मिलिए समकालीन भारतीय कला परिदृश्य में सक्रिय आर्टिस्ट अंतरा श्रीवास्तव से जो अंग्रेजी ऑनर्स के साथ स्नातक हैं और देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में दो दशकों से अधिक समय से अनेकों एकल व समूह प्रदर्शनियां कर रहीं हैं। उन्होंने समकालीन कलाजगत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनायी है। आर्ट शौपिंग के तहत लूवर म्यूजियम, पेरिस और आर्ट मोनैको, फ्रेंच रिवियेरा में अंतरराष्ट्रीय गैलरिस्ट मोना यूसुफ गैलरी द्वारा चयनित और प्रायोजित प्रदर्शनियों का आयोजन हो चुका है।
अंतरा की हिन्दी व अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य में गहरी रुचि है। वे एक कलाकार के साथ भाप्रवण लेखक भी हैं और उनकी रचनाएँ देश की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं। वे अंग्रेजी की एन्थोलौजी ‘फ्रजाइलिटी दाइ नेम इज़ नौट वूमन’ की भी हिस्सा रही हैं। उन्होंने अमेरिकी लेखिका ऐना एरिश्किगल के अंग्रेजी उपन्यास ‘ए गौथिक क्रिसमस एंजल’ का हिंदी अनुवाद किया है। पिछले दिनों जानेमाने इराकी कवि अनवर घानी के साथ मोज़ेक स्टाइल कविता और कलाकृतियों की पुस्तक ‘पोएटिक पैलेट’ प्रकाशित। कविता संग्रह ‘मन पाखी : ख़्वाब आसमां’ हाल ही मे प्रकाशित हुई।बचे खाली समय में अंतरा अपने शास्त्रीय नृत्य के शौक को पूरा करती हैं और वे भरतनाट्यम में प्रवीण हैं। उनकी कला और रचनाकर्म के बारे में मेरा रंग से एक विशेष बातचीत।
सबसे पहले हम आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और शिक्षा के बारे में जानना चाहेंगे, क्या बचपन से आपकी चित्रकला और लेखन में रुचि थी? किन लोगों ने आपको प्रेरित और प्रोत्साहित किया?
जी सामान्य नौकरीपेशा परिवार से संबंध रखती हूँ, दादाजी प्रशासनिक सेवा में थे, पिता इंजीनियर थे जो सेल में कार्यरत रहे। इसीलिए घर में माहौल नौकरी उन्मुख ही था। कला को शौक से ज़्यादा की अहमियत नहीं थी और इसमें भविष्य संभव है यह बात दुर्भाग्यवश सोच से परे थी। हमारी गहरी अभिरुचि देख कर सारी चीजें मुहैया करवाई जाती और सुविधा में कोई कमी नहीं थी लेकिन उसका दायरा सिर्फ शौक तक रखा गया।
बहुत कम उम्र में भरतनाट्यम नृत्य का भी प्रशिक्षण करवाया गया ताकि शारीरीक रूप से स्वस्थ और सजग रहें। पढ़ने लिखने का माहौल था इसी कारण तवज्जो सिर्फ पढ़ाई थी। एक लाइब्रेरी थी जिसमें आध्यात्म से लेकर सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक,धार्मिक,विज्ञान,साहित्य हर मुमकिन विषय से संबंधित किताबें थीं। स्वभाविक तौर पर किताबें पढ़ने की तरफ रूझान शुरू से रहा। और कुछ जरिया था नहीं उन दिनों तो कला, किताबों और संगीत के साथ ही बचपन बीता। चूंकि साहित्य और मनोविज्ञान में रुचि थी इसलिए पढ़ाई भी उन्हीं विषयों में की, कला में शिक्षा ले कर आगे बढ़ने की इच्छा थी पर उस दिशा में अनिश्चितता की वजह से प्रोत्साहित नहीं किया गया और प्रतियोगी परीक्षाओं की ओर प्रेरित किया गया। कुछ अपरिहार्य परीस्थितियों की वजह से वह भी नहीं हो सका।
निजी तौर पर मेरे दादाजी के व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया मुझे, आध्यात्म की ओर पहली दिशा उन्ही से मिली। मां की हिंदी साहित्य और कविता में गहरी रुचि थी, वो कविताएं भी लिखा करती थी तो उन्ही से प्रेरित हो कर कविताओं की ओर रूझान हुआ। विवाह पश्चात पति ने बहुत प्रोत्साहित किया और व्यवसायिक तौर पर काम करने के लिए निरंतर प्रेरित किया। चूंकि पति आर्मी में थे तो मुझे काम का बहुत अच्छा माहौल मिला क्योंकि कला की अत्यंत प्रतिष्ठा थी यहां।
कला को एक पूर्णकालिक काम के रूप में चुनना आसान नहीं है, यह काफी समय, धैर्य तथा अनुशासन की मांग करता है, कब आपको लगा कि आप एक पूर्णकालिक आर्टिस्ट बनना चाहती हैं?
