मिलिए परविंदर सिंह बाली से, एक शेफ जो साइकिल के दीवाने हैं

परविंदर सिंह बाली

सीरज सक्सेना

कश्मीर के बारामूला के परविंदर सिंह बाली एक न्यूरो सर्जन बनना चाहते थे लेकिन पढ़ाई कश्मीर के इंजिनीरिंग कॉलेज से पूरी की। फिर उनका मन होटल में काम करने का हुआ तो कोलकाता के होटल मैनेजमेंट संस्थान से होटल मैनेजमेंट में स्नातक डिग्री हासिल की। आज वे देश विदेश के जाने-माने शेफ के साथ काम कर चुके है। भारतीय व्यंजन और पाक कला के प्रशिक्षण के लिए कई देशों में बुलाए जा चुके है। कश्मीरी, पंजाबी, डोगरी, बंगाली, हिंदी और अंग्रेजी भाषाएं प्रवाह के साथ बोल सकते है। इन दिनों वे स्पेनिश भाषा सीख रहे है। भारत, नेपाल, केन्या और मलेशिया में उनकी लिखी पुस्तकें होटल मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है। अब तक वे पाक कला पर पांच किताबें लिख चुके है। इन दिनों ओबेराय होटल नई दिल्ली से जुड़े है।

बाली जी ‘इंदिरापुरम साइकिलिंग क्लब’ ग़ाज़ियाबाद के सक्रिय साइकिलिस्ट है। उनसे मेरी मुलाक़ात कुछ बरस एक सुबह साइकिल चलाते हुए सड़क पर ही हुई थी। साइकिल चलाते हुए विभिन्न पेशों में शामिल लोगों से दोस्ती होती है। और इस दोस्ती में यही विविधता दोस्ती को हमेशा रोशन रखती है। हर बार अपने मेहमान से मैं बचपन में साइकिल से जुड़े उनके अनुभवों के बारे में सवाल पूछकर इस लाईव कार्यक्रम की शुरुआत करता हूँ पर इस बार बाली जी से साइकिल की पहिए से जुड़े उनके अनुभव के बारे में जानना चाहा। उन्होंने कहा कि मैं आजकल के बच्चों को देखता हूँ तो वो कहते है कि हम बड़े टेक्नोलॉजी में माहिर बच्चे है पर मैं कहता हूँ कि आप नहीं टेक्नोलॉजी से जुड़े हम लोग है और आप टेक्नोलॉजी पर निर्भर बच्चे है। हमने ही आपको यह टेक्नोलॉजी दी है। एक दिन अगर आपका फोन ले लिया जाए तो आप कुछ नहीं कर सकते आप किसी से संपर्क नहीं कर सकते क्योकि आपको फोन नंबर ही याद नहीं है जबकि हमें दस पंद्रह नंबर तो यूँ ही याद रहते थे।

साइकिल का पहिया

वे बताते हैं- हम ऐसे माहौल में बड़े हुए जब हमने खूब साइकिल चलते हुए देखी है। उस वक्त कारें इतनी नहीं होती थीं। मेरे पिता सेना में थे और वे भी साइकिल चलाते थे। अपने आसपास साईकिल देख कर मन में यह रहता था कि मुझे भी एक दिन चलानी है। वे सिपाही थे और रेंक दर रेंक उनकी पदोन्नति होती गयी और वे अधिकारी बने। जब वे कनिष्ठ अधिकारी थे उस वक्त मेरी उम्र पांच या छह वर्ष की रही होगी और हम दिल्ली केंट में रहते थे। उस समय मुझे एक साइकिल का पहिया मिला जिसमे तानें नहीं थीं जिसे मैंने मेटल के तार को मोड़ कर भागते हुए उस पहिये को खूब चलाया है। इस खेल में रोमांच था, व्यायाम भी होता था और मुझे उस तार की पहिए पर रगड़ से आने वाली आवाज़ बहुत आकर्षित करती थी आज भी वह आवाज मेरे मन की स्मृति में आज भी कहीं न कहीं बज उठती है। कई बार रबर के साइकिल टायर को डंडी से मार मार कर चलाया और उसके पीछे दिन-दिन भर भागा करते थे।

