तसलीमा नसरीन
भाग्य बदलने के लिए कृष्णनगर से दिल्ली चले आये थे सलिल दास । खेती की ज़मीन जैसी थी, उसे उसी रूप में ही छोड़कर। वह ज़मीन जो फ़सल दे रही थी, उससे जीवन निर्वाह करना कठिन हो रहा था। उन्होंने अपने भाई को अपनी ज़मीन बिना किसी लिखा-पढ़ी के ही दे दी थी और कहा था इस ‘ज़मीन को देखना और खेतीबाड़ी करना।’ इसके बदले में भाई ने उन्हें हज़ार पाँच सौ के क़रीब रुपये दिये थे। वो जो एक बार दिल्ली आये सलिल दास, फिर वापस गाँव नहीं लौटे। दिल्ली में आकर उन्होंने गोविंदपुर की बस्ती में कमरा किराये पर लिया था। उसी बस्ती में ही उनके गाँव के दो जान-पहचान वाले लोग थे, जिन्होंने उनके रहने और नौकरी की व्यवस्था कर दी थी।
सलिल दास चित्तरंजन पार्क के बी ब्लाक में गार्ड की नौकरी कर रहे थे और उनकी बेटी प्रमिला एवं पत्नी आरती दूसरों के घरों में खाना बनाने तथा साफ-सफ़ाई का काम कर रही थीं। इससे उनके रहने और खाने का गुज़ारा ठीक से चल जाता था। इसी से कुछ पैसे भी जोड़ लिए थे उन्होंने प्रमिला के विवाह के लिए। प्रमिला का विवाह तुगलकाबाद में एक बंगाली परिवार में ही संपन्न हुआ था, जिस परिवार के साथ प्रमिला का रिश्ता जुड़ा था, वे स्वयं भी कृष्णनगर के रहनेवाले थे। माता-पिता ने देख-सुनकर ही प्रमिला का विवाह तय किया था। क्या देखा था, क्या सुना था, प्रमिला नहीं जानती। ससुराल में जाने के सात दिन बाद से ही उसने देखा था कि परिवार के बारह सदस्यों के सभी काम वह अकेले ही कर रही थी। पान में चूना लगाकर मुंह में भरने के साथ ही मुंह से गालियों की बौछार शुरू हो जाती थी सासू माँ की। दूसरी तरफ़ प्रमिला का पति था जो कभी रात को लौटता और कभी नहीं भी। अगर कभी लौटता भी तो माताल (नशे में धुत्त) होकर। प्रमिला ने इस नारकीय जीवन को उन्नीस वर्ष की आयु से ही चुपचाप स्वीकार कर लिया था। इसके अतिरिक्त और चारा ही क्या था उसके पास ! माता-पिता को अपनी आपबीती बताने के बाद भी दास-दासियों वाले जीवन से एक दिन के लिए भी मुक्ति नहीं मिली थी उसे।
प्रमिला को केवल सातवीं कक्षा तक ही पढ़ाया था सलिल दास ने। परंतु पुत्र प्रणय को माध्यमिक (दसवीं तक) तक। दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही प्रणय केरल के एक कारखाने में चला गया था रोज़गार करने। केरल में काम करनेवाले कृष्णनगर के जो जान-पहचानवाले लोग रहते थे, उन्हीं के हाथों प्रणय की खोज-ख़बर मिल जाती थी सलिल दास को। प्रणय ठीक है, अच्छा कमाता है। पिता ने प्रमिला की शादी के लिए भी कुछ रुपये भेजने को कहा था प्रणय को परंतु उस पत्र का कोई उत्तर नहीं दिया था प्रणय ने। यहाँ तक कि शादी में भी नहीं आया था वह। पुत्र-पुत्र करके अचेत हो रहे थे सलिल दास और आरती।
