जुन्को ताबेई (Junko Tabei) जिन्होंने औरतों को सिखाया कि ऊंचाइयों से डरो नहीं

Junko Tabei

मेरा रंग टीम

यह 16 मई, 1975 की बात है। जब जापान की जुन्को ताबेई (Junko Tabei) कठिन संघर्ष के बाद माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाली विश्व की पहली महिला बन गईं। गूगल (Google) ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है।

जुन्को को इस महान उपलब्धि के लिए जापान के सम्राट क्राउन प्रिंस और राजकुमारी से बधाई मिली थी। जुन्को बेहद सहज स्त्री थीं। वे उन दिनों को याद करते हुए कहती थीं, “मुझे घर पर आने में दो महीने लग गए थे। मेरी तीन साल की बेटी मीडिया के कैमरों से डर गई थी। ” जीवन के अंतिम दिनों में भी बीमारी से जूझते हुए उन्होंने चढ़ाई जारी रखी। वे कहती थीं, “हार मत मानो… अपनी खोज जारी रखो!”

बचपन से पर्वतारोण का शौक

सन् 1939 में जन्मी जुन्को ताबेई जापान के फुकुशिमा प्रान्त के एक छोटे से शहर मिहारू में पली-बढ़ी थीं। उन्होंने चार साल की उम्र से ही पर्वतों से दोस्ती कर ली थी। यह सिलसिला शादी के बाद तक जारी रहा। यह वह वक्त था जब जापान में यह माना जाता था कि महिलाओं को घर का कामकाज संभालना चाहिए। ताबेई की खास बात यही रही कि अपने जीवन की राह को उन्होंने खुद तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने समाज में बदलाव लाने का प्रयास भी किया।

सन् 1969 में उन्होंने जापान के पहले लेडीज फ्लाइंग क्लब की स्थापना की। यह एक इतिहास रचने जैसा था। तब वे दो बच्चों की मां थीं। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, “1970 के दौर में जापान में आम तौर पर माना जाता था कि पुरुष बाहर काम करेंगे और महिलाएं घर पर रहेंगी। जो महिलाएं काम करती भी थीं, उन्हें भी सिर्फ चाय परोसने को कहा जाता था। इसलिए उन्हें बढ़ावा देने की बात सोचना भी मुश्किल था।”

माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई

जिस साल वो माउंट एवरेस्ट पर पहुंची थीं उस वक्त उनकी उम्र 35 साल थी। पर्वतों को छूने की उनकी यह ललक जारी रही। उसके बाद साल 1992 तक वो दुनिया की सात सबसे ऊंची चोटियों को फतह कर चुकी थीं। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। वहां पहुंचने के 12 दिन पहले वो बर्फीले तूफान की चपेट में आ गई थीं। वे लगभग बर्फ में दफन हो गई थीं। उनके एक गाइड ने उन्हें बर्फ से बाहर निकाला। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ही वापस लौटने के बारे में सोचा और चढ़ाई जारी रखी।

अक्तूबर 2016 में जुन्को ताबेई का निधन हो गया। उन्होंने सैटामा के अस्पताल में आखिरी सांस ली। उस वक्त उनकी उम्र 77 साल की थीं। चार साल पहले पता लगा था कि उनको कैंसर है। गूगल डूडल (Google Doodle) के जरिए जुन्को ताबेई (Junko Tabei) को श्रद्धांजलि दी गई है। उनका जीवन हमेशा स्त्रियों को असीमित ऊंचाइयों को छूने की प्रेरणा देता रहेगा।

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