अनाहिता प्रसाद : 21 साल की उम्र में साइकिल से निकल पड़ी भारत भ्रमण को

अनाहिता श्रीप्रसाद

सीरज सक्सेना

बंगलुरू की अनाहिता श्रीप्रसाद मात्र 21 वर्ष की उम्र में लेह से कन्याकुमारी तक साइकिल से यात्रा करने वाली पहली महिला हैं। अनाहिता ने 2015 में यह रोमांचक यात्रा पूर्ण की है। बंगलुरू में जन्मी अनाहिता की शिक्षा बंगलुरू, हैदराबाद और चेन्नई में हुई। उनके मम्मी पापा भी यात्राओं के शौकीन थे। अपनी पहली साइकिल के बारे में वे बताती हैं कि जब उनकी दसवीं वर्षगाँठ मनाई गयी तब उनके माता पिता ने इन दोनों जुड़वां बहनो को दो साइकिल भेंट की। जिसे वे अपने घर के पास, पार्क में चलातीं रहीं।

बचपन की इन यात्राओं में उन्होंने दिल्ली, कलकत्ता आदि शहरों का भ्रमण किया है। इन यात्राओं के दौरान मिले रोमांचक अनुभव आज भी अनाहिता को याद हैं और यहीं से अनाहिता ने अपने जीवन में यात्राओं को शामिल करने का मन बनाया। उच्च शिक्षा के उपरान्त अनाहिता ने एक महीने अकेले ही मुंबई, गोव, राजस्थान, लेह और लेह से मनाली की यात्रा की है। इसे वे अपना बैग-पैक टूर कहतीं हैं। नवम्बर में अमूमन मनाली से लेह का रास्ता हिमपात की वजह से बंद होता है पर इस बार अधिक बर्फ़बारी न होने की वजह से लेह तक रास्ता खुला था।

हिंदी फिल्में और भारत भ्रमण

वे बताती हैं कि लेह का अनुभव बहुत ही दिलचस्प है और हर भारतीय को अपने जीवन में कम से कम एक बार लेह की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए। उन्होंने अपनी यात्रा बस और ट्रेन से पूरी की। कश्मीर भी वे अकेली दो माह रही हैं। यही उन्होंने पर्वतारोहण का कोर्स भी किया है। कश्मीर की ही वादियों में उनकी मुलाकात फैज़ल से हुई जिन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक अकेले साइकिल से भ्रमण किया है। उनसे मिलकर ही अनाहिता के मन में यह विचार आया कि उन्हें भी यह रोमांचक यात्रा करनी चाहिए।

अनाहिता के मन में यह विश्वास था कि वे ये यात्रा अकेली कर सकती हैं। अनाहिता को जम्मू तवी से कन्याकुमारी तक चलने वाली भारतीय रेल जो उत्तर से दक्षिण तक का सफर पांच दिन मे तय करती है, महत्त्वपूर्ण लगती है। पूरे भारत को इस ट्रेन से देखना, इस ट्रेन में सफर करना रोमांचक लगता है। बचपन से ही हिंदी फिल्मों को देख कर जो हिंदी उन्होंने सीखी वह इस यात्रा में बहुत काम आयी। वे साधारण और उपयोग में आने वाले वाक्य बना लेती हैं जिससे उन्हें कभी भी, कहीं भी बात करने में कोई समस्या नहीं आयी।

लेह से श्रीनगर तक

लेह से श्रीनगर तक चूँकि सड़क के किनारे ढाबे या छोटी होटल नहीं हैं अतः उन्हें अपने सफर के इस हिस्से में खाने को लेकर दिक्कत आती इसलिए अनाहिता से अपने साथ सूखे मेवे फल इत्यादि रखे थे। मेवों में छुपी ऊर्जा उनके लिए पर्याप्त थीं और साथ रखने मे भी उन्हें कोई उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई क्योकिं वजन में भी ये हलके ही होते हैं। चूँकि ऊँचाई पर आक्सीजन की मात्रा कम होती हैं और साइकल के पीछे लगे बेग के वजन के साथ साइकल चलने का अभ्यास उनके पास नहीं था। जबकि साइकल पर लगे उनके बैग का कुल वजन पांच-छह किलोग्राम ही था। पर इतने वजन के साथ भी लेह के रास्तों के ऊंचाई भरे रास्ते पर साइकल चलाना बहुत कठिन है।

