अपने संघर्षों के दम पर
मंजिल पाने वाली एक स्त्री के पीछे भी
लगा दिए जाते हैं अक्सर
पिता, पति और पुत्र के पायदान
एक झटके में छीन लिए जाते हैं
उसके सारे प्रयास
व्यर्थ कर दिए जाते हैं उसके सारे प्रयत्न
बना दी जाती है अन्या
मर्द की दायीं पसली से पैदा हब्बा
कि फिर् क्या बजूद है उसका इनके सामने
शबाना! ऐसा ही सुना था मैंने तुम्हारे बारे में
जब तक नहीं देखी थी ‘अंकुर’
‘निशांत’ से भी नहीं पड़ा था पाला
‘मंडी’ खैर कौन जानता
‘पार’ से भी पार नहीं हुए थे
और तुम्हारा ‘अर्थ’ मुझे
नहीं ले जा पाया था
‘गॉड मदर’ और ‘वाटर’ तक
कि उससे पूर्व सुन चुका था
तुम्हारी दुश्मनी के किस्से
कि एक अभिनेत्री भी
अंततः एक स्त्री ही होती है
दूसरी स्त्री की चिर शत्रु
अभी रात के बारह बज रहे हैं
और मैं ‘पार’ देख रहा हूँ
एक भारी कोख दलित मुसहर स्त्री का
पार होने में डूब जाने का मर्मांत
*
मेरे पास वाक्य नहीं
संरचना नहीं किसी महाकाव्य की
कि मैं व्याख्या कर सकूँ उन पलों की
कि जिन पलों में तुमने जिया उन क्षणों को
कविता को मैंने अभिनय करते देखा था
महसूस किया था उसका पद लालित्य
किन्तु अन्तस् का सारा कोमलकांत सोखकर
खुरदरे गद्य सा तुम्हारा यों प्रकट होना
धीरोदात्त कुलीन पुरुषों की गाथा गढ़ते
नायिका-भेद और नख-शिख में उलझे
मनीषियों के गाल पर तब
यह सब तमाचा ही रहा होगा
मृगचर्म और मुसल्लों पर बैठकर तब
अवश्य ही किया गया होगा इस पर विचार
कि इस हराम और कुँभीपाक जात का
अभिनय करती यह कवि पुत्री
इतनी सहज कैसे रही?
जैसे अपना काम करते
सहज रहती हैं
उनके यहाँ घर कमाने आने वालीं
चूहड़ी और भंगनें !!!

कुख्यात चंबल के एक पिछड़े गाँव-पान सिंह का पुरा (नुन्हाटा) भिण्ड (म.प्र.) में 20 अगस्त 1980 को सामान्य कृषक दलित परिवार में जन्में डॉ. जितेन्द्र विसारिया जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.) से हिंदी विषय में एमए व पीएचडी हैं। डॉ.जितेन्द्र, यूजीसी नेट क्वालीफ़ाई होने के साथ-साथ महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा से ‘हिन्दी सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा भी किया है। पहला कहानी संग्रह ‘नये सजन घर आए’, भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्रतियोगिता 2015 में सम्मानित और प्रकाशित है। ‘ज़ख्म’ (लघु उपन्यास), ‘माँ की निगाह में पिता’(कविता संग्रह) ‘हिन्दी की प्रमुख दलित आत्मकथाएँ : एक विश्लेषण’, ‘बुन्देली महाकाव्य आल्हखण्ड : एक अन्तर्जनपदीय प्रभाव’ व हिन्दी सिनेमा और दलित’ (सभी शोध) ‘दौड़ : अ रन फॉर फ्रीडम्’ (पटकथा) और ‘हिन्दू कोडबिल (डॉक्यूमेन्ट्री) इनकी प्रमुख रचनाएं हैं। वर्तमान में शासकीय एमजेएस स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिण्ड में हिंदी के प्राध्यापक।