सीरज सक्सेना
तहसीन ने 2019 में कन्याकुमारी से खारदुंग-ला पास (लद्दाख) तक चार हजार किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय की हैं। साइकिल से यह दूरी और पहाड़ों पर यह कठिन यात्रा करने वाली लड़कियों की संख्या कम ही हैं और तहसीन भी इस फेहरिस्त में अब शामिल हैं। तहसीन के जीवन में सड़क, पहाड़, बर्फ और हवा से जुड़े रोमांच का नज़दीकी रिश्ता रहा हैं।
साइकिल का जुनून
चतुर्थ वर्ष के दौरान तहसीन पुणे के पास सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला पर ट्रेकिंग करतीं और इसी दौरान अपनी छुट्टियों को मैनेज कर वे ऊटी भी गयीं यह सब करते हुए उनका पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित रहा उन्हें यह पता था कि उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करनी हैं। पर पढ़ाई के दौरान ही उन्हें अपना जूनून पता चल चुका था।
2013 में उन्होंने यूथ होस्टल एसोशिएशन ऑफ़ इंडिया द्वारा आयोजित माउंटेन बाईक स्पर्धा में भाग लिया। इस स्पर्धा में हिमाचल के जलोरी पास में उन्होंने साइकिल चलाई। यहीं उन्हें इसी एसोशिएशन द्वारा लेह में होने वाली माउंटेन बाइकिंग स्पर्धा के बारे में पता चला। यहां उन्होने फोटुला पास तक पहाड़ों पर साइकिल चलाई। धीरे धीरे उन्हें रोमांचक आयोजनों के बारें में पता लगता आया और वे उनमे प्रतिभागी के रूप में शामिल होती गईं।
कन्याकुमारी से लद्दाख
स्वयं को चुनौती देना उन्हें अब अच्छा लगने लगा। उनका मन अब दक्षिण से उत्तर तक एक लम्बी साइकिल यात्रा पर जाने का हुआ। और उन्होंने कन्याकुमारी से खारदुंग-ला पास (लद्दाख) तक साइकिल यात्रा करने का विचार बनाया। इतनी लम्बी यात्रा कैसे होगी यह उन्हें नहीं पता था। स्नातक करने के दौरान उन्हे एक से एक लोग मिले और उनका यह कठिन यात्रा करने का इरादा और बुलंद हुआ। 2019 में उन्होंने घर वालों से इस बारे में बात की। घर वालों ने कहा कि भारत में अकेली लड़की का साइकिल से लम्बी यात्रा करना सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा की अगर तुम्हे खुद को चुनौती देना ही हैं तो तुम चंडीगढ़ से लद्दाख तक यात्रा कर सकती हो।
घरवालों की यह बात सुन कर तहसीन को कुछ निराशा जरूर हूई पर उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उनके बहुत ज़िद करने पर घरवालों ने कुछ शर्तों के साथ उन्हें कन्याकुमारी जाने की इज़ाज़त दी। तहसीन बताती हैं कि पहली शर्त यह थी कि एक सेफ्टी कार उनके पीछे पीछे चलेगी। दूसरी शर्त यह थी कि कन्याकुमारी से बेंगलौर तक उस कार में मम्मी भी साथ चलेंगीं। ताकि अगर तुम बेंगलोर तक साइकिल नहीं चला पाई तो तुम्हें कार से रायपुर लाया जा सके।जबकि तहसीन कहतीं हैं कि वे चाहती थीं कि वे अपना सामान भी साइकिल पर ही लाद कर यह यात्रा करें। इस यात्रा में उनके साथी बने फरीदाबाद के पंकज। जब तहसीन ने पंकज से इस यात्रा के बारे में बात की तब वे तुरंत ही राज़ी हो गए। पंकज भी एक साइक्लिस्ट हैं।
तहसीन की साइकिल
तहसीन बताती हैं कि वे बचपन में साइकिल चलाने से बहुत डरती थीं। उनकी मम्मी बहुत कोशिश करती थीं कि वे साइकिल चलाना सीख लें। एक बार छुट्टियों में अपनी नानी के घर भी वे अपनी छोटी साइकिल ले कर गयीं .ताकि वे वहां साइकिल सीख सकें। वे जब दूसरी कक्षा में थीं तब साइकिल चलाना सीख गईं। स्कूल , ट्यूशन और घर के आस- पास साइकिल से ही धूमती थीं।
आज उनके पास ‘सरले’ टूरिंग साइकिल हैं। अपनी साइकिल के बारे में वे बताती हैं कि यह एक टूरिंग बाईक हैं जिस्सके पहिए हाईब्रीड साइकिल की तरह हैं और जिसका हेंडल रोड बाईक की तरह नीचे घुमा हुआ है। इस साइकिल पर अपना सामन लाद कर लम्बी दूरी से भी जाया जा सके इस बात को ध्यान में रख कर ही यह साइकिल डिज़ाइन की गई हैं। ट्रेवल बाईक भी इसे कहते हैं। सामान के वजन से भी साइकल चलाने में कोई अंतर् नहीं मालूम होता। और सड़क पर भी यह साइकल आसानी से कंट्रोल में रहती हैं। यह साइकिल तहसीन ने कन्याकुमारी से लद्दाख साइकिल यात्रा पर जाने के पूर्व ही खरीदी हैं। इसके पहले तहसीन के पास फायर फॉक्स की टारगेट साइकिल थी।
पहाड़ों की सैर
