रेहाना कुरैशी
रिश्तों को बनाना, संभालना, संवारना और संजोना, इन्हीं के इर्द गिर्द तो दुनिया के सबसे अहम सवाल अक्सर घूमा करते हैं। आपकी ‘रिलेशनशिप बिल्डिंग स्किल’ को मौजूदा वक़्त में कार्यस्थल पर भी बहुत अहमियत दी जाती है। अपने रेज़्यूमे में ‘रिलेशनशिप बिल्डिंग स्किल’ लिख कर तो देखिए, कैसे लिंक्डइन पर फ़िल्टर लगा लगा कर हायरिंग मैनेजर्स निकल पड़ते हैं आपकी तलाश में। लेकिन इसे ‘लोगों को खुश रखने’ से जोड़कर बिल्कुल न देखा जाए, इस तरह के हुनर का मतलब सामने वाले को लुभाना कतई नहीं है। इसका अर्थ है लोगों को समझना, उनकी शख़्सियत से जुड़े सभी अहम पहलुओं को, उनकी जिंदगी के उन अनुभवों को जिनकी वजह से वह व्यक्तित्व हमारे सामने है।
ये एक कला है, बेहद पेचीदा फन। इसमें स्वीकार्यता या क़बूल करना शामिल है। ख़ुद को और दूसरे को इस प्रक्रिया में गँवाये बिना क़बूल करना। अपनी फ़र्क शख़्सियतों को जान, बूझ और समझकर एक रिश्ता क़ायम करने की कला, जिसकी बुनियाद सहनशक्ति, स्वीकार्यता और प्यार है। मगर ये पांचवी क्लास के बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर आज भला ये ज्ञान देने क्यों बैठ गयी हैं? भई ये ऑफिस-वॉफिस की, ज़रा हाई लेवेल की सी बातें हैं, आप बताइए फ्रैक्शन्स को कॉनक्रीट से एब्सट्रेक्ट सिखाने के क्या तरीक़े सुझा सकती हैं? जी हां, जानती हूं ना, पर माफी चाहती हूं आपके साथ साझा नहीं कर सकूँगी। और सुनिए, एक सुझाव है, ये सवाल पूछना ही पहली फुर्सत में बंद कीजिए। और एक काम करिये, किनारे रख दीजिए हर उस किताब को जिसमें लिखे हैं फ्रैक्शन्स पढाने के बने-बनाए नुस्ख़े। देखिये कोइ काढ़ा नही है जिसे आप गटागट पी जाएं और अपने स्टूडेंट्स के सामने जाकर ज्यों का त्यों उड़ेल दें।
सीखना सिखाना एक बेहद ही सूक्ष्म और नाज़ुक कला है जिसमें सभी सामग्री को बेहद नज़ाक़त के साथ मिलाया जाता है, जिनका सही माप पता लगाने का तरीक़ा सिर्फ़ और सिर्फ़ संदर्भ को समझने और परस्पर समान अनुभवों को अपने शिक्षण में उतार लाना है। मैं ख़ुद चाहे चीज़ बर्स्ट पिज़्ज़ा की टॉप फैन हूँ पर फ्रैक्शन्स सिखाते वक़्त अपने नन्हे मुन्नों को पिज़्ज़ा का उदाहरण देना मेरे लिए जायज़ नहीं। अगर यह मेरी क्लास में मौजूद एक स्टूडेंट के अनुभव से अलग है, उसने पिज़्ज़ा कभी देखा, छुआ, चखा नहीं; तो इसे अपनी टीचिंग में शामिल करना किसी जुर्म से कम नहीं। पर भला ये जानें कैसे? रिश्ते क़ायम करिये जनाब, यही इस लेख के ज़रिये आज बताने, जताने और समझाने की कोशिश कर रही हूँ मैं।
तो ‘रिलेशनशिप बिल्डिंग’ जिसे आप दूर की, बाद की बात कहते हैं वो दरअसल शुरू होती है यहीं से, जीवन के इन्हीं बुनियादी वर्षों से। देखिये फ्रैक्शन्स तो सभी सिखा रहे हैं, पर सवाल तो ये होना चाहिए कि फ्रैक्शन्स के ज़रिये आप उन्हें क्या सिखा सकते हैं। सभी शिक्षक चाहते हैं कि बच्चे उनकी बात को सुनें, पर क्या इस पावर के खेल को कुछ वक़्त के लिए साइड रख कर ख़ुद से ये सवाल कर सकते हैं कि वो हमें सुनें क्यों? ज़रा पूछ कर देखें और अगर आपका जवाब “क्योंकि मैं टीचर हूँ” आता है तो आप भी इस समस्या का एक हिस्सा हैं।
आप जानना चाहेंगे मेरी कक्षा किस तरह सुबह शुरू होती है? अपने बच्चों के अंदर छुपे फ्रैक्शन्स को तलाशने से। वो मेरे साथ फ्रैक्शन्स सीखना चाहते हैं क्योंकि मैं समझने की कोशिश करती हूँ उनके अंदर छुपी भावनाओं के फ्रैक्शन्स और होल्ज़ को। सुबह की ‘पिक अ ग्रीटिंग’ एक्टिविटी में रोज़ मुझे हग करने वाले बच्चे ने आज हाई-5 को क्यों चुना? ये दिखाता है कि कल किसी ग्रोन अप ने उसके विश्वास को झंजोड़ा है, जो अब वो मेरे गले न लगके प्रतिरोध की शक्ल में दिखा पा रहा है। बच्चों के लिए एक ऐसा सुरक्षित स्पेस बनिये जहां वो ख़ुशी और नाराज़गी बेझिझक ज़ाहिर कर सकें, फ्रैक्शन्स और टेंसेस इसके बाद आते हैं, बहुत बाद।
मीनिंगफुल रिलेशन्स बनाना सिखाने की ज़िम्मेदारी आज के शिक्षक के कंधों पर है, परिवार के फ़र्क तजुर्बों के चलते ये अपेक्षा सिर्फ अभिभावकों से करना जायज़ नहीं। हम ही मिलकर बनाएंगे वो समाज जिसमे रिलेशनशिप बिल्डिंग महज आपके रेज़्यूमे का एक कीवर्ड नहीं बल्कि ज़िन्दगी का हिस्सा होगा। उतना ही नेचुरल होगा, जितना सांस लेना और फिर हर हायरिंग मैनेजर इस फ़िल्टर को बेमानी समझेगा।
मेरा रंग के लिए ये लेख रेहाना क़ुरैशी ने लिखा है। रेहाना ‘टीच फॉर इंडिया’ संस्था के साथ ट्रांस्फॉर्मेशनल टीचर के रूप में एनडीएमसी के एक स्कूल में कार्यरत हैं। रेहाना अपने लेखों में उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी के बराबर इस्तेमाल को बेहद प्रिय मानती हैं। लेखिका शिक्षा, जेंडर और सामाजिक हाशियाकरण जैसे मुद्दों में गहरी रुचि रखती हैं। हिंदुस्तानी संगीत की तालीम हासिल की है और गाने गुनगुनाने की शौक़ीन हैं।