फोर्तुला पास पार करने के बाद पक्की सड़क नहीं थी और ट्रफिक जाम भी लंबा था। सेना के अनेकों ट्रक इस जाम में खड़े थे पतली सड़क पर जहां एक और गहरी खाई थी और दूसरी और कच्ची सड़क और वाहनों की लम्बी क़तार के बीच से साइकल चलना जोखिम भरा अनुभव रहा है। वहीँ जब ढलान आती तो साइकिल सरपट दौड़ती। अनाहिता खुश हो कर कहती हैं कि ढलान पर साइकिल चलना मुझे बहुत अच्छा लगता है। लेह में बहुत मोटर साइकिल सवार मिले और जब वे मुझसे आगे निकलते तो मुझे अंगूठा दिखा कर मेरा हौसला बढ़ाते हुए आगे निकलते। लेह मोटरसाइकिल सवारों का भी प्रिय गंतव्य हैं।

लेह में साइकिल चालकों को कुछ कठिनाई होती है और साइकल सवार को अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना जरुरी होता हैं। मैं सभी को यही सलाह देना चाहती हूँ कि वे अधिक न खाएँ कैलोरी के लिए सूखे मेवे सबसे उपयुक्त हैं। चॉकलेट भी समय समय पर खा सकते हैं। साइकल चलाते हुए हमारे शरीर से नमक की कमी हो जाती हैं इसकी पूर्ति के लिए नमक के साथ नीबू-पानी सबसे अच्छा ऊर्जामयी पेय हैं।

मोनट्रा साइकिल कंपनी

पुणे के पास सह्याद्रि और राजस्थान में अरावली की ऊँची नीची सड़कों पर भी साइकल चलाना एक कठिन व यादगार अनुभव है। वहीँ दिल्ली से पुणे का रास्ता सपाट है। इस यात्रा के लिए उन्होंने अपने माता-पिता को भी मना लिया पर वे एक अकेली लड़की की इस यात्रा को लेकर वे चिंतित जरूर थे। बहरहाल अनाहिता ने तय किया कि वे लेह से कन्याकुमारी साइकिल यात्रा करेंगी। इस यात्रा के लिए उन्हें कुछ अभ्यास की भी जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने बंगलुरू के ऊँचे-नीचे रास्तों पर खूब साइकिल चलाई।

लेह तक वे अपनी साइकिल खोलकर हवाई जहाज से अपने ही साथ ले गई थीं। लेह में उन्होंने खुद ही अपनी साइकिल को जोड़ा। अपनी साइकिल की देखरेख करने के लिए हर साइकिलिस्ट की तरह अनाहिता के पास भी तकनीकी हुनर है। लेह में उनकी मुलाक़ात सिंगापुर की एक महिला मोटरसाइकिल चालक से हुई जो सिंगापुर से लंदन अपने वेस्पा स्कूटर से यात्रा कर चुकी थीं और अब वे लेह की सड़कों पर थीं। अनाहिता के पास मोनट्रा हाईब्रीड साइकिल हैं। जिससे उन्होंने यह सफर तय किया है।

वे बताती हैं कि अपनी इस यात्रा की पोस्ट फेसबुक पर लगाने के बाद उन्हें टीआई साइकिल के मार्केटिंग विभाग में काम करने वाले एक व्यक्ति का सन्देश आया। जिसमे वे उनकी इस यात्रा के लिए कुछ मदद करने की ख़्वाहिश रखते हैं। अनाहिता के पूछने पर उन्होंने बताया कि कभी वे भी अहमदाबाद से मुंबई साइकिल से यात्रा करना चाहते थे पर वे नहीं कर पाए अतः उन्हें अनाहिता के इस प्रयास को कुछ सपोर्ट करने में ख़ुशी मिलेगी। इस तरह मोनट्रा साइकिल कंपनी से अनाहिता को स्पांसर किया।

चेन्नई में तूफान

यात्रा की तैयारी के लिए गूगल मानचित्र की मदद से एक रूपरेखा तैयार की गयी। हालांकि कई बार उन्हें अपने रास्ते बदलने भी पड़े। जब वे दिल्ली आयीं तो उन्हें आगरा ग्वालियर होते हुए जाना था पर दिल्ली में उन्हें बताया गया कि आगरा के बाद एक अकेली लड़की का चम्बल और फिर ग्वालियर के रास्ते साइकिल से जाना सुरक्षित नहीं हैं। अतः उन्हें अपना रास्ता बदलना पड़ा और नया रास्ता बेशक लंबा था पर अब इसी रास्ते से ही उन्हें अपनी यात्रा को जारी रखना था। मथुरा पहुंच कर उन्होंने जयपुर होते हुए कन्याकुमारी पहुंचने का नया मानचित्र बनाया। रात होने के पहले कोई बड़े या छोटे शहर में जहां होटल या अच्छे गेस्ट हाउस हो रुकना बेहतर हैं। कभी होटल ,कभी किसी गेस्टहाउस तो कभी किसी मित्र के घर वे रुकतीं।

