‘पिंक पेडल्स’ के जरिए पिंक सिटी जयपुर में साइकिल कल्चर को बढ़ावा दे रही हैं पूजा

पूजा विजय

सीरज सक्सेना

मेरा रंग ‘किस्से साइकिल के’ श्रृंखला की हमारी पांचवी अतिथि थीं पूजा जो जयपुर की हैं। हमारे हर अतिथि की तरह पूजा  को भी साइकिल के प्रति अपनी तरह का जूनून हैं जो हमने उनसे बात कर अनुभव किया है।

स्कूटी की जगह साइकिल

सफ़ेद टीशर्ट में छोटा व चमकदार साइकिल का बैज पूजा के आत्मविश्वास की चमक बयान कर रहा था। वे हमेशा पिंक सिटी जयपुर में ही रहीं हैं। बचपन में स्कूल साइकिल से जाती थीं। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान हर युवा की तरह उन्हें भी मोटर बाईक से जाना उनका सपना था। उन्हें उनके माता-पिता ने स्कूटी दिलाई यह वाहन चालाना उन दिनों युवाओं के लिए शान और एक बड़ी बात थी। पर जल्द ही उन्हें यह समझ आ गया कि पेट्रोल के लिए उन्हें अपने सीमित जेब खर्च से एक बड़ी रकम खर्च करनी पड रही हैं।

किस्से साइकिल के: साइकिल चलाने से शुरू हुई पूजा और अश्विन की प्रेम कहानी

अतः वे आस पास जाने के लिए साइकिल का उपयोग करने लगीं। राजस्थान विश्वविद्यालय से बीए, एलएलबी और द्वतीय सार्क युवा सम्मलेन में भाग लेकर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। पूजा कनोड़िआ कॉलेज जयपुर की बेस स्टूडेंट और राजस्थान विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज में बेस्ट स्पीकर रहीं हैं। पढ़ाई पूर्ण करते ही उन्हें इनफ़ोसिस में अच्छी नौकरी मिली और जीवन की गति सुगमता से बढ़ने लगी। शनिवार इतवार छुट्टियों में अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करतीं और बाकी दिन कंपनी में काम।अच्छी तनख्वा पाकर पूजा संतुष्ट थीं।

पिंक पेडल ग्रुप 

2016 में जब दीपावली के ठीक पहले दिल्ली की हवा प्रदूषित हुई और प्रदूषण का स्तर बिगड़ने लगा। पटाखों पर प्रतिबंद लगा दिया गया इस खबर ने पूजा को विचलित किया। वे सोचने लगीं कि दिल्ली से जयपुर नज़दीक ही हैं और जयपुर की हवा भी प्रदूषित हो सकती हैं। इस बारे में हमें कुछ करना चाहिए और फिर उन्होंने अपने पिंक शहर में साईकिल को बढ़ावा देने के लिए ‘पिंक पेडल’ समूह बनाया। उनकी योजना थी कि वे शहर में उद्यानों के बाहर कुछ साइकिल लोगों के चलाने के लिए किराए पर उपलब्ध कराएंगी ताकि लोगों में साइकिल चलाने की लत और आदत बने। वे लोग भी फिर से साइकिल चलाने लगें जिन्होंने विकसित होते समाज में साइकिल छोड़ दी हैं।

अपनी नौकरी छोड़ कर उन्होंने यह काम करने का मन बनाया शुरू में उनके इस निर्णय को लोगों ने गलत बताया और उन्हें खूब समझाया भी गया पर वे अपनी जिद पर अड़ी रहीं और नौ साइकिल खरीद कर जवाहर उद्यान के बाहर खड़ी कर दी। पूजा कहतीं हैं कि पुरुष प्रधान हमारे समाज में लड़कियों के लिए कुछ करना शुरू में ही कई प्रश्नों और चिंताओं से बेवजह घिरा होता है।और यह एक दबाव में बदल जाता हैं।

