साड़ी पहनी स्त्री पर संस्कारों का बोझ डालना बंद कर दीजिए…

Ravindra Jadeja Wife
Ravindra Jadeja Wife

पथिक मनीष

इस देश में सबसे आसान हो गया है धर्म और संस्कृति की झंडाबरदारी। कोई भी मौक़ा मिले कपड़े का रंग, सुख दुःख व्यक्त करने और सम्मान देने का तरीक़ा, सबको परिभाषित करने का पैमाना धार्मिक हो गया है। निजता बची कहाँ है ? ये सवाल किया जाना चाहिए। ख़ुद से सोशल मीडिया से इतर ये सोचा जाना चाहिए। रवींद्र जडेजा और रिवाबा की ये तस्वीर मुझे बहुत खूबसूरत लगी, एक सुकून देनी वाली इस दुनिया में किसी भी खूबसूरत रिश्ते को परिभाषित करने वाली तस्वीर है। प्रेम से खूबसूरत कुछ भी नहीं है इस जहाँ में शायद ये तस्वीर यही कहना चाहती थी। आपने क्या महसूसा ये आप पर निर्भर करता है।

साड़ी सच में एक खूबसूरत परिधान है। कई मौक़ों पर साड़ी का पहना जाना स्त्री की ख़ूबसूरती पर चार चाँद लगा देता है। साड़ी पहनी हुई स्त्री को देवी बताना और उस पर संस्कारों का बोझ डालना बंद कर दीजिए। धर्म और संस्कार से इतर आप स्त्री मन को पढ़िए असल में स्त्री अपने देवी होने के आडंबर से भी मुक्त होना चाहती है।

इन सबके बीच महिमामंडन कर संस्कारों की दुहाई देने वाले ये भूल गए कि रिवाबा एक पॉलीटिकल बैकग्राउंड से आती हैं। साड़ी में उतनी ही खूबसूरत देश की लौह महिला इंदिरा जी दिखती थी जितनी सुषमा स्वराज और उतनी ही जयललिता जी। साड़ी एक पॉलिटिकल कल्चर भी है। बात बात पर गर्व का डंका पीटने वाला समाज ये भूल ही गया था।

स्त्री उत्सव है पुरुष के जीवन का जडेजा यही कहना चाह रहे थे। एक सफल पुरुष स्त्री के आँचल में अपनी सफलता को महफ़ूज़ समझता है। तुम हो तभी ये संभव है। परंपरा, प्रतिष्ठा और मर्यादा के तराज़ू पर भावनाओं को तौला जाना रूढ़िवादी परंपरा को संबल देना है। अगर यही आपके धार्मिक होने की पहचान है। ठीक सहेज के रखिए। आपकी मर्ज़ी है।

कुछ तस्वीरें बहुत खूबसूरत होती हैं। मानवीय सोच को और खूबसूरत बनाने की सीख देती है। ये तस्वीर कुछ ऐसी ही थी। जिसने जिस नज़रिए से देखा उसने उस हिसाब से परिभाषित किया। मेरा नज़रिया यही है। इसलिए लिखा जाना ज़रूरी लगा तो लिख दिया। वाद से ग्रसित और बात बात में गर्व का डंका पीटने वाले इस कुंठित दौर में सब तक प्रेम पहुँचे।

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