बंगलुरू से कन्याकुमारी तक पुरे रास्ते बारिश व हवा का साथ रहा। उस बरस चेन्नई में तूफ़ान आया था जिससे बहुत हानि हुई थी और इसका असर आगे कन्याकुमारी तक रहा। बारिश की वजह से बंगलुरू में एक हफ्ते रुकना पड़ा। क्योंकि आगे सफर के लिए मुझे वाटरप्रूफ बेग की जरूरत थी जो उन्होंने बंगलुरू से ही ख़रीदा। एक हफ्ते में भी मौसम में कुछ बदलाव नहीं हुआ और फिर उन्होंने अपना सफर जारी रखा। यहां से कन्याकुमारी तक मेरे साथ उनकी बहन अदिति ने भी साथ में साइकिल चला कर मेरी इस यात्रा में मेरा साथ दिया। बंगलुरू में रुकने की वजह से उनकी यात्रा दो महीने और कुछ दिनों में पूरी हुई।

विपरीत हवा के बारे में पूछने पर अनाहिता ने बताया कि कश्मीर घाटी में ढ़लान पर साइकिल चलाते हुए साइकिल की गति धीमी थी मुझे लगा कि शायद साइकिल के पहियों में हवा कुछ काम होगी पर फिर मैंने जाना कि हवा विपरीत हैं इसी वजह से ढलान पर भी साइकिल चलाने में मुझे ज़ोर लगाना पड रहा हैं। जब हम साइकिल चलाने हैं तब हवा की दिशा का भी बहुत महत्त्व व योगदान रहता है अगर हवा पीछे से आगे की तरफ हैं तब हवा आपकी मदद करती हैं और कहीं हवा की गति विपरीत हो तब समतल सड़क पर भी साइकल चलाना कठिन हो जाता है।

मददगार दोस्त

लेह से यात्रा शुरू करने के पहले अनाहिता एक दिन लेह में एक मित्र के घर रहीं। सोनमर्ग से श्रीनगर के बीच हुए एक दिलचस्प अनुभवों के बारे में अनाहिता ने बताया कि जब उनका कॅरियर टूट गया और उन्हें एक रस्सी की तलाश में एक दूकान जाना पड़ा तो दुकानदार ने अकेली लड़की की इस साहसी यात्रा के बारे में जब जाना तो उन्हें अपने साथ अपने घर चलने का आग्रह किया। दुकानदार अपनी दो बेटियों को अनाहिता से मिलवाना चाहता था ताकि वे अनाहिता से मिल कर कुछ प्रेरणा ले सकें। अनाहिता उनके घर जाकर दोनों लड़कियों से मिली उस परिवार ने अनाहिता का मन से स्वागत किया और उन्हें दुआयें देते हुए रुखसत किया।

ऐसा ही एक अनुभव अनाहिता को महाराष्ट्र में हुआ। जब वे कोल्हापुर पहुंचने वाली थीं उसी दिन अखबार में उनकी यात्रा के बारे में एक लेख छापा जिसमे आज उनके कोल्हापुर से गुजरने का जिक्र था। रास्ते में उन्हें एक आदमी मिला जो अपने हाथ में नारियल पानी लेकर कर तीन घंटे से सड़क पर खड़ा अनाहिता की प्रतीक्षा कर रहा था। इस अनजान आदमी का उनकी यात्रा के प्रति यह सम्मान देख अनाहिता को बहुत हौसला मिला और ख़ुशी भी हुई।

पंजाब में उन्होंने अपना हर भोजन मेक्डोनाल्ड में ही किया। वहां मुख्य मार्ग के पास कई मेकडानल्ड रेस्त्रां हैं और अनाहिता कहती हैं कि उन्होंने अपने जीवन में पंजाब में ही सबसे अधिक मेक्डोनाल्ड में भोजन का आनंद लिया है। बुरे अनुभवों के बारे में बातें न करते हुए अनाहिता कहती हैं कि अच्छे अनुभवों के अनुपात में बुरे अनुभव बहुत की कम हुए हैं और वे सिर्फ अच्छे अनुभवों के बारे में ही बात करना चाहती हैं।