परंतु वही पुत्र अपने माता-पिता के किसी भी दुःख-तकलीफ़ में उन्हें एक बार देखने तक नहीं आया। सलिल दास प्रायः ही लंबी साँसें भरकर कहते ‘बेटा तो लगता है माँ-बाप के मरने पर मुखाग्नि देने भी नहीं आएगा’। परंतु आरती लंबी साँसें नहीं भरतीं वरन् कहती हैं, ‘न आये, हमारी प्रमिला ही हमें मुखाग्नि देगी’।
प्रमिला की शादी के बाद बहुत अकेली पड़ गयी थी आरती। शादी से पहले दोनों माँ-बेटी एक ही साथ काम पर जाती थीं। जे. ब्लॉक में माँ-बेटी साथ-साथ ही काम करती थी। दोनों में से यदि किसी का काम भी पहले समाप्त हो जाता तो वे एक-दूसरे की प्रतीक्षा करतीं। यदि माँ का काम पहले समाप्त हो जाता तो वह पार्क में प्रमिला का इंतेज़ार करती और यदि प्रमिला का काम समाप्त हो जाता तो वह अपनी माँ को पार्क से साथ लेती हुई ई-रिक्शा से घर लौट जाती। वे दिन अब कहाँ ! प्रमिला के ससुराल में क्या हो रहा है, इन सबकी ख़बर मिलती रहती है आरती को। अब तो आरती को उस दिन की प्रतीक्षा है, जब प्रमिला के दुर्दिन हमेशा – हमेशा के लिए कट जाएँ, लेकिन उसके दुर्दिन काटे नहीं कटते। एक दिन प्रमिला को उसके सास-ससुर, देवर, ननद और पति सबने मिलकर खूब मारा। उसकी वजह यह थी कि निताई ने दो हज़ार रुपये तकिये के नीचे रखी थी, जो उसे मिल नहीं रहा था। उन्हें संदेह है कि दो दिन पहले प्रमिला की माँ प्रमिला से मिलने आयी थीं, ज़रूर प्रमिला ने वह रुपये अपनी माँ के हाथों घर भिजवा दी होगी। एक तरफ़ सास थी जिनका कहना था कि उनके कान की सोने की बालियाँ अलमारी से ग़ायब है तो दूसरी ओर ननद ने भी आकर कहा कि उसका चाँदी का हार भी उन्हें कहीं मिल नहीं रहा है। पिटाई के कारण प्रमिला को कंपकंपी के साथ बुखार आ गया था, जिसकी किसी को परवाह नहीं। प्रमिला तीन दिन तक बिस्तर पर पड़ी रही बुखार से, लेकिन किसी ने उसे कुछ खाने तक को नहीं दिया था। इस बात की ख़बर मिलते ही आरती अपने साथ घर ले गयी थी प्रमिला को। प्रमिला की सास पूरे मोहल्ले को सुना-सुनाकर कहने लगीं – ये डायन फिर कभी जैसे लौटकर न आये इस घर में।
प्रमिला अपने माता-पिता के पास पिछले दो महीने से रह रही है। लेकिन निताई नहीं आया उसे लेने। उसके आने की उम्मीद भी अब छोड़ दी थी प्रमिला ने और फिर से दूसरों के घरों में काम करने निकल पड़ी प्रमिला। प्रातःकाल उठकर ही प्रमिला अच्छे कपड़े, जूते पहनकर अपने घने काले बालों का जूड़ा बनाकर और माँग में मोटा सिंदूर लगाकर, काँधे पर वैनिटी बैग लिए पैदल निकल पड़ती जल्दी-जल्दी ई-रिक्शा पकड़ने। इस प्रकार एक वर्षा ऋतु निकलकर दूसरी वर्षा ऋतु भी आ गई लेकिन निताई ने प्रमिला के साथ कोई संपर्क नहीं किया था। सलिल दास पिछले दो वर्षों में छह बार जा चुके थे प्रमिला के ससुराल में और उनके ससुर से पूछा था कि क्यों वे लोग प्रमिला को वापस ससुराल नहीं ला रहे हैं। छठी बार भी उन्हें एक ही उत्तर