सीरज सक्सेना
सोपान जोशी को दिल्ली, नोएडा और गुड़गांव के साइक्लिस्ट कितना जानते हैं यह कहना उतना ही मुश्किल है जितना कि दिल्ली के साइकिल प्रेमियों से ‘जल थल मल’ किताब और उसके लेखक के बारे में पूछना। सोपान खुद को न तो गांधीवादी न ही पर्यावरणविद मानते हैं और ना ही चिंतक। उनके विचार में चिंता हर आदमी के साथ होती है अतः हर व्यक्ति चिंतक हैं।
साइकिल से प्रगाढ़ हुई मित्रता
ये उन दिनों की बात हैं जब दिल्ली मेरे लिए नई थी और मैं दिल्ली के लिए। इस नएपन में ‘बहुवचन’ पत्रिका में योगिता शुक्ला द्वारा लिए गए अनुपम मिश्र जी के एक दुर्लभ साक्षात्कार को पढ़ कर अनुपम जी से मिलना हुआ और दोस्ती का यह सिलसिला अनुपम जी के अंतिम दिनों तक बना रहा। अनुपम जी के साधारण पर आकर्षक दफ्तर में ही एक दोपहर जब मैं पहुंचा तब सोपान भी वहीं बैठे अनुपम जी से बतिया रहे थे। अनुपम जी ने ही सोपान जोशी से परिचय करवाया।
पढ़िए ‘किस्से साइकिल के’ : साइकिल हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है
हम दोनों लगभग हम उम्र ही हैं। फिर यदा-कदा और भी मुलाकातें होने लगीं। उन दिनों मेरे पास जब खुद के ही रहने की जगह तंग थी, ऐसे में भला साइकिल का ख़याल कहाँ से आता। हालांकि मैं दिल्ली के पहले जहां भी रहां मसलन इंदौर और भोपाल में हमेशा मेरे साथ साइकिल रही। और ये दोनों शहर मैंने साइकिल से ही देखे हैं। पर दिल्ली आते ही यह सिलसिला टूट गया। पर जब एक दिन सोपान को गाज़ियाबाद में उनकी साइकिल के साथ देखा तब से उनसे दोस्ती और गाढ़ी हुई।
साइकिल और गांधीवाद
सर्दियों की एक दोपहर जब मैं अपनी साइकिल से गांधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुंचा तो सोपान से फिर भेंट हुई उन्होंने अपनी मोटरबाइक दिखाई और मैंने अपनी साइकिल। इस तरह उस प्रांगण से शुरू हुई दोस्ती अब दो चाको के बीच आज भी चलायमान हैं। जंगपुरा ,निर्माण विहार और नई दिल्ली के कुछ इलाकों में सोपान को साइकिल पर यदा-कदा देखा जा सकता है। यह वैसा ही है जैसे दिल्ली में हरे कबूतर का दिख जाना।
सोपान चूँकि अकेले ही साइकिल अधिक चलाते हैं अतः यही वजह हैं कि दिल्ली के अन्य अनेकों साइकिल प्रेमी उन्हें कम ही जानते हैं। वैसे भी साइकिल एक एकांत सवारी ही है। ये अलग बात हैं कि अघिकतर साइक्लिंग क्लब समूह में ही साइकिल चलाते हैं। अक्सर देखा गया हैं कि जो असल में गांधीवादी नहीं होते हैं वे ही स्वयं को गांधीवादी कहलवाते हैं और जो गांधीवादी होते हैं उन्हें गांधीवादी कहलाना पसंद नहीं हैं और न ही इस बारे में भी किसी तरह का प्रसार और प्रचार वे किसी को करने देते हैं।
घर की सदस्य साइकिल
मेरा रंग ‘किस्से साईकिल के’ श्रृंखला में दूसरे मेहमान थे सोपान जोशी। वे सहजता से बोलने के लिए विख्यात हैं। उनकी बातों से उनके पिता और हिंदी के मशहूर पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी जी के भी साइकिल और दाल बाफले प्रेम के किस्से हमें मालूम हुए। अपने काम (पत्रकारिता) पर साइकिल से जाने और आने के किस्से भी सोपान ने बड़े दिलचस्प ढंग से सुनाए। दिल्ली में डकैती से लेकर साइकिल का चोरी होना भी आम बात हैं। उनकी तरह मेरी भी साइकिल मेरी ही बिल्डिंग के नीचे से चोरी हो चुकी हैं। तब से मैं अपनी साइकिल दूसरी मंज़िल पर अपने घर पर ही अपने पास रखता हूँ।