जैसे मनुष्य के विकास की शुरुवात पहिये से हुई है उसी तरह मेरी साइकिल की शुरुवात भी साइकिल के पहिये से ही हुई है। पहिये की बात पर मुझे याद आया कि पहिए का इस्तेमाल आज भी दूसरे देश बहुत ही बुद्धिमत्ता से कर रहे है वहीँ आज भी हमारे देश में सर पर बोझा उठाते हुए लोग दिख जाते है भारी सामान यहां से वहां भी लोग आज भी अपनी देह के बल से, कठिन परिश्रम करके लाते ले-जाते है। जबकि अन्य देशों में भारी सामान को सर पर नहीं ढोया जाता बल्कि उसके लिए पहियों के इस्तेमाल से कोई हाथ से धकेलने वाली गाडी का प्रयोग किया जाता है।

बाली जी कहते है कि उनके पिता के पास एटलस कंपनी की एक साइकिल हुआ करती थी जिसका सुनहरा लोगो उन्हें बहुत आकर्षित करता था। मैंने साइकिल चलाना उसी साइकिल से सीखा था। बड़ी साईकिल में पैर को फ्रेम से निकाल कर पेडल पर रख कर साइकिल चलाई। इस पद्धति को ‘कैंची’ कहते है। पता नहीं आज की पीढ़ी को इस तरह साइकिल चलाने के बारे में पता है या नहीं? कैंची साइकिल से हमने कई किलोमीटर साइकिल चलाई है। मेरा पहला अनुभव ही विचित्र रहा हुआ यूँ कि मुझे साइकिल किसी ने सिखाई नहीं मैंने पिता की साइकिल कैची डाल कर एक ढलान पर बढ़ाई किसी तरह साइकिल का संतुलन बना साइकिल चली और एक बेर के पेड़ से जाकर टकरा गयी। बेर के कांटे मेरे बदन पर हर जगह लगे। धीरे- धीरे मीठे दर्द के साथ सभी काँटों को निकाला पर साइकिल उसके बाद कभी खुद से अलग नहीं हो पायी।

फिर जब पिता अफ़सर बने तो उनकी पोस्टिंग मथुरा में हुई। उनकी तो तरक्की हुई पर हम पर कुछ प्रतिबन्ध लग गए। मुझे पसंद कुछ खेल खेलने की इज़ाजत अब नहीं थी। कुछ खेल जैसे कंचे, लट्टू, टायर चलाना हीन माना जाते थे और अफसर के बच्चे इस खेलों को नहीं खेल सकते थे, यह सोच उस वक्त थी। हम खेलते थे तो हमें डाँट खानी पड़ती थी। धीरे-धीरे हम अफसर के बच्चों की तरह व्यवहार करने लगे। अफसरों के बच्चों के पास बड़ी चमकीली और रंगीन साइकलें होती थीं मेरा भी मन होता था कि मैं भी ऐसी साईकिल चलाऊँ।

मेरे भाई साइकिल चलाया करते थे जिस पर आगे एक छोटी सी सीट लगी होती थी जिस पर बैठ कर मैं उनके साथ खूब घूमता था। और जब कभी जिद करता था तो वे साइकिल चलाते हुए ही मुझे अपने घुटनों से सबक सीखा दिया करते थे। साइकिल उस वक्त आवागमन का लोकप्रिय साधन था। आज जब मैं देखता हूँ तो इतनी अच्छी और महंगी साइकिल बाज़ार में है कि उन्हें देख खुश होता हूँ मेरी ड्रीम साइकिल भी 14 लाख की है। देखते है कब ले पाता हूँ। मेरे मित्र कहते है उस साइकिल में क्या ख़ास बात है क्या उसमे कोई बैटरी लगी है? उन्हें समझाना बहुत मुश्किल होता है।