मिला था निताई के चाहने पर ही वो लोग उसे ले आयेंगे, लेकिन समस्या यह है कि निताई नहीं चाहता और निताई की माँ भी नहीं चाहती। प्रमिला के ससुर की किराने की दुकान है। चलती भी अच्छी है। सलिल दास ने सोचा था बेटी को और दुःख का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। क्या सोचा था और क्या हुआ ! सलिल दास प्रमिला को अभाव मिटाने के लिए नहीं बल्कि लोकनिंदा की वजह से भेजना चाहता है ससुराल। यदि समाज का डर नहीं होता तो वह उसे ताउम्र अपने पास ही रखता। बेटी को अपने पास पाकर दुखी नहीं थे सलिल दास। दूसरी ओर बेटा था जो होकर भी नहीं है। देखा जाए तो संतान के रूप में बस यही दुखियारी लड़की है उनकी। जो अपना खर्च चलाने के लिए पिता के आगे हाथ फ़ैलाने की बजाय दूसरों के घर पर काम करती है। प्रमिला हर महीने अपने खर्चे के रुपये रखकर बाकी महीने के पैसे अपने माता-पिता के हाथों में दे देती है।
ससुराल छोड़कर आने के कुछ महीने बाद प्रमिला ने एक संतान को जन्म दिया। घर पर ही दाई माँ आ गई थीं और प्रियंका का जन्म हुआ। उस समय ससुराल के सभी लोगों को सूचना दे दी गई थी, विशेषकर निताई को। लेकिन बच्चे को देखने कोई नहीं आया। प्रमिला ने अपने पति के व्हाट्सएप पर प्रियंका की छवि भेज दी थी। परंतु उधर से कोई उत्तर नहीं मिला उसे। प्रमिला सोचने लगी, भले ही कोई उत्तर न दे निताई फिर भी प्रियंका के पिता होने के नाते उनका यह अधिकार है कि वह अपने बच्चे का मुंह देखे। इसी बीच प्रमिला को एक दिन ख़बर मिलती है कि निताई दूसरी शादी कर रहा है। एक पत्नी के रहते हुए फिर से विवाह ? किसी-किसी का तो यह भी कहना है कि दूसरी शादी क्यों नहीं कर सकते, लिखा-पढ़ी करके विवाह न हो तो, पंडित के मंत्रपाठ से विवाह करवाने पर ऐसा ही होता है। इस घटना के बाद आरती ने सोचा था कि प्रमिला अब शायद जीवन में सिंदूर कभी न लगाए। परंतु प्रमिला ठीक पहले की तरह ही माँग भरकर सिंदूर लगाने लगी थी।
प्रमिला अपने आप से सवाल कर रही थी कि आखिर क्यों वह सिंदूर लगाती है। अपने आस-पड़ोस की दो औरतों से प्रमिला ने बिना किसी संकोच, बिना किसी संदेह के कहा था कि वह निताई से बहुत प्रेम करती है इसलिए सिंदूर लगाती है। लेकिन प्रमिला स्वयं इसका जो उत्तर जानती है, वह बहुत भिन्न है। जिस प्रकार निताई ने सबके साथ मिलकर उसके ऊपर झूठे आरोप लगाकर उसकी पिटाई की थी, उस आदमी से और बाकी कुछ भी किया जा सकता है परंतु उससे प्रेम नहीं किया जा सकता। क्या निताई भी उससे प्रेम करता है ? इसका उत्तर प्रमिला जानती है कि वह उससे प्रेम नहीं करता। क्या प्रमिला को अभी भी उम्मीद है कि निताई उसे एक दिन लेने आएगा ? एक वक्त था जब वह ऐसा सोचती थी परंतु दूसरी शादी करने के बाद उसने इस उम्मीद को भी जलांजलि दे दी थी। तो फिर सिंदूर क्यों?
