मिलिए श्रुति टी.एस. से – साइकिल सवारी, भारत भ्रमण और देश भर में जेंडर पर बातचीत

श्रुति टीएस

सीरज सक्सेना

हिमालय से प्रेम करने वाली श्रुति ने बचपन में भी खूब साइकिल चलाई है। वे अपने गृहनगर मैसूर में साइकिल से ही स्कूल आती-जातीं थीं। जब कालेज पहुंचीं तो साइकिल छूट गयी। बंगलौर में नौकरी के दौरान पुनः 2013 में साइकिल को अपनाया। दो वर्ष नौकरी करने के बाद उन्हें लगा कि नौकरी करने के अलावा भी जीवन में बहुत कुछ अर्थपूर्ण और अपने मन का किया जा सकता हैं। वे कहतीं हैं कि मैं छोटे शहर से हूँ, जहां पढ़ना लिखना और अच्छी नौकरी करते हुए जीवन जीने का चलन है और ऐसा ही देश के अन्य हिस्सों में भी सोचा और अपनाया जाता हैं। पर मुझे जीवन में बहुत कुछ देखना और जानना था।

जीवन की नई दिशा

2013 ही वही साल था जब मैं बहुत कुछ कर रही थी- जैसे दौड़ना, साइकिल चलाना और ज़ुम्बा भी मैं करती थी। साइकिल जब मेरे जीवन में आयी तो मैं मैंने जीवन को सही मायने में देखना समझना शुरू किया। मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं इस भावना को ठीक से बयान कर सकूँ। इसे बरस ‘ग्रेट मलनार्ड चैलेंज’ साइकिल प्रतिस्पर्धा में भी मैंने भाग लिया। यह यात्रा बेंगलोर से शुरू हो कर वेस्टर्न घाट कर्नाटक होते हुए शिमोगा में संम्पन्न होती हैं। यह मेरा पहला मौका था कि जब मैं गियर वाली साइकिल चला रहीं थी। इसके पहले मैसूर में स्कूली पढ़ाई के दौरान ‘लेडी बर्ड’ (जो एक साधारण साइकिल है) साइकिल ही चलाई थी।

मुझे जीवन में कुछ करना था और साइकिल के साथ मुझे लगा कि मैं कुछ रोचक और रोमांचक कर सकती हूँ। मुझे कुछ अलग करने की ललक हमेशा रहती हैं। मेरी इसी सोच ने मुझे अपनी अच्छी नौकरी को भी छोड़ने पर मजबूर किया और मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला खुद ही सोच समझ कर लिया था। मुझे आज भी इसका कोई पश्चाताप नहीं हैं। तो पहले ही दिन मैंने इस स्पर्धा में साइकिल चलने की कोशिश की पर मैं नहीं चला पायी। दूसरे दिन भी कोशिश करने के बावजूद भी मुझसे साइकिल नहीं चली। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और तीसरे दिन ही मैंने अपनी पहली सेंचुरी राइड पूरी की। सौ किलोमीटर साइकिल चलाना मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि रही।

साइकिल का साथ

श्रुति टीएस
साइकिल की सैर हमारी सोच बदल देती हैः श्रुति

यह बात सही है कि साइकिल की एक छोटी यात्रा भी आपके मन-मस्तिष्क में बड़ा और सकारात्मक बदलाव करती है। जीवन के बारे में सोच ही बदल देती है- साईकिल की एक छोटी सी सैर। इस स्पर्धा के दौरान ही मुझे अपनी मानसिक शक्ति का एहसास हुआ और तब से साईकिल मेरे साथ ही रही है। मैंने बेंगलोर से मैसूर, मैसूर से केरल, मैसूर से कुर्क भी साइकिल यात्रा की हैं पर ये यात्राएं 150 या 200 किलोमीटर की रही हैं। दिल्ली के आकाश और नवीन से मुझे कश्मीर से कन्याकुमारी तक साईकिल यात्रा करने की प्रेरणा मिली। इन दोनों के बारे में मैंने जाना। मेरे मन में ख्याल आया कि मैं क्यों नहीं यह यात्रा कर सकती हूँ। यह भी मैं जानती थी कि पुरुषों के लिए घर से बाहर दो महीने के लिए रहना आसान है, वहीँ भारतीय लड़की (जो अकेले ही यह लंबा सफर तय करना चाहती है) के लिए यह आसान नहीं है।