अच्छे अनुभव

साइकिल से यात्रा करने पर हम सब कुछ साफ़ और पारदर्शिता में देखते हैं हमें देश की संस्कृति को ठीक से देखने का मौका मिलता हैं। वे कहती हैं कि राजस्थान के अपने शहर में उन्हें वहां जीवंत चित्र दिखाई देते रहीं। वहां का रंग-बिरंगा पहनावा सुंदर भूदृश्य सचमुच सुन्दर हैं। बुलंद दरवाज़े के बारे में किताबों में पढ़ा था और उसकी तस्वीर भी देखी थी पर उसके भीतर से साइकिल पर गुजरना मेरे लिए न भुलाने जैसा अनुभव हैं। हमारा देश सुन्दर हैं और यहां हमें हम जो चाहते हैं कर सकने की संभावना है। मेरे इस दो माह से भी अधिक के इस सफर में सिर्फ दो ही असुरक्षित अनुभव हुए हैं और कई अच्छे अनुभव मेरी स्मृति में बसे हैं।

जहां तक असुरक्षा का प्रश्न हैं तो असुरक्षा तो हर जगह हमारे साथ हैं चाहे आप साइकिल चलाएं या कोई अन्य वाहन। चाहे आप अपने प्रदेश में हो या शहर में। पर हम अपने व्यवहार और आत्मविश्वास से अनहोनी को टाल सकते हैं। मेरी यात्रा में मैंने बहुत महिलाओं और लड़कियों से बात की है। आज की लड़कियां वाचाल हैं और आत्मविश्वास की भी उनमें कमी नहीं हैं। हर लड़की किसी न किसी खेल या कला से जुडी हैं। हमारी लड़कियां गुणी हैं बस उन्हें अच्छे अवसर और उन पर भरोसा दिखाने की जरूरत हैं।

अनाहिता की इस यात्रा से दिल्ली के आकाश ओसवाल को तो प्रेरणा मिली ही साथ ही कुछ अन्य लड़कियों से भी अनाहिता को देख कर कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल से यात्रा की हैं। हमारे माता पिता हमें चाहते हैं और वे हमें कुछ भी जोखिमभरा काम करने से रोकते हैं पर उन्हें हमने हम पर भरोसा करना सिखाना हैं। हमें अपनी बंदिशों को पहचान कर उसे तोड़ कर कुछ बड़ा करने का सपना अवश्य देखना चाहिए।

सफर जारी है

साइकिल सिर्फ शरीर ही स्वस्थ नहीं रखती बल्कि हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ाती हैं और हमारी दृष्टि को भी सकारात्मक रखती हैं। मेरी एक साइकिल चोरी होने के बावजूद भी मैंने फिर एक साइकिल ली और मैं आसपास के अपने काम या दोस्तों से मिलने के लिए भी साइकिल का ही प्रयोग करती हैं। जब में छोटी थी तब दौड़ती नहीं थी पर अब मैं दौड़ती भी हूँ और मैंने हॉफमेराथन भी पूरी की हैं। किसी भी तरीके से ही सही हमने सक्रीय होना अत्यंत आवश्यक हैं देह की सक्रियता हमें तनावमुक्त रखती हैं। जब साइकिल चलाते हुए हवा चेहरे को छूती हैं तब कई मधुर स्मृतियाँ याद आती हैं।

अनाहिता जिन्होंने उत्तर से दक्षिण तक यात्रा की है, अब वे पूर्व से पश्चिम की भी साईकिल यात्रा करना चाहतीं हैं और साथ ही पी टू पी (पूरी से पोरबंदर) और के टू के (कोलकता से कच्छ) तक भी साइकिल से ही यात्रा का उनका सपना है। लड़कियां कमजोर होती हैं अमूमन ऐसा कहा जाता है पर अनाहिता जिन्होंने लेह से कन्याकुमारी तक अकेले ही साइकिल यात्रा की है यह इस बात को बताता है की लड़कियां, साहसी व बहादुर होती हैं और वो सब कुछ कर सकतीं हैं जो वो ठान लेती हैं।

Siraj Saxena
फोटोः त्रिभुवन देव

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं।  मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं। 

आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है