सिंदूर इसलिए क्योंकि सिंदूर लगाने से उसे सड़क पर आते-जाते लोग सम्मान देते हैं। ई-रिक्शा चलनेवाले लोग उसे भाभी कहकर बुलाते हैं। यहाँ तक कि हाट-बाज़ार में भी उसे अपने लिए भाभी शब्द ही सुनाई देती है। जिन घरों में प्रमिला काम करती है उन घरों की भद्र महिलाएँ भी उसी की तरह सिंदूर, शाखा और पोला पहनकर घरों से बाहर घूमने जाती हैं। प्रमिला को देखने से लगता नहीं कि वह उनसे भिन्न है। प्रमिला भी सिंदूर, शाखा और पोला पहनकर उन्हीं की तरह अपना सिर ऊँचा करके घूमती है। जब उसके माथे पर सिंदूर नहीं था, तब न जाने कितने लोग उसके आगे हाथ बढ़ाते, छाती को नोचते, जान-बूझकर देह के ऊपर गिरते, नितम्बों पर चुटकी काटते और रुपये का लालच दिखाकर शारीरिक संबंध बनाने की माँग तक कर डालते थे।
प्रियंका को सुबह-सुबह ही आरती के हाथों सौंपकर प्रमिला निकल जाती है घरों में काम करने। अब आरती को प्रियंका की देखभाल करनी पड़ती है इसलिए आरती ने सुबह खाना बनाने का काम छोड़ दिया है। पहले एक ही घर में काम करती थी प्रमिला परंतु अब पाँच घरों में करती है। सुबह सात बजे से लेकर बारह बजे तक तीन घरों में खाना बनाने का काम, दो बजे से लेकर शाम को पाँच बजे तक दो घरों में झाड़ू-पोंछा का काम करती है प्रमिला। इससे महीने के बारह हज़ार रुपये कमा लेती है वह। प्रमिला दूसरों के घरों में काम करने के साथ-साथ अपने पिता के घर का काम भी करती है और ये बिलकुल मुफ़्त है। ससुराल के घर का काम भी बिना पैसे का ही था। लेकिन पिताजी के घर और ससुराल के घर के कामों में ज़मीन-आसमान का अंतर था। पिता के घर में काम न करने पर भी उसे कोई लात और झाड़ू से नहीं मारते, न ही गाली-गलौज करते और न ही कोई पीटते। इस घर में हंसी-ख़ुशी से दिन बीतते हैं प्रमिला के। घर के रूप में एक ही कमरा है, एक ही चारपाई जिसपर सलिल दास सोते हैं बाक़ी नीचे ज़मीन पर बिस्तर लगाकर आरती, प्रमिला और प्रियंका सोती हैं।
एक रात निताई आया। नींद से आँखें बंद हो रही थी प्रमिला की, ऐसे में आरती के धक्का देकर जगाने से हड़बड़ाकर उठ बैठी थी प्रमिला। क्यों निताई क्यों ? निताई आया है प्रमिला के साथ ज़रूरी बात करने। सलिल दास ने आरती से पूछा क्या बात करने आया है वह प्रमिला के साथ ? आरती बोलीं , क्या बात करनी है ये मैं कैसे जानूँगी !
– तो फिर कौन जानेगा ?
– जानेगी प्रमिला।
– लेकिन इतने दिनों बाद क्या बात करनी है उसे प्रमिला से ?
– वो तुम प्रमिला से ही पूछो।
प्रमिला तबतक घर के बाहर सेमल के पेड़ के नीचे जा खड़ी हुई थी।
प्रमिला बोली – क्यों आये हो, क्या चाहिए ?
– देखने आया हूँ। सुनने में आया बहुत मस्ती कर रही हो।
– मस्ती कब की, बच्चा पाल रही हूँ।
– वो छोटी बच्ची तो लड़की है। उसको पालकर क्या फ़ायदा !
– यही सब फ़ालतू बातें करने आये हो यहाँ ?