बहुत बार साइकिल के पीछे कुत्ते दौड़ते थे मैं समझ नहीं पाता हूँ कि आखिर क्यों वे पीछे दौड़ते है उन्हें साइकिल भी नहीं चलानी होती है। आज भी वे दौड़ते है। कुत्ते हम साइकिल चालकों को बहुत परेशान करते है। जब कुत्ता पीछे पड़ता है तो दिमाग में बस यही ख़याल आता है कि हमें साइकिल अब तेज़ दौडानी है। यह खयाल स्वाभाविक है। इस इस हड़बड़ी में साइकिल चालक दुर्घटना के शिकार हो जाते है चोटिल हो जाते है। दरअसल कुत्ता आपके पीछे नहीं आपकी साइकिल के घूमते हुए पहियों के पीछे पड़ता है अगर आप रुक जाए, ठहर जाएं तो कुत्ता भी रुक जाएगा। बल्कि मैं तो यह कहना चाहूँगा कि आप अपने अपने साथ कुछ बिस्किट रखें जैसे ही कुत्ता आपकी साईकिल के पीछे दौड़े तब आप रुके उस कुत्ते को बिस्किट खिलाएं इस तरह कुत्ता आपका अगले दिन भी इंज़ार करेगा। इस तरह आप आपके रास्ते में आने वाले वाले कुत्तों से दोस्ती कर सकते है। साइकिल वैसे भी अच्छे दोस्त बनाती है।

बाली जी चूँकि खाना बनाने और खाना खिलाने के पेशे में हैं इस लिए वे खाने को भी कई छोटी बड़ी कठिनाइयों को हल करने के लिए भी इस्तेमाल करना जानते हैं और बातों बातों में उन्होंने हम साइकिल चालकों को एक महत्त्वपूर्ण सीख दी है। संवाद को जारी रखते हुए वे कहते है कि हम हमेशा केंटोनमेंट क्षेत्र में ही रहे है जहां अच्छी सड़कें और सुरक्षित वातावरण होता है अतः हमें साइकिल चलाने में कभी कोई समम्स्या नहीं आयी। फिर जब होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए कोलकाता जाना हुआ तब साईकिल छूट गयी।

साइकिल और सुरक्षा

मन में साइकिल के बारे में हमेशा यह ख़याल भी रहता था जो लोगों की सोच में है कि साइकिल एक तुच्छ वाहन है और गरीबों की सवारी है मजबूरी की सवारी है। यह एक छोटी सोच है और मुझे आश्चर्य होता है कि कभी मैं भी यही सोचा करता था। आज जब अच्छी साइकिल बाज़ार में है और लोग साइकिल अपना रहे है युवाओं के मन में भी साइकिल के प्रति रुझान बढ़ा है तब मुझे बहुत ख़ुशी होती है। इन दिनों इंडिया गेट पर इतने साइकिल सवार दीखते हैं जितने आज के पहले कभी नहीं देखे। पर मेरा सभी से यही निवेदन है कि हर साइकिल सवार हेलमेट अवश्य ही लगाए। हमारे साइकिल समूह में कई लोग हैं जो हेलमेट की वजह से दुर्घटना में बचे हैं। जब मैं किसी साइक्लिस्ट से पूछता हूँ तो वे कहते है कि हमने साइकिल कल ही खरीदी है। यह उत्तर अप्रासंगिक है क्योकि दुर्घटना नई या पुरानी साइकिल देख कर नहीं होती।

आपकी टी-शर्ट इतनी जरुरी नहीं जितना की आपके सर पर हेलमेट। कपडे भी काले या गहरे रंग के कभी नहीं पहनने चाहिए। सुबह गहरे कपड़े पहनकर साइकिल चलाना खतरनाक है। पीछे आ रहे वाहन को आप दूर से ही दिखाई देना चाहिए। वरना अंधेरे में आप गुम हो जाएंगे। तीसरी महत्त्वपूर्ण चीज़ है साइकिल के आगे और पीछे चमकने वाली लाईट। ताकि पीछे आ रहे वाहन को साइकिल पर लगी लाईट के माध्यम से आपकी उपस्थिति नज़र आए। एक और बात मैंने गौर की है कि समूह में साइकिल चलाते हुए लोग एक दूसरे के साथ चलते है जबकि उन्हें एक दूसरे के पीछे कतार में चलना चाहिए।

