‘जब सेक्सुअल हैरेस्मेंट हुआ था तभी क्यों नहीं बोली?’ एक सवाल और कुछ जवाब

सेक्सुअल हैरेसमेंट

तारा शंकर

उस वक़्त शायद मुँह खोलती तो पढ़ाई छुड़वा देते घर वाले, घर से बाहर निकलना बंद करवा देते घरवाले! अगर नौकरीपेशा है तो उस समय मुँह खोलने पर बमुश्किल हासिल नौकरी भी जा सकती थी क्योंकि शोषण करने वाला अधिकारी या बॉस ही था। तब मुँह खोलने पर उसके किसी प्रियजन को नुकसान पहुँच सकता था! शायद जान से भी हाथ धोना पड़ सकता था।

समाज द्वारा लादे गए इज़्ज़त का बोझ शायद अधिक भारी महसूस होता था तब, शायद की घर की तथाकथित इज़्ज़त बचाना उसके अपने शोषण से ज़्यादा कीमती लगा होगा। बात बाहर आने पर छोटी बहनों के प्रति समाज के बदले नज़रिये को सोचकर वो सहम गयी होगी। शायद इसलिए चुप हो गयी होगी कि कहीं घर वालों ने भी उसका साथ नहीं दिया तो। कहीं किसी ने उसकी बात का यकीन ही नहीं किया तो क्योंकि वो रेपिस्ट या मोलेस्टर बड़ा सम्मानित है समाज में अथवा वो उम्र में बहुत बड़ा है उससे अथवा वो अभिभावक की भूमिका था।

जो आवाज़ उठा पा रही हैं उनके साथ भी खड़े होना है और जो घटना के समय  मुँह नहीं खोल पा रही हैं उनके साथ भी खड़े होना है, ना कि उनपे शक करना है। ग़लत सही का फ़ैसला तो पुलिस-कोर्ट करेगी।

पुलिस के पास जाने पर उसे न्याय का शायद भरोसा न रहा हो। शायद उसे न्यायालय पर भरोसा न रहा हो उस वक़्त! शायद उसे लगा हो कि न्याय को उसका शोषक ख़रीद लेगा। शायद उसे उस समय लगा हो कि कोर्ट कचहरी पुलिस के चक्कर उसके घर वाले अफ़ोर्ड नहीं कर सकते। शायद उसे ये भी लगा हो कि न्याय पता नहीं कितने वर्षों में मिलेगा। शायद उसे लगा हो कि मुँह खोलने पर उसे ही लोग गलत न समझने लगें! या फिर ये लगा हो कि किस किस को जवाब देती फिरेगी। या फिर वो पुलिस और कोर्ट के सामने वाली शोषण दोबारा बयान न कर सके! शायद वो इतने ट्रॉमा में चली गयी हो कि शिकायत करने की उसे सूझी ही न हो। शायद उसे अपराधबोध हो रहा हो कि कहीं इसमें मेरी तो ग़लती नहीं।

शायद उसे पुरुषों की दुनिया का ख़तरनाक रूप की समझ रही हो मुँह खोलने पर वो किस हद तक जा सकता है। शायद उसे डर हो कि उसे ब्लैकमेल करेगा अपराधी! शायद उसका विडियो या फोटो या टेक्स्ट उस रेपिस्ट या मोलेस्टर के पास हो जिसे लेकर वो ब्लैकमेल कर सकता है। अगर वो शादीशुदा है तो मुँह खोलने पर उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी का क्या होगा, बच्चों का क्या होगा। शादीशुदा नहीं है तो उसकी शादी में कहीं अड़चन तो नहीं आएगी (समाज के बेहूदी संरचना को देखते हुए ऐसा सोचना ग़लत भी कहाँ है)!

शायद उसके माँ-बाप की हैसियत (राजनैतिक-आर्थिक-सामाजिक) इतनी नहीं कि उसके शिकायत करने पर हैंडल कर सकें। शायद वो इतनी छोटी थी उम्र में कि उसे सही ग़लत उस समय समझ ही नहीं आया हो। शायद शोषक बहुत क़रीबी दोस्त था या बॉयफ्रेंड था इसलिए उसे उस वक़्त समझ में नहीं आया कि पुलिस के पास जाए या न जाए। शायद वो उस वक़्त मुँह खोलने पर होने वाले संभावित नुकसान की कल्पना न कर सकी हो। शायद वो ये सोच रही हो कि उसके अपने दोस्त उसको कैसे ट्रीट करेंगे आवाज़ उठाने पर।

ज़रा सोचिये कि अगर शोषक उसका टीचर हो, अभिभावक हो, बॉस हो, नौकरी देने वाला हो, घर वाला ही कोई हो, रिश्तेदार हो, उसका प्रेमी या सबसे भरोसेमंद दोस्त हो, कोई राजनैतिक और आर्थिक रसूखदार हो, उम्र में इतना बड़ा हो कि जिसके शोषक होने पर उसके अलावा किसी को भी संदेह न हो, ऐसा व्यक्ति हो जिस पर अब तक इस तरह का कोई इल्ज़ाम न लगा हो… तो मुँह खोलना क्या इतना आसान है जितनी आसानी से लोग कह देते हैं कि तब क्यों नहीं बोला।

ऐसा कहने वाले असल में विक्टिम ब्लेमर होते हैं। वो या तो अपने जैसा ही मजबूत सबको समझते हैं अथवा उनके साथ ऐसी कोई परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई। ऐसे लोग चुप रहने वालों और कई साल बाद मुँह खोलने वालों की तुलना उन चंद लोगों से करते हैं जो मुँह खोल सकी हैं घटना के वक़्त ही! ऐसे लोग सबकी परिस्थितियों को एक जैसा मानते हुए एक सामान्यीकरण कर देते हैं। इन्हें नहीं मालूम कि इन जैसे लोगों के कारण भी लाखों लड़कियाँ मुँह नहीं खोल पाती हैं!

ये सब सैकड़ों परिस्थितियों में से महज कुछ हैं जिनके कारण लैंगिक शोषण के वक़्त मुँह खोलना आसान नहीं होता। हाँ जो आवाज़ उठा पा रही हैं उनके साथ भी खड़े होना है हमें और जो घटना के समय ही मुँह नहीं खोल पा रही हैं उनके साथ भी खड़े होना हैं, ना कि उनपे शक करना है! ग़लत सही का फ़ैसला तो पुलिस-कोर्ट करेगी। समय गुजरने पर सच झूठ नहीं हो जाता और झूठ सच भी नहीं हो जाता!

नोट: ये बात महिलाओं से ज़्यादा मेल चाइल्ड सेक्स एब्यूज के बारे में सच है। लगभग हर दूसरे मेल चाइल्ड का सेक्सुअल एब्यूज होता है भारत में लेकिन उनमें से 2-4% भी मुँह नहीं खोल पाते हैं! तो क्या आप उन्हें ही गलत ठहरा देंगे? समाज की संरचना, जेंडर, पितृसत्ता पर ब्लेम करने के बजाय अगर आप मुँह न खोलने वालों को ही गलत ठहराएंगे फिर तो मिल चुका न्याय।

यह लेख दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और जेंडर तथा स्त्री संबंधी मुद्दों पर सोशल मीडिया में निरंतर मुखर तारा शंकर की फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया जा रहा है। 

English summery 

  • Sexual harassment: We have to stand with those who are able to raise their voice, we also have to stand with those who are unable to open their mouth at the time of the incident, not to doubt them! The police-court will decide the wrong right. The truth does not become a lie as time passes and the lie does not become a truth! An article by Tara Shankar.

 

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