नागेंद्र प्रताप सिंह की कविता ‘जन नायक हूँ मैं !’

Dictator

नागेंद्र प्रताप सिंह

मैं कहता रहा
तुम सुनते रहे,
मैं बोलता गया
तुम मानते गये,
जब तुम कहने लगे
मैंने अनसुना कर दिया।

मैंने कहा, बदल दूँगा व्यवस्था
जला दूँगा भ्रष्टाचार व अव्यवस्था
और तुमने विश्वास कर लिया
मैंने कहा विकास का हूँ अग्रदूत
आतंक का विनाशक शांतिदूत
आमूल- चूक परिवर्तन का क्रांति दूत
तुमने यकीन कर लिया।

मैंने कहा,मेरा पाथेय है सिद्धांत
फरिश्ता हूँ जीवंत
तुम्हारी लिखने आया हूँ तकदीर
तुमने मान लिया।

मैंने कहा, तुम्हारा खुदा हूँ
बंदगी करो झुककर
तुमने सजदा कर लिया।

मैंने बाहें क्या उठाई हवा में
तुम्हें लगा जैसे बरकतें बरस रहीं
मैंने शब्दों की गर्जना भर की
तुमने मान लिया योद्धा।

मैंने हथेलियों पर हाथ क्या रखा
तुमने बौछार कर दी करतल ध्वनि की
मैंने अभिनय पौरुषेय का क्या किया
तुम दिवानगी में मदहोश हो गये।

मैंने कहा, परिवर्तन आ रहा है,झूमो!
तुमने नटराज के नृत्य को भी बौना कर दिया
तुम भूल गये जाति-धर्म की अफीम
जिस पर तुमने मुझे पसन्द किया
और मुस्कुराते हुए थामा रुपयों का बन्द लिफाफा
तुमने पूछा एक बार भी मुझसे
यह आया कहाँ से है,देवदूत?

मैं सिद्धांतवादी हूँ
जिसका मन्त्र है मेरा अस्तित्ववाद
और नाभि है अवसरवाद
मैं हूँ सौदागर तुम्हारे वोट का
निखारता हूँ नितांत ‘निज’
तुम कहते हो मैंने धोखा दिया
पर मैंने स्वधर्म निभाया।

मैं आस्वस्त हूँ कि फिर बनोगे शिकार
मेरे शब्द जिल का
मैं फिर कहूँगा,तुम फिर सुनोगे
और जब तुम भूल से
पूछोगे कोई सवाल
मैं मुस्कुरा दूँगा बहरा बनकर।

तुम सलाम करोगे
मेरी नेतृत्व कला को
मैं राज करता रहूँगा चिरंतन
रूप,गंध व वस्त्र बदलकर
संविधान संवहन का पहनकर चोला
क्योंकि तुम्हारा जननायक हूँ मैं!

नागेंद्र प्रसाद सिंह पूर्व आईएएस हैं। प्रशानिक जिम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ वे सामाजिक और रचनात्मक रूप से भी लगातार सक्रिय रहे हैं। वे नोएडा में रहते हैं। 

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