जी बिल्कुल.. कला सम्पूर्ण समर्पण मांगती है । मेरा यह मानना है कि हम कला को नहीं चुनते, बल्कि कला हमें चुनती है। इसलिए हमारी जिम्मेवारी है इस ईश्वरीय देन का सम्मान करना और सम्पूर्ण प्रक्रिया में आने वाले उतार चढ़ाव को शिरोधार्य करना। इस यात्रा में मुझे पता ही नहीं चला कि कला कब मेरी साधना बन गई और मेरे जीवन की अनिवार्यता। मैं हृदय से काम करती रही और रास्ते खुद ब खुद बनते गए, मैं उस मार्ग का बस अनुसरण कर रही हूँ।
एक स्त्री जब रचती है तो उसकी दुनिया के कौन से अंतरंग कोने उद्घाटित होते हैं?
स्त्री को प्रकृति ने स्वभाविक रूप से सृजन की क्षमता के साथ जन्म दिया है। जब स्त्री हृदय से उपजी कोमल संवेदनाओं से सृजन करती है तो मन के अनेकों आयाम उसमें जाहिर होते हैं। कई तहें होती हैं और कई कक्ष। एक ऐसा कोना होता है जहां वह अनावृत है, अनगढ़ है, मौलिक है, हर तरह से, किसी भी तरह के बाह्य आवरणों से मुक्त। प्रेम की नमीं से सिंचित स्नेह की छांव लिए एक कोना है।
एक कक्ष जिम्मेदारियों से भरा हुआ जहां अपेक्षाओं के तराजू पर वह बैठी होती है। एक कोने में वह मुक्त है नक्षत्रों में विचरने वाली पर ठीक अगली तह उसे बांधकर रखती है यथार्थ से। बेटी, बहन, प्रेयसी, मां, पत्नी के किरदारों में अपने अस्तित्व बोध को धूमिल होते कई बार महसूसती है, डूबती है फिर तैरने की कोशिश करती है। दर्द सोखने वाली एक तह को संभाल कर रखती है और उढेल आती है उसमें सारी तकलीफ़ें।
कई चेहरे रखती है आवश्यकतानुसार बदलती रहती है। उसे पता है स्त्री होना सरल नहीं एक चिरस्थायी संघर्ष है अपने अस्तित्व के लिए।

आपकी पेंटिंग में स्त्री के अलावा प्रकृति जैसे वृक्ष, पर्वत, मछलियां, सूर्य आदि बार बार आते हैं, इसके बारे में हमें कुछ बताएं?
