आम तौर पर साहित्यिक पत्रिकाएं कभी अपने कवर के लिए चर्चे में नहीं आतीं। अक्सर इन पत्रिकाओं के कथ्य और रचनाएं चर्चा का विषय बनते हैं। मगर इस बार एक साहित्यिक पत्रिका पाखी का कवर चर्चा में है। मिथिला की जानी मानी कवियित्री और अभिनेत्री विभा रानी ने ‘पाखी’ के बहाने स्त्री देह पर सोशल मीडिया में एक चर्चा छेड़ी और एक कविता भी लिखी। बहुत से लोगों ने इसका समर्थन किया तो कुछ ने असहमित जताई।
विभा रानी की कविताः स्तन, योनि और गर्भाशय
लीजिए जी। #पाखी के इस आवरण पर हमारे बौद्धिकों की बड़ी बडी जुगालियाँ शुरू हो चुकी हैं। मैं कैंसर अचीवर हूँ और जानती हूं कि ब्रेस्ट, यूट्रेस न बोल पाने के कारण कितनी महिलाएं कैंसर की चपेट में आकर अपनी जान खो बैठती हैं। और हमारे बौद्धिक (स्त्री पुरुष दोनों) हैं कि इसे मात्र स्तन के रूप में देख रहे हैं। कला तो शायद यहां है ही नहीं।
ईश्वर! काट दो हमारे स्तन
बना दो हमें बिना स्तन और योनि के
निकाल दो हमारे बदन से गर्भाशय
क्योंकि नही पचता हमारे बौद्धिकों को
तुम्हारा दिखना।
रह लेंगे हम बिना गर्भ धारण किए
जी लेंगे बिना अपनी देह यष्टि को निहारे
या उसपर गर्व किए
नही कहेंगे किसी से कि
तुम्हारी ही बनाई सृष्टि के पुनर्निमाण में कितने सहायक हैं ये अंग।
पीट लेंगे छाती और बांध लेंगे उसपर
कसकर एक कपड़ा
उतरने पर दूध इसी निगोड़े स्तन में।
मैं मर रही हूं
भटक रही हूं
चाह रही हूं
कि जी जाए एक जोड़ी स्तन
एक योनि,
एक गर्भाशय
ताकि बच जाए एक स्त्री,
एक घर,
एक माँ,
एक बेटी- कैंसर से।
ईश्वर, बुलाती नहीं तुम्हें कभी भी।
पर, अबकी तुम आओ
और करो तुम्हीं कुछ
समाज और दिमाग के इन कैंसरों को भगाने के लिए।
बताने के लिए कि
हमें गलियाने और
मारने-जलाने के लिए भी
इन्हीं के पास से गुजरना होगा तुम्हें
वरना आ ही नहीँ पाओगे इस धरती पर
जो ना हों ये स्तन, योनि और गर्भाशय।

कला और साहित्य में नग्नताः मंजू दास
भारतीय साहित्यकारों और कलाकारों के बीच आज भी नग्नता कौतुहल का विषय ही है वो चाहे परम्परावादियो के बीच में हो या प्रगतिशील रचनाकारों के बीच l जबकि आज से तकरीबन 80 वर्ष पहले ही प्रथम भारतीय आधुनिक महिला कलाकार अमृता शेरगिल ने अपना न्यूड फोटो खिचवाया था और पेंटिंग भी बनायीं थी l सभी कलाकार जानते हैं पुरुष कलाकारों ने तो स्त्रियों को न्यूड चित्रित किया ही महिला कलाकारों ने भी स्वयं अपने को न्यूड चित्रित किया है यहाँ तक की कुछ मिथिला के लोक कलाकारों ने भी कुछ न्यूड चित्रित किया है l दो पेंटिंग में मैंने भी बनायी है l
मुझे तो अब पता चला मुम्बई आने पर की जे जे कालेज मे तो न्यूड माडलिंग पढाई भी जाती है जिसमे एक न्यूड माडल को सभी छात्र और छात्राऐं अपने अपने एंगल से देखकर चित्रित करते हैं । कला में न्यूड को मात्र एक सुंदर कलाकृति की तरह रेखा ,रंग और आकार की दृष्टि से देखा व परखा जाता रहा है l आज साहित्यिक पत्रिका पाखी के कवर पर न्यूड पेंटिंग छपने को लेकर हंगामा हो रहा है जबकि इसी भारत वर्ष मे इन्डिया टूडे आउट लुक जैसी चर्चित पत्रिकाएं हर वर्ष सेक्स जैसे विषय पर अंक निकालती है ।
एक असहमित अंजू शर्मा की तरफ से
‘पाखी’ के कवर पर उठी बहस मेरी समझ से सिरे से बेमानी है। तमाम जरूरी मुद्दे हैं जिन पर बात की जानी चाहिए पर हम किस पर बात कर रहे हैं? स्तन शब्द प्रयोग में न शर्माने या उसे टैबू न मानकर स्तन कैंसर के प्रति अवेयरनेस का इस कवर से क्या लेना देना है। मैं इस अवेयरनेस के पक्ष में आवाज़ बुलंद करती हूँ पर क्या उसके लिए मेरा कवर वाली मुद्रा में खड़े हो जाना जरूरी है? खुलना बड़ी बात नहीं पर याद कीजिए केरल में ढकने के अधिकार के लिए हमारी बहनों ने लम्बी लड़ाई लड़ी है।
मूलतः हम सब सामाजिक प्राणी हैं, शरीर की रक्षा के लिए उसे ढककर रखते हैं। कालांतर इसे अधिक से अधिक ढकने को संस्कृति से जोड़ दिया गया और वस्त्रहीनता इस लिए ध्यानाकर्षित करती है क्योंकि हम जन्म से ही कंडिशन्ड हैं कपड़ों में शरीर को ढकने के लिए। सौ नग्न लोगों में नग्नता कतई प्रासंगिक नहीं रहती। मतलब साफ है एक बेहद जरूरी मुद्दे को अनजाने ही एक गैर जरूरी बहस में रिड्यूस किया जा रहा है जबकि एक साहित्यिक पत्रिका के कवर का मूल रूप से इस मुद्दे से दूर दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। क्या कवर या पत्रिका में इस बात का कहीं कोई जिक्र है कि ये कवर स्तन कैंसर के प्रति अवेयरनेस को सपोर्ट कर रहा है?
पत्रिका एक नई शुरुआत फिर किसी विवादास्पद प्रकरण से कर रही है यह गौरतलब है। कवर को इग्नोर मारिये और पढ़कर कुछ गौरतलब लगे तो उस पर बात कीजिये। हो सके तो मिलकर कैंसर अवेयरनेस के लिए जोरदार मुहिम चलाएं ताकि हमारी बहनें इस बीमारी के प्रति जागरूक हों।
मतांतर संभव है पर मैं बहस के लिए ये स्टेटस नहीं लगा रही क्योंकि मेरे लिए ये कोई मुद्दा नहीं। इस पर सकारात्मक या नकारात्मक किसी तरह की बहस बेमानी है। मैं केवल अपना पक्ष रखने की इच्छुक हूँ।