आपने दोस्तों से मैंने यह विचार साझा किया। किसी ने कहा यह पागलपन है। किसी ने कहा की यह अकेली लडकी के लिए असम्भव है। जितने लोग उतनी बातें। किसी ने कहा कि यह कठिन यात्रा कुछ ही लोग कर सकते हैं तो किसी ने कहा कि यह यात्रा तुम्हारे बस की नहीं है, तुम नहीं तय कर पाओगी यह सफर। हर बात हतोत्साहित करने वाली ही थी। पर मुझे अपनी भीतरी शक्ति पर यकीन था, लिहाजा मैंने इन बातों पर ध्यान न देते हुए अपना काम जारी रखा और यात्रा से सम्बंधित जानकारी जुटाकर अपने लिए एक मानचित्र बनाया।

8 फरवरी 2017 को मैंने अपनी यात्रा शुरू की जो मार्च 24 को कन्याकुमारी में ख़त्म हुई। यह अब तक मेरी सबसे रोमांचक यात्रा रही है। मम्मी ने मुझे रोका नहीं बस वे मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित थीं। मैंने कहा कि मैं कोशिश करती हूँ अगर मुझसे नहीं हुआ तो मैं दस दिन में वापस आ जाऊंगीं। मेरे पिता 2016 में नहीं रहे। मेरी दीदी और भैया हैं जिन्हें मैंने विस्तार से अपनी इस यात्रा की योजना बतायी थी और अपने ठहरने की जगहों के बारे में विस्तार से बताया था।

यात्रा के साथ संदेश

मेरे लिए यह सिर्फ साइकिल यात्रा नहीं थी बल्कि एक सन्देश भी था जो मैं इस यात्रा के माध्यम से साझा करना चाहती थीं, जिसे दूसरी लडकियां भी देखे और अपने भीतर की शक्ति को जानें ताकि वे जो चाहती हैं वे कर सकें। ‘स्टेपआउट जनरल’ देश में लिंग भेद रहित भारत के लिए एक पहल हैं। इस सन्देश के साथ मैंने अपनी यात्रा पूरी की है। अपनी यात्रा के दौरान मैंने रास्ते में स्कूलों में इसी विषय पर व्याख्यान दिए। हमारी लड़कियों के पास बहुत से सपने हैं।

कई बार उनकी बातें अनकही रह जाती हैं। वे अपने ही लोगों से अपने मन की बात नहीं कह पातीं हैं। यही कहा जाता है कि तुम लड़की हो तुम्हे इस तरह नहीं सोचना चाहिए। मैं यही परिधि तोड़ना चाहती थी जिसमें वो अपनी रूचि की शिक्षा हासिल कर सकें, अपने विचार से अपने कदम तय कर सकें, अपने सपने देख सकें और उन्हें साकार कर सकें। मैं उन सभी लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल का काम कर रही थी। सिर्फ लड़की होने से क्या कोई अपनी तरह से जीने का अधिकारी नहीं हैं?

‘स्टेपआउट जनरल’ एक विचार हैं और कश्मीर से कन्याकुमारी तक मेरी इस साइकिल यात्रा के जरिए इस विचार को मैंने कई लड़कियों तक साझा किया। हैं और आज भी बढ़ाने की कोशिश कर रही हूँ। भारत को लिंगभेद रूढ़ि से मुक्त करना ही मेरा सपना हैं। साइकिल यात्रा खत्म करके मैं सोचने लगी कि यह कोई ऐसा काम नहीं है जो पेंतालिस दिनों, एक साल ये तीन साल में पूरा हो सके। देश में ही नहीं लिंग भेद की समस्या पूरे विश्व में हैं। इसके लिए युवा वर्ग को इसके प्रति जागरूक करने की ख़ास जरूरत हैं। क्योकि देश का युवा ही आगे बदलाव ला सकता हैं और यह तभी सम्भव है जब उसे इस लिंग भेद के बारे में विस्तार से बताया जाए। उन युवाओं को जो समाज, लिंग, व्यक्ति और भिन्नताओं के बारे में जानना शुरू करते हैं।

