शैलजा पाठक
जब तुम उस स्त्री को प्यार करना जो पहले प्रेम में छली गई थी तो
पहले ये जान लेना ये देह एक यातना घर होगा
ये समझ लेना के बरसों से बारिश से नही भीगी होगी उसकी देह
न उठती होगी कोई महक लोबान की
की तुम अकुलाहट से बेसब्र कहीं से उतार दो उसके कपड़े
तुम समझना के उसने काली दीवारों के पार कितने ही वक़्त को काटा होगा
उसके हिस्से की सुबहें
उसकी शामों का सूरज उसकी नाभी के गढ्ढे में गुम हुआ पड़ा है
क्या तुम एहतियात बरत सकते हो
उसे प्यार करने का?
अगर ना तो मुड़ जाओ किसी रास्ते
अगर हाँ
तो अपनी हथेलियों को दूब से धोकर उनकी कोमलता और रंग लाना
अपने कँधे को सतर सीधा रखना के वो उसकी ओट से देख सके आंख भर उजाला
अपनी आंख में भर लेना तमाम नदियों के जल
के उसकी कहानी को सुनने का कलेजा रखना
अपनी छाती में किसी पिता की तरह सुकून वाली धड़कनें उतार लेना
के वो सुन सके इंसान को और कर सके यकीन
प्रेम में छली औरत को प्यार करना
आग से जले को फिर आग के सम्मुख रखना है
उसे भरोसे की कहानी मत सुनाना
उसकी सुनना
उसकी हाथ की तपिश में आज भी गर्म है कोई आँच
किसी ने उन हथेलियों से होंठ लगा अपनी प्यास बुझाई थी
किसी ने उसके सिरहाने गुलाबी पंखुरियाँ बिछाई थी
किसी रात के प्रेमी ने देह की सभी हदे तोड़ते उसके गाल चूमे थे
कान की लौ पर दांत धसाते किसी ने कहा था
तुम दुनियाँ की सबसे खूबसूरत औरत हो
पर दुनियाँ और भी खूबसूरत औरतों से भरी है
उसकी लस्त देह से उस प्रेमी ने खिंच ली थी अपनी शर्ट
उसके बाद और उसके भी बाद उस विक्षिप्त प्रेमिका ने न जाने कितने गरम झरनों में नहा कर साफ की अपनी देह
अपनी आंखों को अंतहीन गढ्ढो के सुपुर्द कर दिया
अपनी कलाई पर फेरती रही कोई धारदार चाकू
पुरानी कहानी में बेतरह छली गई प्रेमिकाएं गीली लकड़ी की तरह होती हैं…
शैलजा पाठक कविताएँ लिखती हैं। उन्होंने बनारस में रहते हुए हिंदी में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की है। इन दिनों मुंबई में रहती हैं। अब तक दो कविता संकलन ‘मैं एक देह हूँ फिर देहरी’ और ‘जहां चुप्पी टूटती है’ आ चुके हैं। तमाम साहित्यिक पत्रिकाओं तथा ब्लॉग पर कविताएं प्रकाशित।