मैं एक मेडिकल कॉलेज के गर्ल्स हॉस्टल में तकरीबन दो सौ लड़कियों के साथ रह रही हूँ। मेरी सारी हॉस्टल मेट्स भावी डॉक्टर हैं… आने वाली पीढ़ी की जन्मदात्री होंगी ये। बावजूद इसके कि ये साइंस जानती हैं …पढ़ती हैं …इंसानी शरीर को जानती हैं ये, मेंसेस के टैबू में अभी तक है। अभी तक इन्हें अपने पवित्रतम चक्र पर शर्मिंदगी होती है अभी तक इनके भगवान ‘उन दिनों’ में छुए जाने से अपवित्र हो जाते हैं।
इन बारे में मैंने कई लड़कियों से बात भी की… आखिर क्यों ये शर्मिंदगी? क्यों आप इस खूबसूरत प्रक्रिया को नहीं स्वीकारती? आपका कैसा ईश्वर है जो आपके छुए जाने से रोकता है? ईश्वर तो पिता सामान हैं न तो क्या आप अपने पिता से भी उन दिनों बात नहीं करती? जवाब सिर्फ एक ही आता है “हमारे घर में मानते हैं…”
यह बेहद अजीब बात है जिस चीज़ के लिए आप अपने घर में सारी प्रकिया समझा अपने बड़ों को बदल सकती थी, आपने उनका कहा मान लिया। उन्होंने कहा उस दौरान ये मत करना, वो मत करना और आपने बिना कोई सवाल किए बिना कारण जाने मान लिया? एक डॉक्टर की बात कोई नहीं नकारता बावजूद इसके आपने भ्रांतियां ही बनाये रखी। किसी को भी नहीं समझाया!
आपके परिवार में ये चलता आया है क्योंकि उन्हें ये भान नहीं की ये दिन पाप नहीं पवित्र हैं। वह प्रक्रिया जो कि बेहद सृजनात्मक है… खूबसूरत है। जिनके कारण हम सब हैं वह कैसे अछूत हो सकती है? क्यों हमारा नजरिया इतना तुच्छ है कि दूसरों के कारण हम अपनी इस खूबसूरती को अपनाने में हिचकिचाते हैं।
अगर ये चीज़े किसी अन्य जगह होती तो मुझे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता मैं उनसे बात करती…. पर मेडिकल कॉलेज की लड़कियां!! वे जो कि पूरे शरीर का क्रिया विज्ञान जानती हैं। मेरी एक 12 साल की भतीजी है। माँ ने उसकी सहेलियों को और उसे समझाने के लिए मुझे कहा था। कुछ एक को जानकारी थी तो उन्होंने बस बोला- छी पीरियड्स!
क्यों हम छी करना सिखा रहे हैं इन्हें? यह जानने के बावजूद की यह सांस लेने और छोड़ने जैसी ही प्राकृतिक प्रक्रिया है। क्या ये हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि हम उन पुरानी वर्जनाओं को तोड़ें जो कि बेबुनियाद हैं। हॉस्टल में कई बार विकास को लेकर बहस छिड़ती है। कई बार यह बात भी उठती है कि हमको समाज के लिए कुछ करना है।
क्या इस टैबू को तोडना समाज को विकसित नही करेगा? जहाँ आप अपने स्त्रीत्व पर बजाय शर्म के गर्व कर सकेंगी।
क्या ये मुमकिन है?
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