प्रकृति से मेरा गहरा जुड़ाव है। खासतौर पर पेड़ पौधों, जीव जंतुओं और सूरज चांद तारों से। मेरे उर्जा स्तोत्र हैं यह सब, जब कभी खालीपन महसूस करती हूँ उर्जा का संचार इन्हीं तत्वों से होता है। स्पन्दन महसूस करती हूँ मैं वृक्षों और जीवों की। कलाकृतियों या कविताओं में स्वभाविक तौर पर उतर आते हैं बिना किसी खास वजह के।
किसी भी कलाकार के लिए अपनी शैली का निर्माण करना बहुत कठिन होता है, आपकी शैली किस तरह से निर्मित हुई?
जी शैली का विकसित होना बिल्कुल प्राकृतिक तौर पर होता है। मेरा मानना है अगर एक लम्बे अर्से से प्रतिदिन धैर्य और अनुशासन से किसी भी कला का अभ्यास किया जाए तो आपकी शैली खुद उभरने लगती है। मैं रोज़ाना तकरीबन छः घंटे अभ्यास ज़रूर करती हूँ। खासतौर पर एक सेल्फ टौट कलाकार की हैसियत से मैं कहना चाहूंगी कि मै बेहद प्रयोगात्मक रही हर तरह की टेकनीक और मिडियम पर काम करती हूँ और आगे भी करती रहूंगी। यह एक जीवनपर्यंत चलनेवाली प्रक्रिया है।
आपकी कला में मिथकीय और भारतीय पौराणिक प्रतीक बार बार आते हैं, इस पर थोड़ा प्रकाश डालें?
पिछले चार वर्षों से मैं दो सीरीज़ पर काम कर रही हूँ पौराणिक व मिथकीय और सरीयल सीरीज़। इस दौरान अपनी कई प्रदर्शनियों में मैंने महसूस किया कि आम लोगों को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, वेद पुराणों, मिथकीय कथाओं आदि के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। तो इस सीरीज़ को जारी रखने की इच्छा हुई ताकि इसी बहाने थोड़ी जागरूकता पैदा कर सकूं। मेरा मानना है कि आज के संदर्भ में भी वो सरल रूप से कही गई बातें बहुत महत्व रखती हैं और जीवन को सही तरीक़े से जीने की प्रेरणा देती हैं।
चूंकि बचपन अधिकांशतः मिथकीय और पौराणिक कथाओं को सुनते और पढ़ते गुज़रा था तो मेरे लिए उन किरदारों के साथ एक करीबी नाता था।।घर में धार्मिक माहौल था, दादा दादी मां पिता सभी ईश्वर में गहरी आस्था रखने वाले और धर्म पुराण पढ़ने वाले, उनकी बातों में पौराणिक कहानियां होती थी जो मन में बैठती चली गई। और इस कदर समा गई कि आज भी जब मैं किसी पौराणिक या मिथकीय चरित्र की कल्पना करती हूँ तो तभी की पढ़ी सुनी कहानियां मेरी मदद करतीं हैं और चेहरा खुद उभर आता है।
आपका लेखन और रंग-ब्रश की दुनिया एक दूसरे के पूरक हैं या वे खाली स्पेस को भरते हैं? यानी कि कुछ ऐसी बातें जो आप कला के जरिए नहीं कह पातीं लेखन में उतरती हैं और लेखनी में न कहा जाने वाला कला में।
मेरी कला और लेखन एक दूसरे के पूरक हैं या कुछ यूं कह सकते हैं कई दफ़ा लेखन मेरी कला की अभिव्यक्ति की भाषा बन जाता है। वैसे तो कलाकृतियों को भाषा की आवश्यकता नहीं, कलाकृतियां खुद सक्षम होती हैं दृष्टा को आकर्षित करने या उनसे जुड़ने के लिए क्योंकि उनकी अपनी मूक भाषा होती है। एक कलाकार अपना काम कर देता है अपनी अभिव्यक्ति के साथ, फिर उसकी कलाकृति किसी भी दृष्टा की हो सकती है उसके ग्रहण बोध, संवेदनशीलता और अनुभूति के अनुसार। लेकिन अगर मैं अपनी कलाकृति के साथ कविताओं की चंद पंक्तियां लिख देती हूँ तो मैंने देखा है मेरी मनःस्थिति को समझना दर्शकों के लिए आसान हो जाता है।

इराकी कवि अनवर घानी के सहभागिता से उनकी मोज़ेक स्टाइल कविता और कलाकृतियों की पुस्तक ‘पोएटिक पैलेट’ आई थी, उसके बारे में हमें बताएं?