हमारी बड़ी या छोटी सड़कें साइकिल के लिए बनी ही नहीं है। वे मोटर वाहनों के लिए बनी है और हम उस पर साइकिल चलाते है। एक तरह से उनकी जगह हम घेरते है और अन्य वाहनों अड़चन है हम। यूरोप या अन्य देशों में तो साइकिल को अधिकार ,प्रमुखता मिली है और साइकिल के लिए पर्याप्त पथ बने है। यूरोप में अगर कोई वाहन तेज़ गति से आपके निकट से गुजरता है तो कैमरे में कैद होकर उसकी गलती पकड़ ली जाती है और चालान सीधे घर पहुंच जाता है। पर यहां तो कई बार जानबूझकर तेज़ गति से वाहन आपको डराने के लिए करीब से गुजरते है। सड़क पर हमें हर हाल में यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें हर हाल में बच्च कर और सावधानी से ही साइकिल चलाना है।

मैं तो सोचता हूँ कि अगर मुझे मौका मिले तो मैं साइकिल कम्युनिटी की सुरक्षा पर एक वर्कशॉप लेना चाहूंगा जिसमे साइकिल चलाने के सही ढंग, सुरक्षा के कुछ उपायों को बताना चाहूंगा। पहियों में हवा का सही दबाव क्या होना चाहिए यह भी जानना और कभी पंचर हो जाए तो उसे कैसे बनाना यह भी हर साइकिल चालक को आना ही चाहिए। साइकिल चलने के पहले और बाद में भी कुछ स्ट्रेचिंग व्यायाम करना होते है। जिससे आपको दिन भर थकावट का अनुभव नहीं होता है। साइकिल चालक को अपने शरीर में पानी की कमी भी नहीं होने देना चाहिए। अगर इन बातों का सही ज्ञान हो तो साइकिल स्वास्थ के लिए बेहतर है अन्यथा गलत ढंग से साइकिल चलाने से आपके घुटनों कन्धों तथा रीढ़ की हड्डी में असहनीय दर्द का भी कारण बन सकती है। हमारे पाक कला क्षेत्र में पहले कभी अपनी विधि मास्टर शेफ साझा नहीं करते थे पर अब ऐसा नहीं है मैंने साइकिल चलाने से जो भी जानकारी मिली है मैं हमेशा यही चाहता हूँ कि इसका लाभ अन्य लोगों को भी हों।

साइकिल की शुरुआत

मैंने अपने बेटे के लिए एक साइकिल खरीदी। मैं चाहता था कि वह साईकिल चलाए पर साइकिल कुछ दिनों बाद घर के बाहर खड़ी रहने लगी। उस पर धूल जमने लगी तब मैंने ही उस साइकिल को चलाना शुरू किया मैं चार किलोमीटर साइकिल चलाकर बहुत खुश होता था। फिर एक दिन मैंने एक साइकिल सवार को देखा। उसके पास पतले पहियों वाली घूमे हुए हेंडल वाली सुंदर साइकिल थी वह अपनी साइकिल जर्सी पहने था उसके पास जाकर मैंने उससे बात की उससे कहा कि इस साइकिल के पहिए इतने पतले है। क्या यह अपने वजन से बेंड नहीं हो जाते?

