहनावा और रहने-खाने का तौर-तरीका अलग होता है। यदि इसके प्रति लोगों को भावी पीढ़ी को जागरूक नहीं किया जाएगा तो शारीरिक भिन्नता के आधार पर होने वाली टीका-टिप्पणियां जारी रहेंगी और आपस में सकारात्मक मेलजोल या टीम वर्क की बजाय टकराव और भेदभाव बढ़ेगा।
इसलिए ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनियां जेंडर, भाषा, रंग, जाति तथा धर्म के आधार पर होने वाले किसी भी डिस्क्रिमिनेशन का विरोध करती हैं और अपने कर्मचारियों को भी समय-समय पर इसके प्रति जागरूक करती रहती हैं।
आम तौर पर बॉडी शेमिंग की शिकार पुरुषों की बजाय महिलाएं ज्यादा होती हैं। लड़की ज्यादा मोटी है, पतली है या सांवली है, यह इतना बड़ा मुद्दा बन जाता है कि यह लड़की की सारी चिंताओं का केंद्र बन जाता है। बहुत बार यह डिप्रेशन में जाने या आत्महत्या जैसी घटनाओं का कारण बन सकता है।
देखा जाए तो बॉडी शेमिंग में पितृसत्ता की भूमिका अहम है। क्योंकि पुरुष सत्ता के केंद्र में है तो वह (तथाकथित) शारीरिक कमियों पर होने वाली टिप्पणियों से मुक्त रहता है। वहीं लड़कियों पर बॉडी और रंग के मानक थोप दिए जाते हैं और उन्हें इसी के मुताबिक परफेक्ट रहना होगा।
अपने शरीर के प्रति सहज रहना सीखें
लड़कियों के साथ बॉडी शेमिंग का एक और पहलू है अपने सामान्य शरीर के प्रति भी शर्म का भाव पैदा करना। जैसे कि वक्षों का उभार जो न सिर्फ किसी भी लड़की के विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है बल्कि भविष्य में उसकी संतान के पालन-पोषण से भी जुड़ा है, इसे लेकर शर्म की भावना पैदा करना।
उन्हें दुपट्टे से ढककर रखने और छिपाने पर जोर देना, खेलने से मना करना। या फिर ऐसे छोटे कपड़े पहनने से मना करना जिसमें शरीर दिखता हो। इसकी वजह से कई बार बहुत प्रतिभाशाली लड़कियां स्पोर्ट्स जैसी गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाती हैं, कई बार पारिवारिक दबाव की वजह से और कई बार खुद के संकोच और कंडीशनिंग के कारण।
शरीर को छिपाने और शरीर दिखने पर शर्म की भावना के कारण कई बार लड़कियों को बहुत सारी मेडिकल संबधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्किन, ब्रेस्ट या शरीर के दूसरे हिस्सों से जुड़ी दिक्कतों पर स्त्रियां संकोच की वजह से बात नहीं कर पातीं और न ही डॉक्टर की सलाह ले पाती हैं।
यह पाया गया है कि बहुत से लोग जानबूझकर नहीं बल्कि अनजाने में बॉडी शेमिंग कर जाते हैं। यदि इसके प्रति लोगों को जागरूक किया जाए तो अनजाने में ऐसी टिप्पणियों में कमी आएगी और लोग एक-दूसरे को भी जागरूक करते रहेंगे।
वहीं जिन्हें लगता है कि उनमें कोई शारीरिक कमी है उनको यह समझना चाहिए कि प्रकृति ने किन्हीं भी दो लोगों को समान नहीं बनाया है, कोई भी परफेक्ट नहीं है और अमूमन हर किसी के पास कोई न कोई ऐसा टैलेंट होता है जो शायद किसी और के पास न हो।
माता-पिता को अपने बच्चों को सिखाना चाहिए कि वे किसी की शारीरिक कमी या भिन्नता का मजाक न उड़ाएं। वे अपने शरीर के प्रति सकारात्मक भाव रखें और शर्म से अपने शरीर को छिपाने की बजाय उसके प्रति सहज रहें।