प्राचीन सुमेरियन सभ्यता से निकली संसार की पहली कवयित्री एनहेदुअन्ना की कहानी

एनहेदुअन्ना

सुचेतना मुखोपाध्याय

तारों से झिलमिला रही है प्राचीन उर नगरी की रात। ‘जिगुरात’ की आंगन में अकेली बैठीं है वो। मुख्य पुजारिन एनहेदुअन्ना..

दीर्घ व्याकुल प्रतीक्षा के बाद उनके पास आ बैठीं है युद्ध, प्रेम और उर्वरता की महादेवी इनन्ना। पुजारिन की हृदय से देवी के लिए जन्म ले रही हैं एक के बाद एक स्तुति। कल सुबह की पूजा के बाद जिन्हें मिट्टी के पट्टिकाओं पर लिख रखेंगे एनहेदुअन्ना के सहयोगी ‘एबाडू’ मुंशी। बड़ी प्रसिद्ध होती उनकी हैं यह गीत। जो दक्षिण की सुमेरिया की सीमाओं को पार करके छा जाती हैं उत्तर के अक्काद और फिर सम्राट सार्गन के पूरे बिशाल साम्राज्य में।

भोर होने को है… एनहेदुअन्ना अभी भी रच रहीं है महादेवी के गीत…

एनहेदुअन्ना कौन थी?

सन 1922 से ले कर सन 1934 तक प्रख्यात ब्रिटिश पुरातत्वविद सर लियोनार्ड वूली और उनके सहयोगी दक्षिणी इराक़ के उर शहर में महान सुमेर सभ्यता के अबशेष खोंजने के लिए उत्खनन कर रहे थें। उनके एकाग्र कोशिशों से बीसवीं सदी के रौशनी में वापस आ रही थी विश्व के प्राचीनतम मेसोपोटामिया सभ्यता के अनगिनत महत्वपूर्ण उपादान। 1927 में उन्होंने उर की प्राचीन ‘जिगुरात’ यानी मंदिर के भीतर खुदाई शुरू किया।

वहाँ स्थित ‘जिपारु (जिगुरात के अंदर पुजारिओं की रहने की जगह) के ‘जिरु’ (पुजारियों की ख़ास समाधिस्थल) अंश में उनको मिला सफेद कैल्साइट पत्थर के कुछ अजीब से टुकड़े। उन्हें लगा इनका विशेष कोई महत्व हो सकता हैं, तो उन्होंने पत्थर की उस पहली को सुलझाना शुरू किया। सर वूली का अंदाज़ा सही था। क्योंकि टुकड़ों को सजाने के बाद उन्हें मिला एक गोलाकार शिलालेख ; जहाँ एक ओर थीं तीन पुरुष मूर्तियों के बीच खड़ीं राजसिक पोशाक और मुकुट पहनी हुईं एक महिला की प्रतिकृति और दूसरी पीठ पर क्युनीफॉर्म लिपि में उत्कीर्ण थी उनकी परिचय… “उर की देवी इनन्ना की मंदिर की मुख्य पुजारिन एनहेदुअन्ना, चन्द्रदेव नन्ना की पत्नी और विश्वसम्राट सार्गन की कन्या” …

वूली ने उनका प्रख्यात शोधग्रंथ ‘The Excavations at Ur and The Hebrew Records’ में पहली बार इस खोज का उल्लेख किया। इस आविष्कार के बाद की दो दशकों में एक के बाद एक मेसोपोटेमिया के सारे महत्वपूर्ण शहर; जैसे उरुक, नीपुर, लागाश के जिगूरातों से और असीरिया के साहित्यप्रेमी सम्राट अशुरबानिपाल के लाइब्रेरी से भी मिली एनहेदुअन्ना की नाम लिखी हुई प्रार्थनागीत और पौराणिक कहानियों की सौ से ज्यादा अभिलेख।

1950-60 के दशकों से जर्मन पुरातत्वविद एडम फकेनस्टाइन, विलियम हैलो, वैन डिक, और बेटी मीडोर जैसी अमरीकी इतिहासकार और भाषाविदों द्वारा एनहेदुअन्ना पर गहरे अनुसंधान तथा से उनकी साहित्य को पश्चिमी भाषाओं अनुवाद किये जाने से उनके बारे में पाठक और शोधकर्ताओं की उत्सुकता बढ़ने लगी। ऐसी तमाम पहल की बदौलत पुराकाल की इस अनोखी व्यक्तित्व का अनोखा जीवन सदियों के विस्मृति के बाद वर्तमान दुनिया के सामने आलोकित हो सका।

