शालिनी श्रीनेत / अंकित तिवारी
खेती-किसानी में भले ही महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत से ज्यादा हो मगर देश के किसान आंदोलन के नेतृत्व में वे नजर नहीं आतीं। प्रतापगढ़ की केतकी सिंह इस धारणा को बदल रही हैं। भारतीय किसान यूनियन के महिला प्रकोष्ठ की प्रदेश अध्यक्ष केतकी छोटी उम्र से ही किसानों की समस्याओं पर गौर करने लगी थीं। आइये उनकी जुबानी सुनते हैं उनकी कहानी।
बचपन में देखी किसानों की दिक्कतें
सन् 1984 में जब मैं हाईस्कूल कर रही थी तो किसानों का एक बड़ा आंदोलन हुआ था और मुझे ये खबर सुनकर अच्छा लगा कि कोई तो है जो किसानों के लिए आंदोलन कर रहा है। मेरे पिताजी आर्मी से रिटायर थे। यूरिया खाद आदि के लिए कई बार जाना पड़ता था और लंबी लाइन लगानी पड़ती थी। वहीं पर कोई बड़ा व्यक्ति गाड़ी लेकर आ जाता था तो जितना चाहिए उतना उसे मिल जाता था। यह सब देखकर मुझे बड़ी तकलीफ होती थी। बचपन में इतनी समस्याएं देखीं कि सोचा मैं अगर कभी कुछ करूंगी तो किसानों के लिए ही करूंगी।
किसान संगठन में भागीदारी
सन् 1993 में मेरी शादी हो गई। सारे नियम कानून हम महिलाओं पर ही लागू होते हैं। घर बाहर निकलकर कुछ करना मुश्किल होता है। मैं भी ऐसी ही महिलाओं में एक थी। अच्छी बात यह थी कि मेरे पति मेरे मित्र जैसे थे। मेरी भावनाओं को समझते थे। उन्होंने तय किया कि बच्चे इस माहौल से बाहर निकलेंगे तो अच्छा रहेगा। और इस तरह हम प्रतापगढ़ शहर में आ गए। शहर में मैं घर का सारा काम निपटाने के बाद दिन भर बोर होती थी। लगता था कि समय बेकार जा रहा है। संयोग से मेरे पति की मुलाकात वहां के किसान संगठन के जिलाध्यक्ष से हुई। वे बोले कि मैं महिला प्रकोष्ठ के लिए जिलाध्यक्ष चाहता हूँ। अगर आपकी जानकारी में कोई नाम हो तो बताएं। तो मेरे पति ने कहा- मेरी पत्नी एमए हैं आप चाहें तो तो उनको ये जिम्मेदारी दे सकते हैं। उन्होंने हां कर दिया और मुझे मनोनीत कर दिया गया। मेरे मन में भी ये बात आ गई मैं भी कुछ कर सकती हूं, मैं तो अब जिलाध्यक्ष हो गई।
महिला होने की दिक्कतें
इस तरह से मैंने काम शुरू कर दिया। ब्लाक पर जाना, डीएम से मिला तहसील पर जाना, थानेदार से मिलना, यही मेरा काम था। जगह-जगह आंदोलन धरना-प्रदर्शन में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इस बीच कुछ लोगो को ईर्ष्या भी होने लगी थी। मेरे बाहर निकलने पर लोगों को ऐतराज होता था। दरअसल आज भी लोग नहीं चाहते कि महिलाएं हमसे आगे निकलें। मेरे अंदर भी जिद हो जाती थी कि मैं क्यों नहीं कर सकती? क्या कमी है मुझमें? मैं खुद को साबित कर को दिखाऊंगी। मैंने कहा- बाहर नहीं निकलूंगी तो काम कैसे करूंगी। अच्छी बात यह है कि मेरे पति हमेशा मेरे समर्थन में खड़े रहे। नतीजा यह हुआ कि मैं आगे बढ़ती गई। किसानों की समस्याओं को लेकर इंडोनेशिया, मलेशिया और नेपाल जैसे देशों में गई। एक बात और मैंने देखी कि हर जगह महिलाओं की एक ही स्थिति है चाहे वह कितना ही विकसित देश हो।
सरकारी योजनाएँ और किसानों की दिक्कतें
