एकता प्रकाश
एकता प्रकाश पटना मे रहती हैं। वे हिंदी साहित्य की स्टूडेंट हैं और और कविताएं तथा समीक्षात्मक आलेख लिखती हैं। कई साहित्यिक पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों में उनकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। फादर्स डे पर उन्होंने मेरा रंग के लिए पिता के नाम लिखी अपनी दो कविताएं भेजी हैं।
1.
पिता की बेटी
पिता के स्नेह की आंखों में,
पल्लवित होती मैं बड़ी हुई!
पिता के हाथों की हथेली पर,
कदम चलते, बढ़ते मैं खड़ी हुई!
पिता के बांहों के आसमान में,
मैं पंख फैलाते स्वच्छंद, आजाद उड़ी!
पिता के आशीष के छांव में,
मैं निडर, निभ्रिक, हमेशा रहीं!
पिता के मानस हृदय के बने घोंसले में,
मैं बुरी नजरों से बचती रही!
पिता ही तो वो है जिनके संरक्षण में,
हम बेटियां महफूज़ रही!
पिता ही तो वो है जिनके साथ से,
हम बेटियां समाज में जी रहीं!
पिता ही तो वो है जिनके प्यार- सम्मान से,
हम बेटियां अपना जीवन बचा रही!
पिता ही तो वो है जिनके दुलार से,
हम बेटियां हक से पढ़ लिख रहीं!
उनके सुरक्षा कवच के साये में
हम बेटियां बिना भेदभाव के ,
कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं!
समाज में हमें भी है जीने का हक,
इस अधिकार के साथ जी रहीं!
पिता ही तो वो है जिनके हिम्मत देने से,
हम बेटियां बेबाक बोल रहीं!
पिता ही तो वो है जिनके हौसले बढ़ाने से,
बिंदास हो साइकिल, स्कूटी, मोटरसाइकिल,
सड़क पर दौड़ा रहीं!
2.
पापा
घनी अंधेरी रातों में
पापा रोशनी का वो टुकड़ा है
जो उन अंधेरों को काटकर हमारे जीवन में उजाला
लाते है!
हमारे अंदर का डर जब हमें डराता है
भय से घिरे हम सहमें रहते हैं
पापा डर को भगा, हमारे अंदर हिम्मत पैदा करते हैं!
घड़ी परीक्षा की ,जब भी जीवन में आये
पापा हर वक़्त, साथ खड़े दिखते आये
पापा के जीवन में रहने, हमेशा उपस्तिथि से
नामुमकिन काम भी, पापा के रहने से मुमकिन हो जाये!
जीवन में हर पड़ाव पर, आई आंधियों से, टकरा जाते हैं पापा! चट्टान से खड़े रहकर, सब दर्द सह जाते हैं पापा!
दर्द और कठिनाइयों के मेलजोल का नाम ही तो है पापा!
अपनी हर पीड़ा ,जज्बात को, नहीं दिखाते समर्पण का नाम है पापा!
जिंदगी की राह में आई हर मुश्किलों का हल है पापा!
अनिश्चितता के बादल के ऊपर, निश्चितता का साया बन, मंडराते है पापा!
हर पल, हर वक़्त, बन पहरेदार ,पहरेदारी करते हैं पापा!
उपस्थित होते हैं जीवन में !
साये की तरह साथ रहकर, हर दुख, कष्टों में,
हमें अपनी दुआओं से बचाते हैं!
जिनकी छाया में ,हम बच्चे रहते,
सुरक्षा का एहसास दिलाते, उस अहसास का नाम है पापा!
कम बोलना, धीमे बोलना अच्छी बात है !
हर वक़्त चुप रहना ये भी सही बात नहीं है!
मन की बात को बताना सबसे जरूरी है, यह बात हमेशा कहते हैं पापा!
बेझिझक हर बात को बताना, कहना सिखलाते है !
डर को भगा, साहस के साथ रहने को कहते हैं!
ख़ामोशी को ना पालने की हिदायत के साथ
खुलकर बातचीत करने को कहते हैं !
अच्छे विचार ग्रहण करने को , अच्छी बातें अपनाने को कहते हैं !
विफलता का कड़वा स्वाद चीख़ना
सफलता का मीठा स्वाद चीख़ना
दोनों के ही स्वाद में तृप्ति का सुख है
यह पाठ हमेशा पढ़ाते है पापा!
पापा का अपना अलग ही अंदाज होता है!
हम सबके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है!