अनवर घानी जी से फेसबुक के माध्यम से परिचय हुआ था। उन्हें मेरी कलाकृतियों ने बेहद प्रभावित किया और फिर उन्होंने सहभागिता के लिए प्रस्ताव रखा। उन्होंने अपनी कविताएं भेजी, पढ़ते ही जुड़ाव महसूस हुआ। कुछ पेंटिंग्स पहले से ही उनके कविताओं के अनुरूप लगीं और कुछ कविताओं को पढ़ते ही मन में छवि उभरी जिसे मैंने कैनवस पर उकेरा। बेहद रोचक अनुभव रहा, जैसे अपने एक नए पहलू को जाना मैंने। किताब जानकारों में पसंद की गई जो बहुत संतोषजनक रहा।
आप अपने किन समकालीन या पूर्ववर्ती कलाकारों को पसंद करती हैं?
प्रसिद्ध समकालीन ईरानी कलाकार फ्रेदून रसूली के काम ने मुझ पर गहरा प्रभाव छोड़ा है उनकी कलाकृतियां आध्यात्मिकता से प्रेरित हैं और आंतरिक आयामों को अपनी कल्पनाशीलता से जिस तरह से वह उकेरते हैं वह अद्भुत है। सरियलिज़्म में पूर्ववर्ती कलाकार सेलवाडौर डाली मुझे बहुत आकर्षित करते हैं। रियलिज्म में डच कलाकार जोहानस वरमीर और हंगेरियन भारतीय कलाकार अमृता शेरगिल पसंद हैं।
आप किन लेखकों को पढ़ती हैं? या अक्सर पढ़ना पसंद करती हैं?
एक लम्बी फेहरिस्त है मेरे मनपसंद लेखकों की। ज़्यादातर मैं मनोविज्ञान, आध्यात्म, पौराणिक, दर्शन के साथ कविताओं की किताबें पढ़ना पसंद करती हूँ। कुछ प्रमुख नाम लेना चाहूंगी जैसे कृष्णमूर्ति, परमहंस योगानंद, आदिशंकराचार्य, कबीर,खलील जिब्रान, फ्रेडरिक लेंज़, जेम्स रेडफिल्ड, पाओलो कोलो, एलिफ़ शफ़ाक, रूमी, लाओत्से और ज़ेंन विचारधारावादी किताबें। कविताओं में सर्वेश्वर दयाल शर्मा, केदारनाथ सिंह, गुलज़ार, अमृता प्रीतम, अनामिका, गीत चतुर्वेदी।
बहुत सी लड़कियां कला के क्षेत्र में आना चाहती हैं, उनके लिए कोई सुझाव?
आज के समय में कला के प्रति जागरूकता देख कर अत्यंत हर्ष होता है। मेरा यही सुझाव है कि सच्ची लगन और हृदय से काम करते रहें, दूसरों को देखें, सीखें, पर अपनी मौलिकता बनाए रखें। यह रास्ता उतार चढ़ाव से भरा है, प्रशंसा, उपलब्धि को सिर पर न चढ़ने दें, आलोचना और निराशा को आगे बढ़ने का अवसर समझें। मंज़िल पर पहुंचने की जल्दबाजी न करें, कोई शौर्ट कट नहीं होता, इस पूरी प्रक्रिया को अनुभव करें और आनंद उठाऐं। कला आपको आत्मसाक्षात्कार करने में मदद करती रहेगी और अंततः अंतस का रूपांतरण करती है।