वे भी अपनी साइकिल अपने घर में ही रखते हैं। उनकी हाइब्रीड साइकिल उन्होंने इस लाइव बातचीत के दौरान दिखाई भी थी। उनके घर में साइकिल एक सदस्य की तरह हैं और वे उसका हालचाल खैर-खबर लेते रहते हैं। जब कुछ दिन काम की मसरूफ़ियत की वजह से वे साइकिल नहीं चला पाते होंगे तो उनकी साइकिल खुद ही उन्हें टोक देती होगी और फिर वे उसके साथ सैर पर निकल जाते होंगे। दिन हो या रात साइकिल चलाने में है तो कुछ बात।
साइकिल पर बैरिस्टर गांधी
दिल्ली जैसे महानगर में जहां किसी भी प्रकार का चार या अधिक चक्कों वाला कोई भी वाहन हासिल कर लेना आसान है पर साइकिल लेना और उसे चलना उतना ही कठिन और जोखिमभरा हैं। पर साइकिल चलाने का जो सुख और अनुभव हैं वह मेरा रंग की बातचीत में सोपान ने बहुत ही सरल और रसपूर्ण ढंग से व्यक्त किया है। उनसे हुए संवाद में उन्होंने अपने मोटरसाइकिल के अनुभव भी साझा किए। और गांधी जी का भी एक साइकिल से जुड़ा रोचक प्रसंग सुनाया।
अपनी किताब ‘एक था मोहन’ में छपा एक चित्र भी जो उन्होंने दिखाया और यह रेखांकन कलाकार सोमेश से उन्होंने अपनी इस किताब के लिए बनवाया है। इस चित्र में बैरिस्टर गाँधी कोट पेण्ट पहने साइकिल चलाते नज़र आ रहे हैं और उनके पीछे ट्राम भी पार्श्व में दिख रही है। सोपान बताते हैं कि गाँधी जी चाहते तो ट्राम से भी अपने दफ्तर आ जा सकते थे पर वे इसलिए नहीं जाते थे क्यूंकि बाकी हिंदुस्तानी ट्राम से सफर नहीं कर सकते थे।
साइकिल आनंद के लिए
साइकिल चलाते हुए हेलमेट और दस्ताने पहनने के महत्व और उसकी अनिवार्यता पर भी सोपान ने अपने अनुभव बताए। साइकिल चलाते हुए ट्रैफिक से बचा जा सकता है और बेवजह के चालान से भी बचा जा सकता हैं। दिल्ली की सड़कों पर लोगों में गर्मी का जो स्वभाव है, साइकिल चालक को देख लोगों का मन भी थोड़ा पिघलता है। कारों में बैठे बच्चे भी देर तक मुड कर साइकिल चालाक को देखते हैं।
साइकल चलाने का जो सहज आनंद हैं वह अन्य वाहन चालकों तक भी किसी तरह पहुँचना चाहिए ताकि वे आनंद के लालच में साईकिल को अपनाए। वे कहते हैं कि मैं साइकिल इसलिए नहीं चलाता हूँ कि मैं पर्यावरणविद हूँ या मैं साईकिल इसलिए भी नहीं चलाता हूँ कि मुझे पर्यावरण की चिंता हैं बल्कि मैं अपने आनंद के लिए साइकिल चलाता हूँ। दूसरों को नसीहत देने की जो हमारी प्रवृत्ति हैं उसको दूर करने का एक ही तरीका है आनंद। हमें आनंद में देख दूसरे स्वतः ही उस काम को करेंगे जिसको करते हुए वे हमें आनंदित होता देखते हैं।
पहियों का संतुलन, मन का संतुलन
चार चक्को और दो चक्कों पर बात करते हुए सोपान ने बड़ी खूबसूरती से मानव देह का उदाहरण देते हुए दो पहियों को दो पैरों की संज्ञा दी। और यह भी बताया कि दो पहियों का संतुलन बनाते हुए अपना मानसिक संतुलन भी बना रहता हैं। साइकिल से सम्बंधित ‘कैंची’ शब्द भी इस बातचीत में बहुत दिनों बाद दोहराया गया।
हिंदी में साइकिल पर सोपान का वक्तव्य सार्थक और सुनने-गुनने वाला रहा। इस वार्तालाप में गाज़ियाबाद, नोएडा औरमध्यप्रदेश से भी लोग जुड़े। अलीगढ़ से कवि अरुण आदित्य और इंदौर से पत्रकार रविंद्र व्यास संजय काक, दिल्ली के कवि-कहानीकार सैयद अय्यूब और अन्य स्थानों के दर्शक भी अपने कमेंट और प्रश्नों के साथ जुड़े रहे।
सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं। मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं।