महिलाओं, बालिकाओं को इनरवेयर पर ‘मेरा रंग लाइव’ जैसे प्रोग्राम जरूर देखना चाहिए

Why bra is a taboo?

चंद्र शेखर शर्मा

“भैया एक सैनेटरी पैड का पैकेट तो देना…” आवाज सुनते ही दुकानदार आवाज लगाता है, “छोटू… पैकेट पेपर में लपेट काली थैली में ला तो जरा !”। पेपर में लपेट कर के थैली में लिपटी पैड ऐसे लगती है जैसे वो सेनेटरी पैड न हो कर कोई खतरनाक या विस्फोटक चीज हो। ऐसा दृश्य आज भी आम है। सैनेटरी पैड आज भी छुप कर खरीदे व बेचे जाते हैं, फिर चाहे महिला ग्रामीण हो या शहरी।

महिलाएं जब इसे खरीदती है तो आस पास के लोग आंखे फाड़ कर ऐसे देखते है जैसे कोई अजूबा खरीदा बेचा जा रहा हो। हम भले ही 21वीं से 22वीं सदी की ओर सफर कर रहे हैं पर हमारी सोच में आज भी वही कमीनगी, मक्कारी व घटियापन है। ऐसे में अक्षय कुमार की फ़िल्म ‘पैड मैन’ और शालिनी श्रीनेत व निधि नित्या जैसी लेखिकाओं के मेरा रंग जैसे फेसबुक लाइव शो महिलाओं को जागरूक करने अपनी अहम भूमिका निभाते दिखते हैं। जिनमें महिलाओं और उनके जीवन के अनछुए पहलुओं से जुड़े विषय होते हैं जैसे ‘माहवारी में उन दिनों की पीड़ा’, खुले में स्त्री अंडरगारमेंट को लेकर ‘तार पर सूखती समाज की मर्यादा’। ऐसी फ़िल्में व शो बच्चियों को जरूर दिखाए जाने चाहिए ।

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हालांकि 21वीं सदी में दौड़ती-भागती संकुचित मानसिकता वाले समाज के लिए ये काफी बोल्ड विषय है। जिसमे बहस यदि माहवारी को लेकर स्त्री पीड़ा व अधोवस्त्र (अंडरगारमेंट्स ) को अंडर ग्राउंड करके सुखाया जाना चाहिए यानी की छुपाकर सुखाने की समाज की संकुचित मानसिकता को लेकर हो और उस पर इन बहस में कही पुरुष हिस्सा ले ले या इन विषयों पर लिख ले तो वो भी समाज के लिए अजूबा बन जाता है। इन सब के बावजूद बच्चियों व महिलाओं को ऐसी फिल्में व कार्यक्रम जरूर देखे व दिखाये जाने चाहिए जिनसे उनमें अपने अधिकारों व सेहत के लिए जागरूकता तो आये।

वैसे दुनिया भर में महिलाओं और बालिकाओं को उनके मासिक धर्म के कारण होने वाली चुनौतियों, मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों एवं वर्जनाओं को तोड़ने और इन चुनौतियों से निपटने और सामाजिक जागरूकता के लिए विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस प्रत्येक वर्ष 28 मई को मनाया जाता है तो महिला अधिकारों को लेकर 8 मार्च को विश्व महिला दिवस, सितंबर के अंतिम रविवार को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस, 15 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस, 23 जून को विधवा, 25 नवम्बर महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्‍मूलन अंतर्राष्‍ट्रीय दिवस जैसे साल में एक दिन मनाए जाने वाले आयोजन के इस दिन सरकारी खर्चे पर बड़े-बड़े आयोजन होते हैं।

इन आयोजनों में भाषणबाजी के जरिये मुफ्त की नसीहतें बांट चाय-बिस्किट, नाश्ते और मिनरल वाटर की बोतलों के बीच फॉरमैलिटी निभाई जाती है। लोगो को जागरूक करने के कागजी अथक प्रयास होते जरूर है किंतु हकीकत की धरातल में होता कुछ और ही है। आखिर दुसरो को जागरूक करने वाले खुद कब जागेंगे ये आज भी चिंतनीय व विचारणीय है।

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