एनहेदुअन्ना
एनहेदुअन्ना की एक प्रतिमा

राजकुमारी, पुजारिन, कवयित्री

प्राप्त अभिलेखों से स्पष्ट हो रहा था की एनहेदुअन्ना ( ईसा पूर्व 2285-2250) अक्काद साम्राज्य और शायद विश्व इतिहास के पहले सम्राट ‘महान सार्गन’ ( ईसा पूर्व 2334-2290) और रानी ताशलुलतुम की बड़ी बेटी थीं। अक्काद यानी उत्तर मेसोपोटामिया के महत्वकांक्षी राजा सार्गन ने दक्षिण के सुमेरिया और कईं पड़ोसी इलाकों को युद्ध में हराया और सारे प्रांतों को एकजुट कर एक विशाल साम्राज का निभ रक्खा। दक्षिण के नए से अधिकृत विद्रोही इलाकों में शांति, कानून और शासन ब्यबस्थाओं की स्थापना सहित उत्तर-दक्षिण के बीच मैत्री बनाने का दुष्कर दायित्व उन्होंने अपनी “साहसी और ज्ञानी” बेटी एनहेदुअन्ना के मजबूत कंधों पर डाला।

एनहेदुअन्ना को दिया गया सुमेरिया के सबसे बड़े शहर उर में चंद्रदेव नन्ना के नाम पर बनी विशाल जिगुरात की सबसे पहली महिला मुख्य पुजारिन का पद। सार्गन का यह निर्णय राजनैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अपने आप में एक क्रांतिकारी क़दम था, जिससे शुरू हुई अगले 500 साल तक चलनेवाली राजकुमारी पुजारिनों की एक महान परंपरा, जो मेसोपोटामिया सभ्यता के एक अनोखी विशेषता रही।

प्राचीन मेसोपोटामिया के हर बड़े शहर के केंद्र में एक जिगुरात यानी मंदिर बनाया जाता था उस शहर के संरक्षक देबता के नाम पर। बस पूजा-अर्चना ही नहीं मंदिर के एक हिस्से से चलाया जाता था उस शहर का प्रशासन भी। शहर का राजनीतिक, आर्थिक, समाजिक , सांस्कृतिक- हर व्यवस्था आवर्तित होता था उसी के ही इर्द-गिर्द। इसीलिए जिगुरात के मुख्य पुजारी का समाज में एक विशेष महत्व होता था।

एनहेदुअन्ना को खूब पता था कि धर्म एकमात्र ऐसा नशा है जो आम आदमी को सबसे आसानी से अपने वश में ले सकती है। इस लिए अपनी पुजारिन की भूमिका को कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करके उन्होंने उत्तर और दक्षिण की अलग भाषा और संस्कृति को धर्म के तार से बांधने और विशाल सुमेर की जनता का निष्ठा अपने और अपने सम्राट पिता के लिए जितने का फैसला किया।

धर्म और उसका इस्तेमाल

उत्तर से उर में आते ही उन्होंने अपनी पुरानी अक्कादी नाम को बदल डाला और खुदको ‘एन’ यानी मुख्य पुजारिन घोषित किया। नए इस नाम के साथ ही उन्होंने ‘हेदुअन्ना’ उपाधी को भी अपनाया; सुमेरिया की भाषा में जिसकी मतलब थी ‘स्वर्ग का गहना’। इसके बाद अपनी सहजात कवित्व प्रतिभा की उपयोग करके इनहेदुअन्ना ने दक्षिणी देवी-देवताओं के लिए एक के बाद एक स्तुति रचना शुरू कर दी।

अक्काद के पौराणिक देवी देवता अपना नाम बदलकर उनकी गाथाओं में ना सिर्फ आने लगे पर सुमेर के देवताओं से ‘युद्ध’ में हारने भी लगे। जैसे एनहेदुअन्ना की कविता में अक्काद की देवी ‘इष्टार’ की कहानी ढल गयी सुमेर की प्राचीन देवी ‘इनन्ना’ की कहानी में, जहां इनन्ना अक्काद के मुख्य देवता ‘आन’ को युद्ध में हरा देती है।

एक तरफ, अपनी देवगाथाओं में एनहेदुअन्ना ने पराजित सुमेरिया वासियों की वीरता, देशप्रेम और लोककथाओं गौरवान्वित तरीके से पिरो कर वो तमाम दक्षिण में जल्द ही लोकप्रिय हो गयीं, उधर धर्म के साथ नई कहानी, युद्ध के साथ देशभक्ति और समाज के साथ व्यक्तिगत अनुभूतियों को निपुणता से सजाकर अपने मनमोहक धार्मिक गीतों के ज़रिए साम्राज्य के बाकी हिस्सों के भी सबसे प्रसिद्ध पुजारी भी बनीं। अपनी लोकप्रियता के दम पर फिर एनहेदुअन्ना ने अपनीं सत्ता को सुमेर में निष्कण्टक किया। वह पिता सार्गन की मृत्यु के बाद भी अपने भाई राजा ‘रिमुश’ और फिर भतीजे ‘नरम-सिन’ के समय तक उर शहर की मुख्य पुजारिन के पद में ना सिर्फ बनी रहीं, पर पूरे सुमेर में अपनी राजनीतिक और मज़हबी दबदबा कायम रखने में भी सफल हुयीं।