– आया हूँ, तेरी बहुत याद आ रही थी न इसीलिए।
– तुम्हें मेरी याद आयी वो भी दो साल के बाद ! असली वजह बताओ। अगर तुम बच्चे को ले जाने की सोच रहे हो तो वो मैं तुम्हें माँगने पर भी नहीं देनेवाली।
निताई ने ठहाका मारकर कहा – किसकी-न-किसकी औलाद है, मुझे कौन-सा दुःख है, जो इसे लेने आऊँगा? हँसते ही मुँह से शराब की गंदी बदबू प्रमिला के नाक में जा घुसी थी। इस बदबू को वह बहुत अच्छे से पहचानती थी। अक्सर रात को उसे इसकी बदबू आती थी। शराब पीकर क्या ही तो पीटता था निताई उसे। प्रमिला को बिना मारे निताई की शराब भी कहाँ हजम होती थी।
– सुनने में आया बहुत पैसे कमा रही हो।
– पैसे तो चाहिए ही। तुमने तो एक रूपया भी नहीं दिया। बच्ची हुई। उसे पालने में
खर्चा नहीं है क्या ?
– कुछ रुपये दो।
– तुम्हें देने के लिए मेरे पास रुपये नहीं हैं।
– झूठ क्यों बोल रही है ?
– रुपये दे, नहीं तो चिल्लाऊंगा।
– चिल्लाओ। उससे किसी का क्या ?
निताई सच में चिल्लाने लगा जिससे घिंजी बस्ती के सभी सुनें। – छिनार, मागी प्रमिला न जाने किसका-न-किसना बच्चा पेट में पाली हुई थी। मैं निताई, उसका पति, मैं ये बता देना चाहता हूँ कि यह बच्चा मेरा नहीं है।
प्रमिला ने दोनों हाथों से अपने कान बंद करते हुए घर की ओर दौड़कर दरवाज़े बंद कर दिये। उधर घर के भीतर उसके माता-पिता यह सु-ख़बर सुनने के लिए बेचैन हैं कि दोनों में क्या बातें हुईं ? उन्हें लगा शायद निताई को अपनी गलती का एहसास हुआ है, इसीलिए वह प्रमिला और बच्ची को लेने आया होगा।
– क्या रे, क्या बोला, प्रियंका को तो कभी देखा नहीं उसने, देखना चाह रहा है ? घर में क्यों नहीं लेकर आयी ?
– पूरे मोहल्ले में चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है कि प्रियंका उसकी औलाद नहीं है। पैसे माँगने आया था, पैसे नहीं दिये, इसलिए चिल्ला रहा है।
– तुम्हें लेने नहीं आया था ?
– मुझे कहाँ लेकर जाएगा, घर में तो उसकी एक और बीवी है।
दूसरे दिन रात को फिर से आया था निताई। रात क़रीब ग्यारह बजे। मुँह से शराब की बदबू आ रही थी। अबकी बार सेमल के पेड़ के नीचे नहीं गयी थी प्रमिला, बल्कि घर के चौखट पर ही खड़ी होकर बात कर रही थी। घर के भीतर सलिल दास और आरती गहरी नींद में भले ही न हों लेकिन आँखें बंद किये हुए ज़रूर थे। प्रियंका सो चुकी थी। प्रमिला निताई से जानना चाह रही थी कि क्यों आया था वह ? निताई का जवाब पहले जैसा ही – बहुत रुपये कमा रही हो। कुछ रुपये दो।
– मेरी मेहनत की कमाई है, तुम्हें दूँ किसलिए ?
– सिंदूर लगाती हो, देना तो होगा ही ?
– सिंदूर मैं तुम्हारे लिए नहीं लगाती।
– तो फिर किस यार के लिए लगाती हो, बताओ।
– किसी भी यार के लिए नहीं लगाती।
– तो फिर किसलिए लगाती हो ?
– मेरी इच्छा होती है, इसलिए लगाती हूँ।
– पैसे नहीं दोगी तो सबसे कह दूँगा कि तुम वेश्या हो।
– काम करके खाती हूँ, वेश्या बनने जाऊँगी किसलिए ?
