सुचेतना मुखोपाध्याय
1. चांद से बातें
चांद से बातें
अब नहीं होती।
चांद ने अपना घर
बदल लिया है।
मैंने भी।
2. ज़िक्र
रात परवान चढ़ी
खामोशी के संग।
लफ़्ज़ों में समाउं कैसे
उन लम्हों को?
चाँद की तरह बेताब
जिन पलों में,
तेरा ज़िक्र आता हैं।
3. झगड़ा
मुझे कुछ नहीं कहना है।
मेरे शब्द थके हुए हैं
मुझ ही से लड़-झगड़ कर।
शब्दों के कमरे में
बत्ती बुझा दी मैंने।
उन्हें सोने दो।

पेशे से अध्यापक सुचेतना मुखोपाध्याय कोलकाता में रहती हैं। सुचेतना हिंदी लेखन से जुड़ी हैं और महिला मुद्दों पर लघुकथा, कविता और नारी इतिहास संबंधी आर्टिकल्स लिखती हैं।