शालिनी श्रीनेत / अंकित तिवारी
बुंदेलखंड इलाके में गिद्धों की विलुप्त होती प्रजाति को अपनी रिसर्च का विषय बनाने वाली सोनिका कुशवाहा ने आम लोगों की तरह पीएचडी के बाद किसी बड़े विश्वविद्यालय या रिसर्च इंस्टीट्यूट का रुख नहीं किया। अपने इस काम से वे इतनी गहराई से जुड़ गईं कि उन्होंने झांसी और ललितपुर के आसपास इलाकों में गिद्ध संरक्षण और लोगों को इस बारे में जागरुक करने को ही अपना ध्येय बना लिया है।
सोनिका करीब 10 साल से इस काम में लगी हुई हैं। इस दौरान उन्हें बेहद करीब से वाइल्ड लाइफ और मनुष्य के बीच के रिश्तों को समझने का मौका मिला। मेरा रंग से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि उनके एनजीओ का मुख्य काम बेसलाइन डेटा बनाना है। इसके अलावा वे गिद्धों के जीवनचक्र और उनकी रिहाइश की भी लगातार निगरानी करते हैं। मध्य प्रदेश के ओरछा में बहुत सी प्राचीन इमारतें हैं। गिद्ध वहां पर घोसला बनाते हैं और अपने अंडे देते हैं। सोनिका ने बताया कि उनके संगठन से वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट के कई अधिकारी और बहुत से वेटनरी डॉक्टर भी संपर्क में रहते हैं।
सोनिका का मानना है कि वन्य जीवन के प्रति जागरुकता के तहत जिस इलाकों में जो प्राणी पाया जाता है, उस इलाके के लोगों को उसके बारे में जागरुक किया जाना चाहिए। उनकी टीम गांव के सरकारी स्कूलों में बच्चों को जा-जाकर गिद्धों तथा पर्यावरण संरक्षण में उनके महत्व के बारे में बताती है। वे बच्चों से इस थीम पर कविता लिखने को कहते हैं और अन्य बच्चों के साथ उनका पाठ किया जाता है। बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी ट्यूशन फीस में मदद की जाती है। बहुत से लोग ऐसे हैं जो बच्चों की पूरे साल की फीस दे देते हैं। कुल मिलाकर मकसद यह है कि बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा करने पर ज्यादा जोर दिया जाए ताकि आगे चलकर वे संरक्षण में अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकें।
उन्होंने बताया कि भारत में गिद्ध की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से ज्यादातर अब दुर्लभ की श्रेणी में आती हैं। ये प्रजातियां हैं, सफेद पीठ, दीर्घचुंच, बेलनाचुंच, गोबर गिद्ध, राज गिद्ध, पांडुर, श्याम गिद्ध, अरगुल और यूरेशियन पांडुर। संस्था गौरैया संरक्षण में भी काम कर रही है। लोग उनको गौरैया के लिए लकड़ी का घर बनाकर देते हैं। सोनिका ने बताया कि हम लोग कोशिश करते हैं कि मिट्टी का घड़ा बनाएं और उसमें गौरैया अपना घोसला तैयार करे। क्योंकि गौरया भी मिट्टी में रहना ज्यादा पसंद करती है।
सोनिका का बचपन भी गांव में खेतों और चिड़ियों के बीच बीता है। दादा ग्राम प्रधान थे और दादी बहुत खुले विचारों की थीं। पढ़ाई-लिखाई के लिए कोई रोक-टोक न थी और न ही शादी के लिए कोई जल्दीबाजी दिखाई गई। न सोनिका के लिए और न ही उनकी बुआ के लिए। पापा भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लि. में नौकरी करते थे। बाद में वे उसी के कैंपस में शिफ्ट हो गए। यह जगह उनके गांव से 7-8 किलोमीटर दूर थी।
सोनिका का मानना है कि जुलोजी और बॉटनी में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे विद्यार्थियों को सिर्फ किताबी जानकारी दी जाती है। उनको व्यावहारिक बातों की जरा भी समझ नहीं होती। लिहाजा उनका मकसद है कि वाइल्ड लाइफ की शिक्षा अनिवार्य हो जाए और वे इसकी शुरुआत बुंदेलखंड से करना चाहती हैं। सोनिका के इस जज़्बे को मेरा रंग का सलाम!
I am very happy that someone is working day and night for the vultures.