मेरी बात सुन कर वो हंसने लगा। फिर मैंने उससे पूछा कि क्या आप कोई पेशेवर साइकिल चालक हो? किसी क्लब से जुड़े हो? उसने बताया कि जी हाँ हमारा एक क्लब है ‘इंदिरापुरम साइकिलिंग क्लब’ आप भी फेसबुक पर हमारे समूह से जुड़ सकते है। उनसे पूछने पर मुझे पता लगा कि वह 75 किलोमीटर साइकिल चला कर आ रहे हैं। यह सुन कर मुझे अपने चार किलोमीटर पर बहुत शर्म आयी और मुझे ख़ुशी हुई कि साइकिल ऐसे भी चलाई जा सकती है। इस तरह में अपनी उस साधारण साइकिल के साथ इस समूह से जुड़ा। यहीं से मेरी साइकल से लम्बी सैर शुरू हुई। मैंने सोचा था कि महंगी साइकिल नहीं लेनी है पर पत्नी ने ही मुझे अच्छी साइकिल दिलाई।

मैंने कई बार ब्रेवे किए है और एसआर (सुपर रोंदोनोर) दो बार किया है।यह एक फ्रेंच शब्द है। फ़्रांस में एक संस्था है ओडेक्स जो यह आयोजन करती है। इसमें एक वर्ष में 200, 300, 400 और 600 किलोमीटर साइकिल चलानी होती है। इनका वर्ष अक्टूबर से शुरू होता है। हर दूरी को एक सीमित अवधि में तय करना होता है। मैं ईटली, दुबई, ज्युरिक से लुसेन, स्विट्ज़रलैंड, कोपनहेगन (डेनमार्क) आदि देशों में साइकिल चला चुका हूँ।

साइकिल और जीवन

जब मैंने साइक्लिंग शुरू की तब मेरा वजन 103 किलो था। साइकिल चलने से मेरा वजन 90 हुआ। सेहत के लिए साइकिल बहुत अच्छी है। आपका रक्तचाप, मधुमेह संयमित रहता है। अच्छे दोस्त साइकिल से ही बनते है। साइकिल जात-पाँत को मिटाती है। हम सब एक ही होते हैं। एक दूसरे के साथी होते हैं। समूह में साइकिल चलाना साथ रहना भी सिखाता है। हम सब एक ही सड़क पर एक ही समान होते हैं, अगर किसी का पानी ख़त्म हो जाता है तो हम सब अपना पानी भी साझा करते है। साइकिल अपनापन भी सिखाती है।

साइकिल खुद के साथ रहना भी सिखाती है। मेरे लिए साइकिल चलाना भी एक ध्यान है। साइकिल ख़ुशी बढ़ाती है। ख़ुशी से आपकी ऊर्जा बढती है जो आपके काम की क्षमता भी बढ़ाती है। आपकी संवेदनशीलता बढ़ती है। प्रकृति से साथ एकाकार होते ही आप खुश और संतुष्ट महसूस करते है। साइकिल उदार भी बनाती है। मुश्किलों को अपनाना भी साइकिल सिखाती है और हर मुश्किल अपनाने से ही दूर होती है। दर्द को आनंद में भी साइकिल बदलती है। आपको भीतर से मजबूत भी करती है साइकिल। रचनात्मक लोगों के लिए साइकिल एक बेहतरीन टूल है। यह संगीत की तरह भी है, जो आपके भीतर घुल जाता है। हम खुद से इतनी बातें पूरे दिन नहीं कर पाते है जितना साइकिल की सैर के दौरान हम करते है। तरह तरह की खुशबू भी हम महसूस करते है मुझे कभी कोई खुशबू इतनी पसंद आती है कि मैं सोचता हूँ कि इस फ्लेवर का इस खुशबू का कुछ व्यंजन बनाना चाहिए। यह जीवन जीने का एक तरीका है।

आज लॉकडाउन है सभी के पास समय है और अधिक लोग साइकिल चला रहे है। जब सामान्य जीवन हो जाएगा तब भी आप साइकिल चलाना नहीं छोड़ें मैंने अपने जीवन में सिर्फ दो बदलाव किए है जिनकी वहज से मैं साइकिल चला पा रहा हूँ। एक तो मैंने डेढ़ घंटे जल्दी उठना शुरू किया है और दूसरा जल्दी सोना तय किया है सिर्फ ये दो छोटे बदलाव करने से आपकी दैनिक दिनचर्या जो भी हो आप साईकिल हर रोज़ चला सकते है।