जेंडर समानता की बात

स्टेपआउट जनरल के जरिए मैं यही काम करना चाहती हूँ। मैसूर में मैं निजी स्कूल में बच्चों के साथ इस विषय पर जागरूकता कार्यशाला आयोजित करती हूँ। वहीँ सरकारी स्कूल में यही कार्यशाला वहां के बच्चों के लिए मुफ्त में करती हूँ। कुछ काम करने के बाद स्थानीय प्रशासन को मैं इस मुहीम में सहभागिता के लिए कहूँगी। इस लॉकडाउन की वजह से पिछले कुछ महीनों से कुछ काम नहीं हुआ हैं। मेरा काम स्कूली परिसर में ही होता हैं और इन दिनों स्कूल बंद हैं और मेरा काम भी। अपने शहर मैसूर के बारे में श्रुति बताती हैं कि मैसूर एक आधुनिक शहर हैं पर यहां भी पुराने खयालात के लोग हैं, जैसे की हर आधुनिक हो रहे शहर में होते हैं। हर काम में कुछ चुनौती तो होती ही हैं और इस विषय में तो और भी अधिक हैं क्योकि इस विषय पर अमूमन लोग बात नहीं करते हैं।

वे बताती हैं कि 2014 में जब मैंने अपनी कारपोरेट की नौकरी छोड़ी थी तब मुझे नहीं पता था कि मैं आगे क्या करने वाली हूँ। उस समय बस यह मन में था कि इस नौकरी से बेहतर जीवन में कुछ और करना हैं और आज शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए मुझे बहुत संतोष हैं। मैं गांधी फेलोशिप मिलने के बाद उदयपुर गई वहां हर फेलो को पांच स्कूलों के साथ मिलकर स्थानीय सामाजिक व्यवस्था में कुछ बेहतर करने के लिए काम करना होता है। यह अनुभव मेरे बहुत काम आया। केवल्य शिक्षा संस्थान पीरामल संस्था के साथ मिल कर यह फेलोशिप युवा छात्रों को प्रदान की जाती है।

यहां पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, केरल, कोलकाता, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश आदि भारत के अनेक राज्यों से युवा शोधार्थी आते हैं। समाज में शिक्षा आदि पर चेतना के लिए इस फेलोशिप के अधीन कार्य किया जाता है। वहीं मैंने देखा कि कई लड़कियों को अपनी स्कूली पढ़ाई भी छोड़ना पड़ती हैं। भिक्षा के अधिकार पर सतही तौर पर काम करने की हमारे यहां अब भी बहुत जरूरत हैं। वहां से लौटकर मैंने लैंगिक समानता पर काम करना शुरू किया और स्टेपआउट जनरल फाउंडेशन की स्थापना की। इस संस्था साल हो चुके हैं और में अन्य संस्थाओं के साथ मिल कर लैंगिक समानता जागरुकता कार्यक्रम चला रही हूँ।

लाइफस्टाइल साइकिल

श्रुति टीएस
मैंने तय किया कि साइकिल यात्रा के दौरान जेंडर भेज पर भी बात करूंगी: श्रुति

साइकिल मेरे लिए जीवन शैली हैं। यह एक निजी जरूरत और अनुभव है। साइकल सैर अकेलेपन को ताक़त देती हैं आत्मविश्वास बढ़ाती हैं। और एक संतोष प्रदान करती हैं। मैसूर शहर में इस दिनों साइकल के चलन पर बात करते हुए श्रुति कहती हैं कि यह एक सुंदर शहर हैं यहां हर दस किलोमीटर पर देखने के लिए कुछ न कुछ हैं। यहां दौड़ने के लिए भी पर्याप्त हरियाली हैं और साइकिल चलाने के लिए सुंदर प्राकृतिक वातावरण हैं। इस शहर को स्वच्छता के लिए पिछले कुछ सालों से अवार्ड भी मिल रहे हैं। मैसूर में मैं तीन ऐसे लोगों को जानती हूँ जो कश्मीर से कन्या कुमारी तक साइकिल यात्रा कर चुके हैं पर उन्हें मैंने अपनी यात्रा के बाद ही जाना है। यहां यातायात अन्य शहरों की तुलना में बेहतर है। यहाँ से दस किलोमीटर दूर श्रीरंगपट्नम है इसके अलावा भी यहां साइकिल से देखने के लिए बहुत कुछ है।