– तो फिर रुपये दो।
प्रमिला ने अपने पर्स से इक्कीस रुपये निकाले और निताई के हाथ में देते हुए बोली – ये रुपये मैंने तुम्हारे बच्चे के दूध ख़रीदने के रुपये में से दिए हैं। फिर कभी मत आना यहाँ पैसे माँगने के लिए बोल देती हूँ। आने से मैं पुलिस को बुलाऊँगी।
– बुलाकर देखना तुम, देखते हैं पुलिस किसे पकड़कर ले जाती है। मैं कह दूँगा कि मेरे घर से रुपये-पैसे, गहने-ज़ेवर सब लेकर भागी हो तुम। उसके बाद जेल की जो भात खाना पड़ता है, उसको याद रखना।
पूरी रात प्रमिला सो नहीं सकी। इसी कारण सुबह जब काम पर जाती तो उसे झपकियाँ आने लगतीं, थकान से देह टूट रही थी। ऐसे कैसे उसका काम चलेगा ! उसे हमेशा इस बात का डर लगा रहता कि निताई ज़रूर उसका कुछ-न-कुछ अहित करेगा। ससुराल में उससे कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करेगा, इसी शर्त पर प्रमिला को वापस ले जाने की बात कहकर आये थे सलिल दास। लेकिन निताई ने किसी भी शर्त पर अमल नहीं किया। ऊपर से न तो कुछ बोला न सुना, ये भी नहीं कि दो बातें ही अच्छे से करे, सुलह करने भी नहीं और न ही प्रमिला को वापस लेने और न ही बच्ची को देखने के लिए आया है, आया है तो क्या रुपये माँगने। शराब के नशे में धुत्त हुए इंसान को हित-अहित का ज्ञान नहीं रहता है। ज्ञान था ही कब निताई को ! प्रमिला ने अनुमान लगा लिया था कि निताई उसके पास सिर्फ़ शराब के लिए ही पैसे माँगने आता है। लेकिन एक आदमी के लिए उसे शराब का पैसा इकट्ठा करना ही क्यों पड़े ? क्या रिश्ता है उसका इस आदमी के साथ ? प्रियंका के पिताजी हैं, इससे अधिक तो और कोई संबंध नहीं है दोनों के बीच। जिसने कभी अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाया, उसके लिए खाने का सामान नहीं ख़रीदा, बच्चे को कभी गोद नहीं लिया, कभी प्यार से उसे दुलारा नहीं, कभी अपनी गोद में लेकर उसे सुलाया नहीं, कभी बच्चे की किलकारियां तक नहीं सुनी, बच्चे का कभी कपड़ा-लत्ता नहीं धोया, बच्चा क्या वास्तव में उसका है ?
इन सबके बाद भी कई बार आया है निताई पैसे माँगने। इक्कीस रुपये नहीं लेगा वह। उसे पचास रुपये चाहिए। प्रमिला ने भी उसे पचास रुपये ही दिए थे। सलिल दास ने अबकी बार डंडा रखा है दरवाज़े के पीछे, निताई को मारने के लिए। इस बार आने से ही पीटेगा। एक दिन वाकई में आ धमका था निताई, प्रमिला इस बार उसके सामने नहीं आयी थी, उसके पिताजी ने ही उसे मारकर भगाया था।
प्रमिला सुबह जिस घर में खाना बनाने जाती है, वह उसका बहुत पुराना घर है। शादी से पहले भी वह इसी घर में खाना बनती थी। घर की मालकिन अक्सर प्रमिला से बातें किया करती थीं। प्रमिला को उसके ससुरालवालों ने जब पीटा था, उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है, बच्चे का कोई खर्चा वह नहीं देता, ऊपर से खुद के शराब पीने के लिए रुपये माँगने आता है, ये सारी बातें जानती हैं प्रमिला की मालकिन, उसने उन्हें सबकुछ बता रखा है।
मालकिन ने एक दिन उससे पूछा – तुम्हें तलाक़ दिया है ?
प्रमिला अपना सिर पकड़कर बोलने लगी, – नहीं, नहीं दिया है।
– हिन्दुओं में तो दो पत्नी रखने का नियम नहीं है ।
– वो भला मैं क्या जानूं ! दूसरी शादी तो कर ही ली उसने !