संघर्ष और सफलता

पार्क में आने जाने वाले लोगों ने पार्क के गेट के पास नौ नई साइकिल खड़ी देखी पर किसी ने रूचि नहीं ली। लोग साइकिल देखते और आगे बढ़ जाते। वे अपनी साइकिलों के साथ अकेली खड़ी रहीं जबकि पास ही गोल गप्पे के ठेले पर अच्छी संख्या में लोग जमा थे। और गोल गप्पे के पानी में घुली स्वाद में मग्न थे। पूजा ने हिम्मत नहीं हारी और अपने दो कर्मियों के साथ वे अपने अभियान में जुटीं रहीं। अपने इन दो युवा साथियों को पूजा ने तीन माह के लिए पगार पर रखा और उन्हें कहा कि अगर लोगों ने साईकिल चलाना शुरू कर दिया तो हम आगे भी काम जारी रखेंगे पर मैं भी और अधिक समय के लिए नौकरी का भरोसा नहीं दे सकती हूँ।

बीस रुपए में बीस मिनट के हिसाब से उन्होंने साइकिल किराए पर देना तय किया। यह विचार उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट को पढ़ कर आया जिसमे लिखा था की हर व्यक्ति को प्रतिदिन बीस मिनट साइकिल चलानी चाहिए जो उन्हें निरोगी रखने के लिए पर्याप्त हैं। धीरे-धीरे लोगों का साइकिल के प्रति रुझान बढ़ा पूजा ने कई लोगों से बात कर उन्हें साइकिल चलाने का आग्रह किया इस तरह जयपुर में लोगों ने साइकिल को अपनाना शुरू किया। आज “पिंक पेडल” को तीन साल हो गए हैं और जवाहर उद्यान समेत शहर के कुछ मुख्य पार्क के बाहरखड़ी साइकिल किराए पर लेकर डेढ़ सौ साइकिल प्रतिदिन लोग चलाते हैं। पिंक पैडल की साइकिलों ने इन तीन सालों में पांच लाख से अधिक दूरी तय की हैं और अब तक पचास हजार से अधिक लोग उनके जुड़ चुके हैं।

साइकिल वाली दीदी

Pink Pedals

बच्चों में साइकिल के प्रति एक विशेष आकर्षण होता हैं। बड़ों को देख बच्चे भी साइकिल चलाने लगे। बच्चों की साइकिल के प्रति रूचि देख कर पिंक पेडल ने दो से सोलह वर्ष के बच्चों के लिए शहर में वार्षिक “जूनियर साइक्लोथॉन” का आयोजन किया दो वर्ष  पहले आयोजित इस साईकिल रैली में सौ बच्चों ने उत्साह से हिस्सा लिया। गत वर्ष तो यह आयोजन बहुत ही सफल रहा बच्चे अपनी तरह -तरह की साइकलों से इसमें भाग लेने आए। सबसे छोटे बच्चे (जिसकी उम्र एक साल आठ महीन थी) ने तो दो किलोमीटर साइकिल साइकिल चलाई। पूजा को  बच्चों से एक नया नाम मिला। वे अब साइकिल वाली दीदी कहलाने लगीं।

पूजा मानतीं हैं की सभी ने अपने जीवन में साइकिल जरूर चलाई होती हैं पर पूरे जीवन के इस सच्चे हमसफ़र को अधिकतर लोग बीच में ही छोड़ देते हैं। साइकिल चलाने वाली महिलाओं की संख्या तो बहुत ही कम हैं।और शहर में महिलाओं का भी आधा हिस्सा होता है। उन्हें भी साइकिल चलाना चाहिए।

पूजा ने अब महिलाओं को भी साइकल चलाने के लिए प्रेरित करना शुरू किया और सिर्फ महिलाओं के लिए उन्होंने एक ‘विमेंस राइड’ का आयोजन किया।मदर्स डे पर हुई इस पहली राईड में लगभग पचास साँठ महिलाओं ने और दूसरी बार सौ महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया। पूजा बताती हैं कि इस राइड में महिलाओं का उत्साह भी देखने लायक था। बहुएं अपनी सास को लेकर आयीं थी और चूँकि राजस्थान में पर्दा प्रथा उनकी परम्परा का हिस्सा है सो औरतों ने घूँघट लेकर साइकिल चलाई। रंगीन परिधानों में हुई इस साइकिल रैली का सौंदर्य निराला था।