टुकड़ों टुकड़ों में तहसीन ने पहाड़ पर साइकिल के रोमांचक अनुभव हिमाचल,लेह और ऊटी में लिए हैं। लेह में हाफ मेराथन में भी वे दौड़ी हैं। रोमांच का उनके जीवन में किस तरह प्रवेश हुआ इस बात के जवाब में तहसीन कहतीं हैं कि सबसे पहले ट्रेकिंग उनके जीवन में आया। 2009 में तहसीन और उनकी बहन को उनके पिता ने यूथ होस्टल के बारे में बताया। हमारा पहला रोमांचक अनुभव ‘सरकोन्डी पास’ हिमाचल में हुआ। पहाड़ पर चढने का यह अनुभव बहुत अच्छा रहा और हम हर साल हिमाचल ट्रेकिंग पर गए। 2013 से यूथ होस्टल द्वारा आयोजित साइक्लिंग इवेंट में हिस्सा लिया और इस तरह दोनों रोमांच मेरे साथ जुड़े।
तहसीन कहती हैं कि इस तरह मैं ट्रेकिंग आयोजनों में हिस्सा लेने लगीं। मैं एक जोखिम पूरा करती थी और उस अनुभव से मुझे दस अन्य उपयोगी बातें पता चलती थीं।हर लक्ष्य बहुत कुछ सिखाता हैं। बीए, एलएलबी करने के बाद रोमांच में रूचि होने की वजह से तहसीन ने जवाहर पर्वतारोहण संस्थान पहलगाम कश्मीर से ट्रेकिंग में एक माह का बेसिक कोर्स किया। फिर क़ानून से सम्बंधित नौकरी की तलाश आरम्भ हुई।
पापा जैसी बेटी
पापा ने मेरी रोमाँच के प्रति रूचि को देख कहा कि अगर तुम्हें इसी क्षेत्र में कुछ करना हैं तो इसी में करो पर वही करो जिसमे तुम्हारा मन लगे। मेरे पिता का मुझे भरपूर सहयोग रहा हैं। आज भी मैं घर पर ही हूँ और मुझे पापा ही स्पॉन्सर कर रहे हैं। मैंने एक वर्ष तक लगातार भारत में जो भी एडवेंचर कोर्स होते हैं सब किए। जैसे पैराग्लाइडिंग क्लब पायलेट कोर्स कामशेट,एडवांस्ड माउंटेनीरिंग कोर्स दार्जलिंग, एडवांस्ड रॉकक्लाइम्
पिता का भी रुझान रोमांच में रहा हैं। तहसीन बतातीं हैं कि उनके पिता का भी एक मोटर बाईक समूह है। और वे भी मोटर साइकिल से रोमांचक यात्राएं करते रहें हैं। पर एक पिता का अपनी बेटी को भी रोमांच के क्षेत्र में आगे बढ़ाना यह आम बात नहीं हैं इसलिए मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरे पास ऐसे पिता हैं। मैं भी आत्मनिर्भर तो बनना चाहती हूँ पर नौकरी करने का दबाव मुझ पर कभी नहीं रहा। स्नातक करने के बाद मैंने दो तीन जगह काम किया हैं पर मैं अभी उच्च शिक्षा हासिल करना चाहती हूँ। रोमांच तो मरे जीवन का भिन्न अंग हैं और यह मैं पढ़ाई पूरी करने के बाद भी जारी रख सकती हूँ। मनाली पहुंचने से पहले रास्ते में कई मोटर बाइकर्स मिले।
छत्तीसगढ़ का गौरव
तहसीन छत्तीसगढ़ की पहली बेटी हैं जिन्होंने न सिर्फ स्पोर्ट्स ,माउंटरिंग आदि के इतने कोर्स किए हैं बल्कि वे प्रदेश की पहली लड़की हैं जिसने कन्याकुमारी से लद्दाख तक साइकिल से यात्रा की हैं। क्यों न प्रदेश सरकार को उन्हें उनकी इस उपलब्धि व सफलता के लिए उन्हें सम्मानित करना चाहिए। आखिर उनकी उपलब्धि प्रदेश के लिए भी मान की बात हैं। प्रदेश सरकार तो उन्हें छत्तीसगढ़ की साइकल राजदूत भी बना सकती हैं। तहसीन में इतनी काबिलियत हैं कि वे पूरे शहर को ‘बाईक सिटी’ बना सकतीं हैं /उनके पास नज़रिया हैं, तजुर्बा है और अनुभव भी हैं।
उनकी काबिलियत देख उन्हें स्पोर्ट्स और पर्वतारोहण को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी भी दी जा सकती हैं और इतनी होनहार लड़की की उपस्थिति को प्रदेश को इतना अनदेखा भी नहीं करना चाहिए। कि हमारे होनहार युवा मजबूरी में प्रदेश और देश छोड़ने पर मजबूर हो जाएं। उनके चले जाने के बाद हम सिर्फ उनकी उपलब्धियों को दूर से देखते ही न रह जाएं।
उम्मीद हैं छत्तीसगढ़ तहसीन की उपस्थिति को अनसीन नहीं करेगा और उन्हें अपने शहर, प्रदेश ,राज्य और देश का नाम ही नहीं उसके लिए काम करने के भी अवसर मुहैया कराएगा। आज देश का युवा समझदार हैं, होनहार हैं। जरूरत है उनके जूनून, उत्साह, ऊर्जा व उनकी योग्यताओं को प्रदेश के लिए सकारात्मक और व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल करने की। ये न हो कि घर से बाहर सम्मानित हो हामी अपने युवाओं को फिर मजबूरी और शर्म के साथ सम्मानित करना पड़े।

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं। मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं।