कैसे साइकिल पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक नाप डाला आकाश और नवीन ने?

आकाश और नवीन

सीरज सक्सेना

यूँ तो साइकिल एक आकर्षक यंत्र हैं और मन्त्र भी। वाहन तो है ही और बच्चों के लिए खिलौना भी है, जिससे हर उम्र के लोग प्रभावित रहते हैं। इन दिनों देश के लगभग हर नगर या महानगर में साइकल चालकों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी हैं। भारत के लोगों द्वारा ही चलाई जा रही यह मुहिम धीरे -धीरे विस्तार ले ले रही हैं। ऐसे समय देश में साइकिल को प्रोत्साहित करने के लिए अहम कदम उठाने की जरूरत है। पर यह जब ही संभव हो पाएगा तब सरकार की भी अपने पर्यावरण, यातायात और प्रजा की सेहत के लिए सकारात्मक सोच व प्राथमिकता हो।

मेरा रंग ‘किस्से साइकल के’ श्रृंखला में इस रविवार 9 अगस्त को हमारे अतिथि थे दो युवा होनहार साइकिल सवार आकाश और नवीन। दोनों ने तीन वर्ष पहले कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत भ्रमण किया। भारत सरकार के ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ कार्यक्रम के प्रसार को उन्होंने अपनी साइकिल यात्रा का उद्देश्य बनाया। कार्यक्रम की शुरुवात में नवीन ने मेरा रंग की टीम और सभी दर्शकों को आदिवासी दिवस पर शुभकामनाएं प्रेषित की।

चीन के साइकिल सवार

नवीन बताते हैं कि उनका साइकिल से नाता बचपन से ही हैं जब वे बड़ी साइकिल को देश में प्रचलित कैंची पद्धति से खूब चलाया करते थे। अपनी कॉलेज की शिक्षा के दौरान उनकी साइकिल से दूरी बन गई। जैसा कि हर युवा के साथ होता हैं कि जवानी की ऊर्जा और साइकिल की सधी धीमी हुई गति की वजह से वह तालमेल नहीं बन पाता हैं और उन्हें यह धीमी गति का वाहन पिछड़ा लगने लगता है। कभी अपने रोजगार और व्यवसाय की वहज से भी साइकिल अनचाहे छोड़नी पड़ती हैं।

किस्से साइकिल के: साइकिल चलाने से शुरू हुई पूजा और अश्विन की प्रेम कहानी

नवीन अपना साइकिल का किस्सा बताते हुए कहते हैं कि एक बार जब वे अपने काम के सिलसिले में चीन गए तब उन्होंने वहाँ कुछ साइकिल सवारों को देखा और उत्साहवश उनसे बात की। वे साइकिल सवार चार सौ किलोमीटर का सफर तय कर उस शहर पहुंचे थे। नवीन उन्हें देख प्रभावित हुए और दिल्ली आने के बाद उन्होंने अपने जीवन में साइकिल को पुनः अपनाया। यूथ हॉस्टल एसोशिएशन के सदस्य नवीन ने जेलोरी में हुए माउण्टेन बाइकिंग इवेंट में हिस्सा लिया। वहां उन्होंने आधुनिक साइकिल चलाने के तरीके भी सीखे। जल्द दिल्ली के साइकिल समूह ‘ग्रीन पैडल्स’ के साथ साइकिल चलाना शुरू किया।

साइक्लिस्ट जुनूनी होता है

इस समूह से जुड़ कर उन्हें अन्य साइकिल प्रेमियों को नज़दीक से देखा वे कहते हैं कि हर साइकिल सवार जुनूनी होता है। दिल्ली के हर प्रसिद्द स्थानों की उन्होंने साइकिल से नियमित सैर की। दिल्ली अब नवीन को अपना शहर लगने लगा। यहां वे खाने पीने के मशहूर स्थल खोजते तो कभी अपनी साइकिल से दिल्ली की सड़कों पर अपने नए मित्रों के साथ लम्बी लम्बी सैर करते। अपने स्कूली जीवन में भी नवीन भारत स्काउट एवं गाईड के सक्रीय सदस्य रहे हैं और खेल-कूद की कई राष्ट्रीय स्पर्धाओं में प्रदेश और देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। स्कूल में वे अपने शिक्षकों के चाहते छात्र रहे हैं। पहाड़ों पर भी वे खूब घूमने जाते हैं। उत्त्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख चोटियों पर वे पर्वतारोहण कर चुके हैं।

किस्से साइकिल के : क्या है पूजा का ‘पिंक पेडल्स’ ?

आकाश ने हर बच्चे की तरह अपने घर के आस-पास साइकिल चलाई थी पर उन्हें अपने पडोसी डेनियल हॉफलेंड (जो एक साइकिल प्रेमी हैं) को देख साइकिल प्रेम जागा। दोनों ने मिल कर दिल्ली के इंडिया गेट, कनाट प्लेस आदि स्थलों पर अपनी अपनी साइकिल से शहर देखा। आकाश अपने दफ्तर भी साइकिल से जाने लगे उन्होंने साइकिल स्पर्धाओं में भी भाग लेना शुरू किया। उत्तराखंड की संस्था ‘आरोही’ द्वारा आयोजित माउण्टेन साइक्लिंग स्पर्धा में उन्हें ‘किंग ऑफ़ कुमायूं’ का खिताब मिला। इस आयोजन में मिली जर्सी वे आज भी शान से पहनते हैं।

कैसे मिले नवीन और आकाश?

नवीन और आकाश की मुलाक़ात दिल्ली की सड़क पर ही साइकिल चलाते हुए हुई हैं। आकाश कहते हैं कि नवीन ने उन्हें पहली ही मुलाक़ात में दिल्ली का रहस्य्मयी मालचा महल दिखाया। और इस तरह इन दोनों की दोस्ती आज भी हैं। बताते हैं कि जब वे साइकिल समूह ‘साइकिलसूत्रा’ से जुड़े तो इस समूह के सूरज और आशीष नागपाल (साइकिलसुत्रा संचालक) ने उन्हें साइकिल चलाने के कुछ महत्वपूर्ण गुर सिखाए। इस समूह से जुड़ कर आकाश को साइकिल के प्रकार, उनके रखरखाव आदि बारे में बहुत कुछ तकनीकी पाठ सीखने को मिला।

एक सुबह जब वे इंडिया गेट साइकिल से पहुंचे तो आकाश की मुलाक़ात अनाहिता से हुई जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक अकेली साइकिल यात्रा कर रहीं थीं। और अपनी इस यात्रा के पड़ाव में दिल्ली आयी हुई थी। स्वभाव से उत्सुक आकाश अनाहिता से मिले और उनकी यात्रा के बारे में उन्ही से उनकी कहानी सुन प्रभावित हुए। बल्कि मन ही मन कश्मीर से कन्याकुमारी तक यात्रा की रूप रेखा बनाने लगे। सोते जागते उन्हें बस इसी यात्रा का खयाल रहता। माता-पिता भी कुछ देर से ही सही पर मान गए पर उनकी एक शर्त थी कि वे इस यात्रा पर अकेले नहीं बल्कि अपने किसी मित्र के साथ जाएंगे।

अब आकाश को अपने लिए एक साथी ढूंढना था। नवीन से आकाश ने अपनी इस साइकिल यात्रा के बारे में चर्चा की और उन्हें भी उनके साथ चलने का आग्रह किया। नवीन तैयार हुए पर तारीख तय नहीं हो पा रही थी। नवीन के लिए भी अपने माता-पिता को इस यात्रा के लिए राज़ी करना इस लम्बी और कठिन साइकिल यात्रा से भी अधिक चुनौतीपूर्ण था। आकाश ने फिर नवीन के माता-पिता से बात की और अंततः यह यात्रा शुरू हुई। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दोनों ने मुझे भी बहुत कहा था हर संभव दवाब बनाया गया पर मैं अपनी कला और उससे जुड़े कलापों में उलझा रहा और यह सुवर्ण अवसर गवां बैठा।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक

नवीन बताते हैं कि उन्होंने टुकड़ो में देश के विभिन्न हिस्सों में साइक्लिंग की हैं जैसे नैनीताल, जम्मू-कश्मीर, मनाली-शिमला आदि पर एक साथ लम्बी दूरी तय करने का अनुभव अपने-आप में एक पुरस्कार की तरह था। गूगल की मदद से दोनों ने अपनी यात्रा का मानचित्र बनाया। तय किया कि वे हर दिन सौ किलोमीटर साइकिल चलाएँगे। पर पहाड़ों पर दूरी तय करना मैदानी इलाकों से भिन्न होता हैं।

श्रीनगर के लाल चौक से अपनी साइकिल यात्रा शुरू करने के पहले उनके मन में डर वहां की सुरक्षा व्यवस्था देख भी पनपा। किसी ने कहा कि आप यहां देश का झंडा अगर लहराएंगे तो आपको ख़तरा हो सकता है। पर भारतीय सेना के सिपाही उन्हें हर दो या तीन किलोमीटर पर मुश्तैदी से खड़े दिखे। शहर से बाहर निकलते ही चेहरे पर आती सीधी हवा ने उनकी साइकिल की गति को धीमा कर दिया। अपने इस अनुभव को ध्यान में रख उन्होंने फिर से अपनी यात्रा का प्लान तैयार किया।इस बार यह प्लान उनके ज़मीनी अनुभव पर आधारित बना और कारगर रहा। जवाहर सुरंग (जो कि तीन किलोमीटर लम्बी हैं) से साइकिल से गुजरते वक्त दोनों का रोमांच चरम पर था। हमारी लाइट्स की बैटरी भी डेड हो चुकी थी। किसी तरह इस अँधेरी सुरंग को हमने पार किया।

आकाश बताते हैं कि हमें रास्ते में ठहरने के लिए ईश्वर के घर यानी मंदिरों और गुरुद्वारों तथा मित्रों और रिश्तेदारों के घर भी शरण मिली। कुछ रिश्तेदारों ने तो लिफ़ाफ़े में आशीर्वाद स्वरूप पैसे भी दिए। यह विदाई की रसम और रकम हमारे सफर में बहुत काम आई। दोनों ही बताते हैं कि जब हम कश्मीर और पंजाब क्षेत्र में थे जो हमारी यात्रा का शुरुवाती सफर था तो हमने दही और लस्सी से ही अपने दिन की शुरुआत की और फिर अपने सफर पर चल पड़े।

थोड़ी देर बाद हमें सामने से आती हवा के झोंकों से अधिक नींद के झोंकों से बहुत परेशान किया हम कुछ दिनों तक यह समझ नहीं पाए कि यह सब दही के कारण हो रहा हैं जबकि हम उसे ऊर्जा का स्रोत समझ कर आनंद के साथ ग्रहण कर रहे थे। फिर हमने पनीर और दूसरी चीजे खाना शुरू की। नींद के झोकों ने हमें परेशान करना बंद किया। मई की तपती गर्मियों के दिन हम राजस्थान के चित्तोड़ की ओर बढ़ रहे थे। थकावट की वहज से हमें सड़क के किनारे बने एक बस स्टॉप पर रुकना पड़ा। जहां हम प्रतिदिन 100 या 80 किलोमीटर साइकल से अपना सफर तय कर रहे थे वहीँ राजस्थान की भीषण गर्मी में हमें दस किलोमीटर साइकिल चलाना भी भारी पड़ा।

अतिथि देवो भवः

देश और देश के लोगों के व्यवहार के बारे में हुए अनुभवों को याद करते हुए नवीन ने बताया कि मैंने थाईलैंड और कम्बोडिया में वहां के विश्वप्रसिद्ध अंकोरवाट मंदिर भी साईकिल से देखे हैं। अन्य देशों में भी साइकिल चलाई हैं। पर अपने देश में साईकिल चलना हमेशा असुरक्षित लगता था। और इसीलिए हमने मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान की सीमा वाला बीहड़ इलाका दिन में ही पार किया है क्योंकि वहां पहले साइकिल यात्रियों के साथ दुर्घटनाएं हुई हैं। पर हमारी इस यात्रा में मैंने पाया की हमारे देश के लोग भले और प्रेमी हैं। विदेशों में सुरक्षा हैं पर लोगों में इतना प्रेम और अपनापन नहीं हैं जितना अपने देश में हैं। हमने रात तीन बजे तक भी साइकिल चलाई है और यह पाया हैं कि हमारा देश इतना भी असुरक्षित नहीं हैं जितना बताया जाता हैं। आकाश बताते हैं कि जब हम केरल पहुंच तो वहां लोग न हमारी भाषा समझ रहे थे न हम मलयाली पर हमारी साइकिल पर लगी तख़्ती देख लोगों ने हमारी दिल से हौसला अफ़जाई की।

हमारे देश में ‘अतिथि देवो भव’ कहावत प्रचलित है और हमने अपनी इस यात्रा में इस कहावत को लोगो के व्यवहार में खुशबू की तरह घुला हुआ देखा हैं। केरल का भोजन स्वादिष्ट हैं नवीन कहते हैं कि वहां भोजन ठंडा और उसके साथ पानी गर्म पेश किया जाता हैं। पूरे सफर में हमने एक और आश्चर्यजनक व अटपटी बात देखी कि जहां भी हम ठहरते थे वहां लोग हमारी साइकिल के टायर छू कर उसकी हवा का दावाब अवश्य चेक करते थे। यह अजीब बात देख हम मुस्कुराते थे। यात्रा के दौरान हमारे पानी पीने की क्षमता बढ़ गयी थी। हम प्रेट्रोल पम्प से अपनी बोतल में पानी भरने रुकते थे वहां उपस्थित लोग हमारे पास यह देखने के लिए आते थे कि कहीं हम अपनी साइकिल में प्रेट्रोल तो नहीं भरवा रहे हैं।

नवीन बताते हैं कि दक्षिण भारत में भाषा की इस समस्या से हमें कुछ हद तक वहां के स्थानीय अखबारों ने भी मदद की हैं। हम जिस भी शहर में पहुंचते थे तब वहां सबसे पहले अखबार वालों से अपनी यात्रा के बारे में तथा इसके उद्देश्य के बारे में विस्तार से बताते थे। अख़बार में तस्वीर के साथ हमारी यात्रा के बारे में स्थानीय भाषा में खबर छपती। जिसे पढ़ लोग हमें पहचान लेते थे और आगे सफर में भी इन ख़बरों ने हमारी मदद की। दक्षिण भारत में लोग पढ़े लिखे अधिक हैं और अखबार वे नियमित रूप से पढ़ते हैं।

साइकिल दर्शन

नवीन के लिए साइकिल चलना खुद के साथ होने का एक सुन्दर बहना हैं। साइकिल चलाना ध्यान भी हैं। साइकिल चेहरे पर एक स्थाई मुस्कान से श्रृंगार करती हैं। यह ख़ुशी से ही अपने सहज रूप से आपके साथ रहती हैं। साइकिल चलाने में दूरी तय करना ही असल मकसद नहीं होना चाहिए। धीमी गति से हम जो भी देखते हैं उसे हमें अपने साथ लेकर आगे बढ़ना होता हैं। साइकिल हमें लोगों से भी जोड़ती हैं। हर व्यक्ति साइकिल से किसी न किसी उम्र में जुड़ा होता हैं। वहीँ आकाश के लिए साइकिल शान्ति हासिल करने का एक जरिया हैं। वर्जिश के साथ मुझे लोगो के तरह तरह के जीवन जीने की शैलियाँ देख कर बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं। और इस सीख से मैं स्वयं को अपने आस पास फैले यथार्थ से अधिक जोड़ पाता हूँ।

इन दिनों नवीन अपने घर भिलाई छत्तीसगढ़ में हैं। अपने प्रदेश और वहां के लोगों के बारे में वे बताते हैं कि इस दिनों यहां का मौसम सुहाना हैं। यहाँ साइकिल से काम पर जाने वाले लोगों की संख्या अधिक हैं। यहाँ के लोगों में हड़बड़ी नहीं हैं और न ही किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा हैं। वे शांतिप्रिय और खुद में मस्त रहने वाले सरल लोग हैं। शायद यही वजह हैं कि इस प्रदेश में अपराध का अनुपात कम हैं। अपने खेतों में काम करने के बाद लोग गांव के तालाब के किनारे इकट्ठा होते हैं और शाम तक प्रकृति के साथ रहते हैं।

कन्याकुमारी में इंद्रधनुष

आकाश कहते हैं कि लम्बी दूरी साइकिल से तय करने के लिए पानी की दो भरी बोतल और एक अतिरिक्त ट्यूब, टूल किट, एक पेनीयर बेग तथा संगीत के लिए एक छोटा स्पीकर होना चाहिए। एक दिन सुबह आकाश के साथ इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन साइकिल सैर पर जाना हुआ वहां आज बहुत लोग अपनी साइकिल से यहां पहुचें हैं। दिल्ली को साइकिल के प्रति इतना उत्साहित नहीं देखा था। यह दिल्ली देख ख़ुशी हुई। यहां इस दिनों बड़े साइकिल स्टोर्स में साइकिल उपलब्ध नहीं हैं।

आकाश और नवीन के साथ 2018 में उत्तर पूर्व में साइकिल टूर में मैं भी शामिल था हमने गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर से शुरू कर अपनी साइकिल यात्रा में शिलॉन्ग, चेरापूंजी, नवागांव, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, मझोली (दुनिया का विशाल नदी द्वीप), जोरहट आदि स्थान देखे और आसाम और मेघालय की कला संस्कृति को करीब से देखा। शिलॉंग के यूथ हॉस्टल में हम दो दिन रुके थे वहीँ केरल के युवा फ्रांसिस भी ठहरे थे. वे हमारी साइकिल यात्रा से इतने प्रभावित हुए की केरल पहुंच कर उन्होंने अकेले ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल यात्रा पूर्ण की।और इन दिनों वे साइकिल से यूरोप भ्रमण कर रहे हैं।

नवीन बताते हैं कि जब हम अपनी साइकिल यात्रा के आखिरी पड़ाव कन्याकुमारी पहुंचे तो वहां इंद्रधनुष ने हमारा स्वागत किया। देश की सड़क यहीं ख़त्म होती हैं। अगले दिन हमने विकानंद स्मृति केंद्र देखा और उन्हें नमन कर हमने अपनी यात्रा पूर्ण की।

Siraj Saxena
फोटोः त्रिभुवन देव

सीरज सक्सेना समकालीन चित्र कला तथा सिरेमिक आर्ट का जाना-पहचाना नाम है। एक जाने-माने आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वे साइकिल और पर्यावरण प्रेमी हैं। वे उन गिने चुने कलाकारों में हैं जो नियमित रूप से लेखन भी करते हैं।  मेरा रंग के लिए वे देश के चुनिंदा साइक्लिस्ट के साथ संवाद की एक सिरीज़ कर रहे हैं। 

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