इस लड़की से सुनिए कन्याकुमारी से लद्दाख तक साइकिल यात्रा की रोमांचक कहानी

तहसीन अम्बर

तहसीन अम्बर

कन्याकुमारी से लद्दाख तक की यात्रा करने वाली तहसीन अम्बर से सुनिए उनकी इस रोमांचक यात्रा की कहानी। मेरा रंग की ‘किस्से साइकिल के’ सिरीज में तहसीन से हुई बातचीत के आधार पर इस रोचक संस्मरण को कलमबद्ध किया है जाने-माने आर्टिस्ट और लेखक सीरज सक्सेना ने, जो खुद भी एक साइकिलिस्ट और पर्यावरण प्रेमी हैं। 

हमने कन्याकुमारी से अपनी यात्रा जून में शुरू की ताकि जब तक हम लद्दाख पहुंचे तब तक वहां के रास्ते खुल जाएं। हालाकिं जून में दक्षिण भारत में खूब गर्मी रहती हैं। हर दिन साइकिल चलाते रहने से हमारी गति धीमी ही बनी रहीं। क्योकि शरीर थकने लगता हैं पर हमारे साथ हमारा रुट मेप था जो हमने यात्रा शुरू करने के पहले ही बना लिया था।

हर दिन का हमारा एक लक्ष्य होता कि हमें कहाँ रुकना हैं। हमारे गंतव्य तक हमें साइकिल से सूरज ढलने के पहले पहुंचना ही होता था।सूरज ढले के बाद हम साइकिल नहीं चलाएंगे यह हमने तय किया था। तमिलनाडु में हम होटल में रुकते थे। यहाँ का भोजन स्वादिष्ट और रेस्त्रां साफ़ सुथरे हैं कहीं कहीं तो हमें केले के पत्ते पर भी भोजन मिला।

तमिलनाडू के हाई वे भी अच्छे हैं वहां ट्राफिक भी बेतरतीब नहीं हैं। फिर हम आंध्रा पहुंचे। तेलंगाना में हमें एक परिचित पर्वतारोही मिले। जो वहां आईपीएस थे। पूरे एक हफ्ते तक तेलंगाना में उन्होंने हमारे रहने और भोजन का ध्यान रखा। अब हमें लोग मिलते जा रहे थे। नागपुर में मेरे भैया के घर हम रुके। मध्यप्रदेश में भी काफी रिश्तेदार मिले। हमारे अगले पड़ाव के लिए भी रिश्तेदार अपने रिश्तेदारों को हमारी इस साइकिल यात्रा के बारे में बताते और वे हमारा उनके शहर पहुंचने पर फूलों की मालाओं से स्वागत करते।

जब हम इस तरह का दुर्लभ या असामान्य विचार या विशिष्ठ विचार बनाते हैं और अपने आस पास के लोगों से साझा करते हैं तो अमूमन हमें निराशा या हतोत्साह ही हाथ लगता हैं पर जब हम अपने विचार पर कायम हो कर अपना लक्ष्य पाने के लिए साइकिल यात्रा पर निकल पड़ते हैं तब हमें अपने लोगों का बहुत प्रेम और सहयोग मिलता हैं। और यह सिर्फ भारत में ही संभव हैं।

यहाँ लोग एक दूसरे की मदद करते हैं प्रेम करते हैं। नागपुर पहुंचते ही एक बार मेरे मन में आया कि क्यों न यहां से रायपुर की ओर मुड लिया जाए और अपनी इस लद्दाख यात्रा में रायपुर को भी छू लिया जाए पर हमने लद्दाख पहुंचने के लिए मध्य भारत से होकर गुजरना तय किया था और रायपुर हमारे मानचित्र पर नहीं था। अतः नागपुर से रायपुर जाने को दर्शाता साइन बोर्ड देख कर हम आगे बढ गए । हम नरसिंगपुर,दतिया,मुरैना होते हुए उत्तरप्रदेश की और बढे . यहां हमें हाइवे पर डराने वाला यातायात मिला पर हम खुद को बचाते बायी ओर धीरे धीरे साइकल चलाते रहे और इस कठिन हिस्से को पार किया। हमें यह पता हैं की हाई वे बना ही गतिवान और बड़े वाहनों के लिए।