– तुम्हें तलाक़ दिये बिना, दूसरी शादी करना गैरकानूनी है। तुमलोगों की शादी तो रजिस्ट्री करके हुई है न ?
– लगता नहीं है ?
– नहीं होने पर तो पहली शादी भी गैरकानूनी है।
प्रमिला ने उनकी बातों को हंसकर टाल दिया था – शादी तो मंदिर में जाकर माला पहना देने से ही हो जाती है। ये भला गैरकानूनी क्यों हो !
मालकिन ने प्रमिला से एक दिन फिर पूछा, तुम सिंदूर क्यों लगाती हो?
प्रमिला ने कहा था, शादी हुई है, इसलिए लगाती हूँ।
– ये कैसी शादी है? पति के साथ केवल दो महीने रही। उसके बाद से प्रायः दो साल से अकेली हो। लड़की को भी खुद ही अकेली पाल रही हो। सिंदूर को पोंछ डालो।
– पोंछ डालो बोलने से ही तो पोंछ नहीं दिया जाता न। हिन्दू लड़कियों की शादी एक ही बार होती है। शादी होने के बाद सिंदूर-शाखा पहनना ही पड़ता है।
– किसने कहा एक बार ही शादी होती है ? मैं तो हिन्दू हूँ, मेरे पहले पति के साथ रिश्ता टूट गया तो मैंने फिर से शादी की है।
– हमलोगों की जाति मैं ऐसा नहीं होता है।
– तुम्हारी जात क्या है, सुनूँ ज़रा ?
प्रमिला ने कोई उत्तर नहीं दिया। मालकिन ने फिर से सवाल किये – तो क्या तुम पूरी ज़िंदगी अकेले ही रहोगी ? हल्की सी मुस्कान के साथ प्रमिला ने कहा – अकेली कहाँ हूँ? माँ-पिताजी हैं न।
– लेकिन माँ-पिताजी तो उम्रभर नहीं रहते न। उनके ना रहने पर ?
प्रमिला फिर से हंस दी और बोली – प्रियंका तो है ना?
इस बार पूजा में मालकिन प्रमिला को एक अच्छी साड़ी देंगी, यह जानकर प्रमिला को बहुत ख़ुशी हुई। इसके बाद उसकी एक और ख्वाहिश है कि – ‘आप जो सिंदूर लगाती हैं न, मुझे वही सिंदूर की एक डिबिया चाहिए’। मालकिन ने उसे लाल सिंदूर और लाल साड़ी दी थी। दुर्गा पूजा में प्रमिला उसी सिंदूर को मोटा करके अपने माँग में भरकर निकल गई थी पंडालों में घूमने। उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। ये कोई सस्ता सिंदूर नहीं है। यही सिंदूर उसकी मालकिन भी लगाती हैं। पांडाल देखते हुए उस भीड़ में ही न जाने कितने लोगों ने उसे भाभी – भाभी कहकर संबोधित किया था। कोई कहता- भाभी थोड़ी सी जगह दीजिए, भाभी उधर जाइए उधर ज़्यादा भीड़ नहीं है, कोई कहता ऐ भाभी को बैठने दो, कुर्सी दो। छोटे-बड़े सभी उससे स्नेह करते हैं। यही स्नेह सभी से चाहती है प्रमिला। प्रमिला देखने में सुंदर है, रंग भी गोरा है। उसे देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि वह दूसरों के घर में काम करती है। उसे देखकर सबको यही लगता है कि उसका पति हो सकता है आसपास ही है, वह आगे – आगे चल रहे होंगे, भाभी ही पीछे हो गई होंगी।