इस लॉकडाउन समय के दौरान मैसूर में साइकिल को बढ़ावा देने के लिए मैंने स्टेपआउट राईड्स का आयोजन करना शुरू किया हैं। इस आयोजन से लोगों को अवसर मिलता हैं कि वे सुरक्षा के साथ घर से बाहर निकल कर सेहत के लिए साइकिल चला सकें खुली और ताज़ी हवा ग्रहण कर सकें साथ ही कुछ जीवन कौशल के गुर भी सीख सकें। इस लॉकडाउन के समय बच्चों में डिजिटल स्क्रीन की लत बढ़ी है और बड़ों में अवसाद चाहे वह भविष्य को लेकर हो या सेहत को लेकर। साइकिल चलाने से तनाव तो कम होता ही है, साथ ही मन भी खुश रहता हैं सकारात्मक सोच और विचारों का संचार होता है। अभी तक हमने सिर्फ दो ही राईड्स की लेकिन हमें लोगों की सकारात्मक सहभागिता मिली हैं। मैं खुद भी बहुत दिनों बाद अब घर से निकल रही हूँ। सक्रीय हूँ शहर के अन्य साइकिल क्लब के साथ भी साइकिल चला रही हूँ नए दोस्त भी बन रहे हैं। अपने ही शहर की कुछ नई जगहों को साइकिल के माध्यम से देख रही हूँ।

कश्मीर से कन्याकुमारी

कश्मीर से कन्याकुमारी साइकिल यात्रा की तैयारी के बारे में विस्तार से बताते हुए श्रुति कहती हैं कि उन्होंने इस यात्रा की तिथि तय होने के बाद कई लोगों को ईमेल द्वारा सूचित किया और उनसे इस यात्रा में सहयोग करने के लिए आमंत्रित किया। नवीन और आकाश ने अपने अनुभवों से श्रुति को मानचित्र बनाने में मदद की और उन्हें कुछ हाईवे से परहेज़ करने की सलाह दी। महिलाओं के लिए उन्हें यात्राओं में सहयोग करने वाली बेंगलोर की कंपनी एफ वाई स्केप ने श्रुति के लिए कुछ स्थानों पर ठहरने का प्रबंध किया। ही रास्ते में आने वाले शहरों के सक्रीय साइकिल समूह को भी उन्होंने स्थानीय तौर पर सहयोग करने के लिए आग्रह किया।

श्रुति ने अपनी यात्रा का एक फेसबुक पेज भी बनाया था जिसमे वे हर दिन की यात्रा की जानकारी पोस्ट करती थीं। इसके जरिए भी लोगों ने श्रुति का सहयोग किया। इस तरह कुछ दोस्तों और दोस्तों के दोस्तों और उनके रिश्तेदारों जरिए उन्हें कुछ अजनबी लोगों के घर भी रुकने का अवसर मिला। श्रुति बताती हैं कि हमारे देश में प्रचलित कहावत ‘अतिथि देवो भव:’ को जीवन व्यवहार में देख अपने देश की परंपरा व सोच पर गर्व होता है। और इस उत्तम विचार को उन्होंने इस यात्रा में सीधे-सीधे अनुभव किया हैं।

नए दोस्त बने

वे कहती हैं कि वे कुछ सुन्दर और स्नेहिल परिवारों में रुकी हैं। ठहरने के बारे में अपने कुछ अनुभव बताते हुए कहतीं कि महाराष्ट्र के ठाणे में वे एक संयुक्त परिवार में रुकीं जहां उनका स्वागत उसी परिवार की एक लड़की की ही तरह किया गया था। उन्हें भोजन में पारंपरिक मराठी भोजन पेश किया गया उसी दिन श्रुति का जन्मदिन भी था जिसे पूरे परिवार ने जोश के साथ मनाया। महाराष्ट्र के ही सतारा में भी वे जिनके घर रुकीं वे एक महिला गायक थीं। उन्होंने श्रुति को अपने गीत भी सुनाए।