दिल्ली पहुंचने के पहले हम फरीदाबाद मेरे साथी पंकज के घर रुके। हमें यह तसल्ली थी कि चलो हमारी यात्रा में हम दोनों में से किसी एक का घर तो पड़ा। रात पंकज के घर हम रुके हमारा खूब स्वागत हुआ और अगली सुबह हम जल्दी ही दिल्ली को पार कर चंडीगढ़ की ओर बढे .दिल्ली के इंडिया गेट पर हम थोड़ी देर रुके वहां हमने तस्वीरें लीं। मन तो था कि दिल्ली में एक दिन और रुकें पर हमें यह भी ध्यान था कि समतल रास्ते में हम अधिक दूरी तय कर सकते हैं।

हमारे गंतव्य की ओर बढ़ने पर रास्ता पहाड़ी और मौसम भी बदलेगा .आक्सीजन भी ऊपर कम होती हैं। हमारी गति धीमी रहेगी पर पहाड़ी यात्राओं पर होने वाली थकान से होने वाली हमारी देह की प्रतिक्रिया क्या होगी यह तय करना कठिन था। अतः हम दिल्ली की चकाचौंद और आकर्षण को सोता छोड़ अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गए। मेरे साथी पंकज ने यह भी बताया कि अगर हम दिल्ली देर से पार करते तो हम दिल्ली के भीषण ट्रेफिक जाम में फस जाते और हमें अपने अगले गंतव्य तक पहुंचने में  बहुत कठिनाई होती।

दिल्ली पार करने के बाद जब हमने अपना मानचित्र देखा (जिसमे हम अपनी यात्रा आधे से अधिक पूरी कर चुके थे) जिसने हमें एक नई ऊर्जा हमारे मन मष्तिष्क में संचारित की। पूरे भारत में ही अब अच्छी सड़कें हैं। तमिलनाडु जहां तहसीन को साम्भर मिला वहीँ दिंल्ली में छोले भठूरे और अब चंडीगढ़ के रास्ते उन्हें लस्सी और पनीर टिक्का मिलने वाला हैं।

हमारा एक नियम यह भी था कि हम दिन के उजाले में ही साइकिल चलाएँगे। हम जहां शाम होती वही रात्रि विराम लेते और इसी को ध्यान में रख हमने अपनी यात्रा की रूपरेखा बनाई थी। जब हम मैदानी इलाके मे साइकिल चलाते तो एक दिन में 110 या 120 किलोमीटर की दूरी तय करते। वहीँ यह दूरी घट कर पहाड़ों में ५० या ६० किलोमीटर हो जाती। दिल्ली से मनाली पहुंचने में हमें चार दिन लगे।मनाली हाई ऐटिटूड पर हैं जहां हमने एक दिन विश्राम किया। ताकि हाई ऐटिटूड पर हमारी देह इस वातावरण के लिए अनुकूल और अभ्यस्त हो सके।

पहाड़ों पर साइकिल चलाते वक्त पहाड़ की ढलान से उतरने पर बहुत सावधानी रखनी होती है। दोनों हाथों से कसकर हेंडल पकड़ना जरुरी हैं। और दोनों ब्रेक भी दुरुस्त होने चाहिए। पहाड़ी घुमावभरी ढलान पर ज़रा सी चूक आपको कई मीटर गहरी खाई में फेंक सकती है, जहां किसी अन्य मनुष्य का पहुंचना भी कठिन होता है।

पूरी यात्रा में हम तरल भोजन ही ग्रहण करते हैं। कुछ सप्लीमेंट भी पानी में मिलाकर हम समय समय पर पीते रहते थे। गन्ने का रस भी बहुत ऊर्जा देने वाला पेय हैं। मनाली से लेह साइकिल प्रेमियों का पसंदीदा सफर हैं। यहाँ पहुंचने पर हमें रास्ते में कुछ साइकिल सवार मिले। मनाली के बाद रोहतांग पास ,बारालचा,नकीला,लाचुंगला,टांगलांगला पास के बाद आखिर में खारदुंग ला पास हम पहुंचे। रास्ते में इस पहाड़ी मार्ग पर कहीं न कहीं काम चल रहा होता हैं।  इसी तरह सड़क पर काम होने की वजह से सारा यातायात रोक दिया गया था। खोक्सर के तेरह किलोमीटर पहले मरही में हम तीन घण्टे रुके रहे और हमारा प्लान गड़बड़ा गया। शाम हो चली थी हमें  शाम के बाद भी हम देर रात तक साइक्लिंग करते रहे हमारी कार की रौशनी हमें रास्ता दिखाती रहीं।