दूसरों के घर काम करने से न जाने कितनी ही गालियाँ खानी पड़ती है, ससुराल में भी गालियाँ खाती थी प्रमिला। आजकल माता-पिता के घर भी गालियाँ सुनती है प्रमिला। जबतक उसके माता-पिता को यह लगा कि एक दिन निताई आएगा प्रमिला को लेने तबतक उसके साथ अच्छा व्यवहार किया था उन्होंने, लेकिन जैसे ही उन्हें यह महसूस होने लगा कि अब निताई कभी नहीं आएगा उसे लेने, उसी दिन से प्रमिला उनके घर में एक अतिरिक्त सदस्य के रूप में समझी जाने लगी। प्रमिला अब उनके कंधे के ऊपर एक बोझ की तरह है। प्रियंका भी अब परेशान करती है, रोती है, सताती है। प्रियंका की देखभाल करनी पड़ती है इसलिए आरती भी अब पहले से कम घरों में काम करती है। काम कम, इसलिए पैसे भी कम मिलते हैं आरती को। उलाहनों का पहाड़ इकठ्ठा हो गया है प्रमिला के लिए। इसलिए कहीं चैन नहीं है प्रमिला को बल्कि बाहर ही शांति मिलती है उसे। अनजान लोगों के बीच में ही शांति मिलती है। ई-रिक्शा के जितने ड्राइवर्स हैं वे सभी प्रमिला की देह के ऊपर किसी को बैठने तक नहीं देते। वे सभी भाभी का बहुत ख्याल रखते हैं। इनमें से किसी को यह पता भी नहीं कि पति के नाम पर असल में उसका कोई नहीं है। एकमात्र प्रमिला ही जानती है उसके सिंदूर का सच और निताई के साथ या किसी और के साथ का संबंध।
एक दिन उसकी मालकिन ने कहा – क्या रे अकेली–अकेली कैसे रहती हो तुम ? आदमी तो चाहिए। कोई काम-भावना नहीं है क्या तेरे भीतर ?
प्रमिला ने हंसकर कहा – काम-भावना क्या होती है, नहीं जानती ! लेकिन हाँ किसी आदमी ज़ात पर अब मुझे कोई विश्वास नहीं है दीदी।
– कोई अच्छा लड़का देखकर शादी कर लो।
– क्या जो बोलती हो दीदी – हिन्दू लड़कियों की शादी एक ही बार होती है।
– तुमलोगों की यह शादी-ब्याह का झमेला मेरे तो पल्ले नहीं पड़ता जिसका न सिर है न पैर।
– दीदी आप जो कहती हो कि मैं कोई और लड़का देखकर शादी कर लूँ ! कोई और लड़का भी निताई की तरह नहीं होगा, इसकी कोई निश्चितता है ?
– मालकिन बोलीं – जीवन में किस चीज़ की निश्चितता है रे ?
प्रमिला ने अपने सिर को छूते हुए कहा – वही तो ! किसी भी चीज़ की तो निश्चितता नहीं है। यहाँ तक कि ज़िंदगी की भी कोई निश्चितता नहीं है !
मालकिन ने इस बार गंभीर होकर प्रमिला से सवाल किये – यदि निताई तुम्हें वापस लेने आये या ससुराल से कोई और आये तुम्हें लेने तो क्या तुम जाओगी ?
प्रमिला अपने सिर को छूती है, दायें-बायें देखती है और फिर एक ही बात कई बार दोहराती हुई कहती है – नहीं।
– कोई दूसरा आदमी यदि तुमसे कहे कि वह तुमसे प्रेम करता है, तुमसे शादी करना चाहता है, तो करोगी ?
इस बार भी वह ज़ोर देकर कहती है – नहीं।
– कितने दिन और दूसरों के घर काम करके खा सकोगी ?
– जिस दिन नहीं कर पाऊँगी तो प्रियंका खिलाएगी न ! उसे तो स्कूल और कॉलेज में पढ़ाऊँगी।
इस बार प्रमिला के चेहरे पर तृप्ति की हंसी थी।
यह अनुवाद डॉ.चैताली सिन्हा ने किया है। डॉ. चैताली जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी की शोधार्थी हैं। कविताओं के अलावा वे चिंतनपरक आलेख भी लिखती है और मेरा रंग की नियमित लेखिका हैं। उनसे chaitalisinha4u@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।