यात्रा के बारे खानपान को लेकर श्रृति ने कहा कि हमारा देश विविधता में एकता की खूबसूरती का देश है। यहां हर पंद्रह बीस किलोमीटर में खानपान, भाषा, पहनावा, खुश्बू बदलती है। मैंने अपनी यात्रा में स्थानीय भोजन और स्वाद का खूब आनंद लिया है। किसी भी तरह का कोई परहेज नहीं किया। मेरी नज़र में स्थानीय या लोकल खाना ही बेहतर होता है। अपनी अपनी ऊर्जा के लिए मैं प्रतिदिन छाछ या नारियल पानी जरूर पीती थी। अपनी क्रू के बारे में बताते हुए श्रुति ने बताया कि मेरे साथ सहयोग के लिए एक कार थी जिसमे रूपल फर्नांडिस और अनघा बालकृष्णन थे।

दोनों ही बंगलुरू के रहने वाले हैं। रूपल साइक्लिस्ट हैं और अनघा गायक और घुमक्कड़ हैं। दोनों ने ही सेवाभाव से मेरी यात्रा में सहयोग किया। वे दोनों जम्मू से गोवा तक साथ रहे। दोनों कार से कभी आगे तो कभी पीछे रहते थे। वे रास्ते में पड़ने स्कूलों में जाकर मेरी यात्रा के बारे में वहां प्रधानाचार्य से बात करते और मैं बच्चों से लिंग समानता और उसकी जरूरत पर चर्चा करती। महाराष्ट तक वे साथ रहे यहां से आगे मैंने अकेले ही साइकिल पर अपना बैग लगा कर यात्रा पूरी की।

भविष्य की योजनाएं

श्रुति हिमालय राइड्स भी कर चुकी हैं। एक बार मनाली से लेह और दूसरी बार स्पीति घाटी पर वे साइकिल चला चुकी हैं। श्रुति के लिए हिमालय का प्रेम अनूठा हैं वे हर वर्ष हिमालय जरूर जातीं हैं। वे कहतीं हैं कि हिमालय के कठिन रास्तों पर साइकिल से चोटी तक पहुंचने पर एक सुंदर दृश्य सारी थकान दूर कर देता है। हिमालय उससे प्रेम करने वालों को हर बार कुछ न कुछ भेंट देता है। जब हम चढ़ाई पार कर पहुंचते हैं तो एक सुंदर भेंट आपकी प्रतीक्षा कर रही होती है। भविष्य में श्रुति उत्तर पूर्व का भ्रमण साइकिल से करना चाहती हैं।

वे उत्तर पूर्व के सातों प्रदेशों की सुंदरता को साइकिल अपनी से और करीब से देखना चाहती हैं। साथ ही वे यूरोप का भी भ्रमण साइकिल से करना चाहती हैं। इस यात्रा में वे फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, ग्रीस होते हुए आस्ट्रिया तक सफर करना चाहतीं हैं। अपनी साइकिल यात्रा श्रुति ने रॉक राइडर्स साइकल से पूरी की हैं। मैसूर के साइक्लोपीडिया (साइकल स्टोर) को जब श्रुति ने अपनी इस यात्रा के बारे में बताया तब इस यात्रा के साइक्लोपीडिया ने कुछ तकनीकी ट्रेनिंग दी तथा उनकी साईकिल की ठीक से मरम्मत भी की। श्रुति कहती हैं की भारत की खूबसूरती उसकी विभिन्नता में हैं उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान खूबसूरत पर्वत, नदीयां, खेत, मैदान, रेगिस्तान तथा समुद्र तट भी देखे हैं।

श्रुति की इस साइकिल यात्रा और इस उपलब्धि के लिए मेरा रंग उन्हें बधाई देता हैं और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हैं। श्रुति की कहानी देख सुन और पढ़ कर उम्मीद हैं कि कुछ लड़कियां प्रेरित होंगीं और अपने सपने को साकार करने की कोशिश करेंगी।

Siraj Saxena
फोटोः त्रिभुवन देव

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं।  मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं। 

आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है