बुजुर्ग साइकिल सवार

साइकिल के प्रति उनके जूनून को और जिद को देख जयपुर के कुछ बुजुर्ग उन्हें दादागिरी वाली लकड़ी के नाम से भी सम्बोधित करते हैं हुआ यूँ कि जब एक बुजुर्ग पूजा से बीस मिनट के लिए साइकिल लेने आए तो उन्होंने कहा कहा कि आप भी मेरे साथ चलिए कि मैं बहुत सालों बाद साइकिल चलाऊंगा कहीं मुझे कुछ हो गया तो आप मेरा ह्यां रख लेंगीं । दो किलोमीटर के बाद वे बुजुर्ग थक गए और पूजा को साइकिल लौटने लगे तब पूजा ने कहा कि अंकल मैंने आपको बीस मिनट के लिए अपनी साइकल दी है और मै उससे पहले अपनी साइकिल वापस नहीं लूंगीं। आप चाहे तो आप साइकिल के साथ यहीं खड़े रहिए। पूजा के अपनी जिद पर अड़ी रहीं। बुजुर्ग भी कुछ देर सुस्ताने के बाद बजाय एक जगह खड़े रहने के कुछ समय साइकिल चलाते रहे। बीस मिनट पूरा होने पर साइकिल लौटाते हुए बुजुर्ग अंकल ने कहा कि तुम दादागिरी करती हो।

यह अजीब अवश्य लगता है पर पूजा कहती हैं कि आज वे ही अंकल रोज एक घंटा साइकिल चलाते हैं। उन्हें देख शहर के अन्य बुजुर्ग भी साइकिल चलाने लगे। और पिंक पैडल ने इस ग्रुप के लिए एक विशेष राईड का आयोजन किया। इसका नाम पूजा ने ‘जॉय राइड’ रखा। इस राइड के अर्थ को पूजा बहुत ही रोचक ढंग से बताती हैं। वे कहती हैं कि जॉय अंग्रेजी का शब्द हैं  जिसका अर्थ हैं आनंद और इसकी स्पेलिंग है JOY जिसका मैंने अर्थ रखा हैं  just older you. पूजा के पिंक पेडल से आज हर उम्र के लोग जुड़े हैं। इन बुजुर्ग साइकल सवारों के लिए सुबह की चाय का लालच भी इस जॉय राइड का एक प्रमुख बहाना हैं।

जयपुर की साइकिल मेयर 

जयपुर एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पिंक शहर हैं। यह शहर कई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों और बाज़ारों के लिए विश्वविख्यात हैं। अपने शहर की इस खासियत को ध्यान में रखते हुए व साइकिल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान पर्यटन की सहायता से पूजा ने एक और मुहीम शुरू की हैं।  मुहीम को उन्होंने नाम दिया है “हेरिटेज ऑन पेडल” जिसके तहत वे देशी विदेशी पर्यटकों को साइकिल के साथ एक गाइड प्लान देती हैं जिसमे शहर के कुछ मुख्य पर्यटक स्थलों को साइकिल से देखा जा सकता है। पिंक पेडल की यह मुहीम भी सफलता पूर्वक चल रही हैं।

इसके अलावा ‘साइकिल विद वर्क’ मुहीम भी जयपुर के महेंद्रा वर्ल्ड सिटी क्षेत्र में पिंक पेडल द्वारा शुरू की गई हैं जिसमे वे शहर के इस इलाके में (जो लगभग सौ एकड़ में फैला है) मल्टी नॅशनल कंपनियों के साथ मिलकर यहां काम करने वाले कर्मचारियों को साइकिल अपनाने के लिए प्रेरित कर रहीं हैं। साइकिल के प्रति उनकी इस पहल को सराहते हुए एम्स्टर्डम की साईकिल संस्था ने पूजा को गत वर्ष जयपुर का साइकिल मेयर बनाया हैं।

यह जिम्मेदारी मिलने के बाद पूजा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम तो रोशन हुआ ही साथ ही उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ी हैं अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान उन्हें शहर के पचास प्रतिशत नागरिकों को वर्ष 2030 तक अपने जीवन में साइकिल अपनाने के लिए प्रेरित करना हैं। साथ ही स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत शहर में सुरखित तौर पर साइकिल सवारों से जुडी बातों और उनके मार्गों को चिन्हित कर अपने सुझाव स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में सम्मिलित करने हैं। इसके अलावा जयपुर में मुख्य सड़क के किनारे साइकिल पथ बनाने के लिए भी शासन से आग्रह करना हैं।