एनहेदुअन्ना की एक पेंटिंग
एनहेदुअन्ना की एक पेंटिंग

एनहेदुअन्ना की कविता

नन्ना यानी चंद्रमा देव के मंदिर की पुजारिन होते हुए भी कवि एनहेदुअन्ना ने अपनी सबसे सुंदर कविताओं को लिखा था देवी इनन्ना के लिए। जैसे…

इन-सिन-मे-हास-आ : देवी इनन्ना और एबीह पर्बत की कहानी, जिसमें देवी घमंडी पर्बत को हरा कर ‘धरती पर स्वर्गीय न्याय का स्थापना’ करती है।

इन-निन-सा-गुर-रा : 274 पंक्तियों की यह विशाल प्रार्थना उन्होंने रचीं देवी इनन्ना के लिए, जहाँ वो पहली बार कवि की तौर पर अपनी संक्षिप्त परिचय भक्तों के सामने लायीं।

निन-मे-सारा : देवी इनन्ना की यह 153 पंक्तियों की स्तुति एनहेदुअन्ना की सबसे प्रसिद्ध रचना है। इस

दीर्घ कविता में उन्होंने सुमेर नेता ‘लुगाल-आन’ का उनके ख़िलाफ़ किए गए विद्रोह, जिसके बाद उर से कुछ सालों की उनकी निर्वासन, निर्वासित समय की हताशा और देवी इनन्ना की कृपा से अपने ‘एन’ पद में पुनरुत्थान की कहानी को एक अनोखे ढंग से रचा।

नन्ना की गाथा : उर के संरक्षक देवता और अपने ‘आध्यात्मिक पति’ नन्ना के लिए उनकी लिखी हुई एकमात्र स्तुति।

42 प्रार्थनाएं : एनहेदुअन्ना ने सुमेर और अक्काद के तमाम बड़े ज़िगुरात के संरक्षक देवी देवताओं के लिए भी 42 प्रार्थना गीत लिखी थीं, जो बाद में निपुर, लागाश जैसे शहरों के उत्खनन से मिली। उनकी यह स्तुतियाँ एरिडु, असनुन्ना जैसे पास के उपनिवेशों में भी वैसी ही लोकप्रिय थी।

इन में 42वां स्तुति समाप्त होने के बाद अपनी परिचय को कहते हुए इस महान पुजारिन कवि ने लिखी थीं एक बेमिसाल स्वभिमानी पंक्ति; ” मेरे सम्राट, यहाँ मैंने एनहेदुअन्ना ने जो रची है, वह मेरे पहले किसी ने कभी नहीं रचा…”

सबसे पहली, सबसे अलग

मेसोपोटामिया के प्रत्न क्षेत्रों से एनहेदुअन्ना की कविताओं से भी प्राचीन साहित्य के कई निदर्शन मिले हैं। पर उन किसी में लेखकों के कोई नाम नहीं मिले। इस दृष्टिकोण से एनहेदुअन्ना दुनिया की सबसे पहली कवियत्री थीं जिन्होंने लेखन की सनातन नियमों को तोड़ कर साहित्यकार्य के साथ रचयिता के परिचय जोड़ने की एक नई रीत को आरंभ किया।

शायद एनहेदुअन्ना के राजकीय पारिवारिक संबंध, ‘एन’ अर्थात मुख्य पुजारिन की अगाध धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा और सब से बढ़ कर उनकी असामान्य काव्यशक्ति ने उनमें पैदा किया होगा एक प्रगाढ़ आत्मविश्वास जिसके दम पर उन्होंने ना सिर्फ मेसोपोटामिया के, बल्की पूरे मानवसाहित्य के इतिहास में पहली बार रचयिता की हैसियत से अपनी आत्मपरिचय को दोटूक तरीके से समकाल के सामने गर्व के साथ प्रकाशित करने में सक्षम रहीं।

उनकी शब्द-चयन और लेखन-शैली भी रही हैं उनकी समकालीन हर लेखक से बिल्कुल अलग। अपनी हर स्तुति को वो वार्तालाप के अंदाज से लिखीं है। कभी देवी इनन्ना से तो कभी खुद से बातचीत करती हुई वो कह जाती है, देवी और देवस्थान से उनका गहरा आत्मिक संबंध, अपनी परिवारवालों की बात, उर से उनका लगाव, आम सुमेरवासियों की रोजनामचा या फिर अपने समय का हर उत्थान-पतन को। उनकी हर गीतों को यथार्थ तरीके से विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है की वे बेशक़ बाहरी रूप से आध्यात्मिक थी, पर उनके अंदर बसी हुई थी समसामयिक राजनीति के कुशल दावपेंच।

एक नया दौर

एनहेदुअन्ना ने अपनी रचनाओं से हमेशा के लिए बदल दिया था, मेसोपोटामियन धर्म के आदिम निष्ठुर रूप को। अख्यात देवी इनन्ना, तमाम पुरुष देवताओं को एक के बाद एक युद्ध में हरा कर, उनकी गाथाओं से बन गयीं सर्वशक्तिमयी त्रिलोकेश्वरी। उधर पुराने देवता आन और नन्ना को कवि ने अनेकों मानवीय दोष- गुण और कमज़ोरियों के साथ आंका। अपनी आध्यात्मिकता और सृजनात्मकता को वास्तविकता से इस्तेमाल करके एनहेदुअन्ना ने ना सिर्फ विराट मेसोपोटामिया के दोनों प्रांत को संयुक्त किया, ना सिर्फ उस वक़्त के जटिल धर्मचर्या को आम आदमी के लिए सरल बनाया, बल्कि पहली मुख्य पुजारिन का दायित्व सालों तक सफलता से निभा कर उन्होंने पुरुषतांत्रिक मेसोपोटामियन धर्म और राजनीति में राजपरिवार की औरतों के लिए एक स्थायी और महत्वपूर्ण स्थान को भी रोपण किया ।

स्वयं एनहेदुअन्ना की अपनी दस्तखत की हुई कोई पट्टिका उत्खननों से आविष्कृत ना होने और उनकी गीतों की प्राप्त अनुकृतियाँ ज़्यादातर उत्तरकाल की होने की वजह से उनकी वास्तविक अस्तित्व को लेकर अतीत में निस्संदेह कुछ मतभेद रहा है। पर मेसोपोटामिया सभ्यता के आधुनिकतम शोधकर्ताओं का मानना है कि एक विशाल इलाके से अगली कईं पीढ़ी तक उनकी देवगाथाओं के प्रतिलिपियों का मिलना उनकी प्रभाव और लोकप्रियता के ही अचूक प्रमाण हैं। इसके इलावा उर की समाधिस्थल से मिली उनकी दो सहयोगी ‘एबाडू’यों का एनहेदुअन्ना सम्बंधी क्यूनीफॉर्म पट्टिका और उनकी प्रतिकृतिवाली केल्साइट अभिलेख के वैज्ञानिक विश्लेषण से भी दुनिया की सबसे पहली पुजारिन कवियत्री एनहेदुअन्ना की सच्चाई प्रमाणित हो चुकी हैं।

महत्तम हृदय की नारी

पूरे साम्राज्य की प्रधान मंदिर और उरुक शहर के संरक्षक देवता ई-अन्ना के बिशाल जिगुरात का दर्शन करके हाल ही में एनहेदुअन्ना लौटीं है उर स्थित अपनीं जिपारु में। सफर काल में उन्होंने प्रत्यक्ष की, कैसे आज जनता के बीच पहुंच गई हैं उनकी रची हुई हर देवस्तुति। उन्होंने देखी, कैसे सम्राट नरम-सिन के कठोर शासन के भीतर भी विकसित हो रही हैं समग्र मेसोपोटामिया की शक्ति और समृद्धि। अब पुराने उन उत्ताल दिनों से काफ़ी शांत और मुक्त है समाज। ज़्यादातर रानीयाँ अब अपनीं आराध्य देवी देवताओं के लिए लिखतीं है प्रार्थनगीत। कुछ एक बनतीं हैं जिगुरात के मुख्य पुजारिन भी। जिनकी रचनाओं को एबाडू मुंशी मिट्टी के पट्टिकाओं पर उत्कीर्ण करके संजो कर रख रहें हैं भविष्यकाल के लिए।

एनहेदुअन्ना समझती है, उनका समय अब समाप्त हो रहा है… रात गहरी होती है… उनकी पास आज भी रोज़ आ कर बैठतीं है देवी इनन्ना… देवी और मानुषी, प्रवीण दो सखियाँ एकाकार हो जातीं हैं फिर से आज भी… और पुजारिन कवि की कंठ से जन्म लेने लगती हैं तमस से ज्योति की ओर उत्तरण के महागीत…

संदर्भ 

  1. The Exaltation of Inanna – J. J. A. Van Dijk and William W. Hallo
  2. Inanna, Lady of Largest Heart: Poems of the Sumerian High Priestess Enheduanna – Betty De Shong Meador
  3. Hidden Women Of History: Enheduanna, Princess, Priestess And The World’s First Known Author – Louise Pryke
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