जब मैं किसी फ़ूड फेस्टिवल में जाता हूँ तो अपनी साइकिल साथ ले जाता हूँ। वहां अगर 11 बजे तक भी काम करें तो जल्दी सोकर सुबह उठ कर साइकिल चलाता हूँ और समय पर अगले दिन ठीक 10 बजे अपने काम पर पहुंच जाता हूँ। इससे मुझे बहुत अच्छे दोस्त मिले है। अच्छी जगहें देखी है। उदयपुर साइकिलिंग क्लब, कोचीन साइकिलिंग क्लब, मैसूर साइकिलिंग क्लब और हैदराबाद के साइकिलिस्ट मुझे जानते है। जहाँ जाता हूँ सुबह के इन दोस्तों को धुंध लेता हूँ, मेरी साईकिल कभी नहीं रूकती है। नए-नए दोस्त बनते जाते है। इससे वहां की स्थानीय संस्कृति, भोजन जगहों के बारे में भी जानकारी मिलती है। भोजन और संगीत किसी भी देश के जरूरी और महत्वपूर्ण राजदूत है। समोसा, डोसा, इडली, टिक्का, कबाब, करी नान, बिरयानी आदि विश्व में प्रसिद्घ है। और चिकन टिक्का, बटर मसाला तो इंग्लैंड का राष्ट्रीय भोजन है।

सेहत, साइकिल और भोजन

अगर बाहर किसी देश में साइकिल सवार दोस्त मिल जाएं तो वह अनुभव अलग ही स्तर का होता है। जीवन में रोमांच, उत्साह और ख़ुशी को बरकरार रखना है तो साइकिल अपनाना ही होगा। बाली जी खुद पीली दाल, आलू जीरा और अच्छे चावल मेरा पसंदीदा भोजन है। अंत में बाली जी ने हम सब को सलाह देते हुए कहा कि इस दिनों हमारी रसोई में पुरुष भी आने लगे है। जिस भी खाने का प्रचार अगर आपको कहीं दिखे तो वो हरगिज़ नहीं खाएं। चीनी को जीवन से निकालिए। गेहूं के अलावा, बाजरा, ज्वार, मक्का, रागी आदि को भी भोजन में शामिल कीजिए। प्रोसेस्ड फ़ूड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। शुद्ध और ताज़ा पका हुआ भोजन कीजिए। डब्बे में बंद भोजन न करें। खुश रहिए और कुछ न कुछ व्यायाम जरूर कीजिए। रसोई में काम करने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि इससे रसोई में न दिखने वाले कई महत्त्वपूर्ण काम के बारे में पता चलता है।

20 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय शेफ दिवस होता है। पिछले साल मुझे विचार आया कि सेहत और भोजन पर इस दिन कुछ करना चाहिए। मैंने एक होटल मैनेजमेंट कॉलेज को संपर्क किया और एक लम्बी साइकिल यात्रा इस विशेष दिवस पर आयोजित की। दिल्ली से जयपुर की यह यात्रा थी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी इस यात्रा पर चर्चा हुई। रास्ते भर हमने बच्चों को किताबें कपड़े और भोजन वितरित किए। इस यात्रा में बहुत आनंद आया। गुरु शिष्य परम्परा के अधीन बाली जी मेहर सीनिया घराने के गुरु पंडित रोहित आनंद से बासुरी सीख रहे है। कार्यक्रम के अंत में बाली जी ने अपनी एक लम्बी बांसुरी से शिव रंजनी राग में बद्ध एक गीत की धुन सुनाई। उनकी धुन “जाने कहाँ गए वो दिन” हमें यादों के महल में खूबसूरती से दाखिल करती है जिससे हमारा वर्तमान सुन्दर बनता है।

Siraj Saxena
फोटोः त्रिभुवन देव

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं।  मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं। 

आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है