फैमिली और साइकिल

सुबह जल्दी शुरू होती दिनचर्या में अपने परिवार और अपनी पाँच साल की छोटी बिटिया के लिए समय निकाल पाना यूँ तो कठिन होता हैं पर पूजा बताती हैं कि परिवार और पति का मुझे पूरा सहयोग मिलता हैं। वे इन दिनोंअपनी बेटी को भी सुबह साइकिल सैर पर ले जाती हैं। पूजा कहती हैं कि मेरी दो बेटियां हैं। ‘पिंक पेडल’ भी मेरी बेटी हैं। अपने बचपन के बारे में बताते हुए पूजा ने भी कैंची साइकिल तकनीक का जिक्र किया। वे कहती हैं कि जब वे तीन चार साल की थी तब बड़ी साइकिल को कैचीं साइकिल की तरह चलाती थीं। उसे याद करना आज भी उन्हें रोमांचित कर देता हैं।

साइकिल के प्रति मेरे प्रेम को देख उनके ससुराल ही नहीं मायके में भी परिवार के बाकी सदस्य साइकिल का उपयोग दूध,सब्जी फल या अन्य बाज़ार का काम करते हैं। पूजा के लिए अपने पापा को साईकिल चलाने के लिए इस उम्र में प्रेरित करना एक कठिन चुनौती थी और जब पूजा की जिद से उनके पापा आज साइकिल चलाते हैं तो वह पूजा के लिए एक बड़ी उपलब्धि और,सम्मान से कम नहीं हैं।

इस संवाद में पूजा ने एक और विशेष बात कही हैं। वे मानती हैं कि साइकिल से जमाखोरी भी कम होती हैं। इसे समझाते हुए वे कहतीं हैं कि अगर आप साइकिल से बाज़ार खरीददारी करने जाते हैं तो सिर्फ उतना ही सामान खरीद पाएंगे जितना आप साइकिल पर ढो सकते हैं जबकि हम अन्य वाहन से जब बाज़ार जाते हैं तो अक्सर जरूरत से अधिक ही खरीददारी हम सब करते हैं। पूजा ने यह बात जिस सहजता से कही हैं उससे उनकी बुध्दिमतता का अंदाजा लगाया जा सकता हैं।

दुनिया बदल सकती है साइकिल

पूजा मानती हैं कि साइकिल में दुनिया को बदलने की ताकत हैं। तथा साइकिल मन,दिमाग और आत्मा को भी संतुलित व पुष्ट रखती हैं। साइकिल हमे एक बेहतर नागरिक तो बनाती ही हैं साथ ही एक अच्छा मनुष्य भी बनाती हैं। साइकिल चलाने से हम अपनी सेहत का तो ख़याल रखते ही हैं इस्सके अलावा हम अपने पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाते हैं। आज पूरी दिनिया को साइकिल की जरूरत हैं। पूजा अपने शहर को देश की साइकल राजधानी बनाना चाहती हैं।  उन्हें अपने शहर से और शहर को उनसे भी कई उम्मीदें हैं।

यह संवाद एक घंटे से अधिक समय का रहा अंत में पूजा ने अरावली की मिट्टी में साइकल से फिसल कर कूद के मिट्टी में दब जाने की घटना को भी साझा किया और यह सलाह भी दी कि आप भले ही साइकिल से लम्बी दूरी तय न करे पर प्रतिदिन साइकिल जरूर चलाएं। जयपुर में साहू की चाय सुबह साइकिल से जाकर पीना पूजा को पसंद हैं। मेरा रंग भी पूजा के साथ भविष्य में जब हालात पहले की तरह सामान्य हो जाएंगे तब जयपुर जा कर पूजा के शहर को पिंक पेडल की साइकिल से देखना चाहेगा।

एक शहर को साइकिल से देखना उस शहर को निकट से देखना होता है जिसकी यादें हमारी स्मृति में हमेशा तरो ताज़ा रहतीं हैं। उम्मीद है कि पिंक पेडल को जानने के बाद जो भी जयपुर जाएँगे वे शहर को साइकिल से भी देखेंगे।

Siraj Saxena
फोटोः त्रिभुवन देव

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं।  मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं। 

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