रात आठ बजे हम रोहतांग पास पहुचें। अँधेरे के साथ रिमझिम बारिश भी हो रही थी।अभी हमारी मंज़िल दूर थी। मेरा गला सुख रहा था। खांसी भी शुरू हो गई थी।तबीतय बिगड़ने लगी थी। किलोंग पहुंचते- पहुंचते रात के दस बज गए थे। देह भी पानी की कमी से निढाल हो चुकी  थी। अतः हमें किलोंग में रुकना पड़ा। यहाँ एक अस्पताल भी हैं इसलिए हम दोनों ने यहाँ विराम करने का निर्णय लिया। क्युकि आगे तो हमें कुछ मिलने वाला नहीं हैं रहना भी टेंट में होगा। किलोंग इ ऊपर अधिक आबादी भी नहीं हैं। और वहां सामान्य पर्यटक नहीं जाते हैं।

अगले दिन पंकज को भी बुखार आ गया और हमें यहां चार दिन आराम करना पड़ा स्वास्थ थोड़ा बेहतर होते ही हम खारदुंगला पास अपने गंतव्य की और बढे। रास्ते में गाटा लूप का सौंदर्य भी देखा यह इक्कीस सर्पाकार रास्तों का एक लूप हैं ऊपर पहुंचने पर जब हम पीछे  तय किये राते को देखते हैं तो नीचे देखने पर ये इक्कीस घुमावदार रास्तों को देखना एक अद्भुत और सुखद अनुभव हैं। 1 अगस्त 2019 में हम खारदुंगला पास पहुंचे और हमारी यह यात्रा पूर्ण हुई।

महिलाओं और लड़कियों के लिए कोई भी काम कठिन नहीं हैं बस हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखने की जरूरत हैं अपने भय पर विजय प्राप्त करें। अपने को परखने के लिए छोटे छोटे जोखिम चुने और उन्हें पूरा करें। ऐसा कोई काम नहीं जो लडकियां नहीं कर सकतीं।

अपनी सोच और सपनों को हम ही पूरा करते हैं हमारा सपना हमारी मेहनत और एकाग्रता से पूर्ण होता हैं। लम्बी दूरी की साइकल यात्रा करने के पहले नियमित प्राणायाम करना भी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। ‘विल्डरनेस फर्स्ट रिस्पोंस’ कोर्स आपातकाल में काम आता हैं जैसे कहीं जंगल या सुनसान जगह आपका कोई साथी अगर जख्मी हो जाए या अचेत हो जाए तब अस्पताल जाने के पहले हम ऐसा क्या करे कि अस्पताल पहुंचने के पहले वह सचेत रहे। इस कोर्स में नव्ज़ देखना, दिल की धड़कन को समझना और मरीज़ को राहत पहुंचना, हिम्मत बंधाना यह सिखाया जाता हैं। अगर हमें यह आता हो तो हम किसी मरीज़ के जीवन को बीस मिनट तक बचा सकते हैं जब तक उसे अस्पताल न पहुंचाया जा सके।

तहसीन अब भूटान और नेपाल की सड़कों पर साइकल चला चाहतीं हैं और वहां के पहाड़ों पर पर्वतारोहण करना चाहतीं हैं। श्रीलंका में भी एक हफ्ते साइकिल चलाने का उनका मन हैं। इसके बाद यूरोप में भी वे साइकिल चलाना चाहती हैं।

 

Siraj Saxena
फोटोः त्रिभुवन देव

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं।  मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं। 

 

 

तहसीन अम्बरतहसीन अंबर ने कन्याकुमारी से खारदुंग ला तक की यात्रा 40 दिनों में पूरी की। तहसीन एडवेंचर स्पोर्ट्स की शौकीन, पर्वतारोही और साइकिलिस्ट हैं। तहसीन छत्तीसगढ़ की पहली बेटी हैं जिन्होंने न सिर्फ स्पोर्ट्स, माउंटरिंग आदि के इतने कोर्स किए हैं बल्कि वे प्रदेश की पहली लड़की हैं जिसने कन्याकुमारी से लद्दाख तक साइकिल से यात्रा की हैं।

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