सरकार की बहुत सारी योजनाएं रहीं हैं। जो किसान के लिए उपयोगी हैं। मगर हमारे प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया जिससे किसानों की आत्महत्या रुके। किसान खेती का लागत मूल्य नहीं निकाल पा रहा है और किसान आत्महत्या कर रहा है। दरअसल स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट और उनकी सिफारिशों को लागू करना चाहिए था। हम लगातार यही मांग करते आए हैं। हमारे देसी बीज नष्ट होते जा रहे हैं। इन दिनों बीज हाइब्रिड होते हैं। विश्व व्यापार संगठन बीज के माध्यम से ही भारत में प्रवेश कर रहा है और यहां की चीजों को नष्ट करके भारत को गुलाम बनाना चाहता है।

खेती-किसानी और महिलाएं
पुरुष जब खेत से घर आता है तो आराम करता है। महिला खेत से आती है फिर खाना बनती है, अपने बच्चे देखती है और घर का सारा कामकाज निपटाती है। देखा जाय तो खेती में महिलाओं का योगदान पुरुषों से ज्यादा रहा है। लेकिन जब कोई संगठन बनता है तो पुरुष हावी रहते हैं। आज भी देखेंगे कोई संगठन या पार्टी हो महिलाओं को आगे नहीं पीछे ही बैठाया जाता है। लिहाजा सरकार कोई ऐसा योजना बनाए कि महिला गर्व से कह सके कि मैं खेती-किसानी करती हूँ। लोग भी किसान महिला को सम्मान दें। महिलाएं नौवें महीने तक पेट में बच्चा लेकर काम करती है। किसान महिलाओं की मजबूरी है कि बच्चा छोटा है, पीरियड है, या प्रैगनेंट हैं- उन्हें काम करना पड़ता है। हमारी जब अंतरराष्ट्रीय किसान संगठन में मीटिंग होती है तो वहां पर हम इस पर चर्चा करते हैं। यहां एशिया के हर देश की महिलाएं आती हैं, जैसे श्रीलंका, भारत, नेपाल, बांग्लादेश आदि।
सबसे अच्छा और सबसे बुरा अनुभव
मैंने अपने अनुभव से यह देखा है कि कि महिला ही चाहती है कि महिला आगे न बढ़े। यदि महिला डीएम होगी तो हमें सपोर्ट नहीं करेगी जितना कि पुरुष डीएम। दरअसल इसके पीछे दोषी महिला नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही पुरुष सत्ता काम कर रही है। जब तक पुरुष सत्ता रहेगी तब तक महिलाओं को अधिकार नहीं मिलेगा। मेरा सबसे खराब अनुभव यह था कि जब मैं घर से निकलती थी तो लोग ऐसे देखते थे जैसे मैं कोई गलत काम कर रही हूँ। उस समय बहुत बुरा लगता था। वहीं दूसरी तरफ जब मैं बाहर की दुनिया में गई, अपने जैसी और महिलाओं को काम करते देखा तो बहुत अच्छा लगा।
ग्रामीण लड़कियां खेती में आगे आएं
मेरा मानना है कि खेती-किसानी के काम में महिलाओं और लड़कियों को खुलकर आना चाहिए। गांव की लड़की भी यही सपने देखती है कि बंबई वाला लड़का मिले। लड़कियां पसंद नहीं करतीं कि उसका हसबैंड खेती करे। वे यह नहीं सोचतीं कि खेती नहीं होगी तो क्या खाएंगे। सारे लोग शहर चले जाएंगे तो खेती-किसानी कौन करेगा। मैं मेरा रंग के मंच से केंद्र सरकार के सामने अपनी बात रखना चाहती हूं कि किसी भी जिले के प्रशासानिक अधिकारी किसान महिला की समस्या सबसे पहले सुनें। उसे वहां घंटों इंतजार करना न पड़े। उसकी अगर कोई समस्या है तो प्रथम वरीयता दी जाए। मैं चाहती हूँ कि जो महिलाएं खेती-किसानी से जुड़ी हैं उन्हें आमदनी भी हो और वह आमदनी इतनी हो जाए कि वे खुद की और अपने बच्चों की परवरिश बेहतर ढंग से कर सकें।
Jai3768@gmail.com mobile no 8948974186 very good performance for women farmers.