हम महिलाओं को अब गंगा बचाने के लिए आगे आना होगा


एक छोटी मुलाकात इतनी अर्थवान हो सकती है नहीं सोचा था। नौ मार्च की रात संदीप पांडेय जी की मेरे पूरे परिवार से एक मुलाकात और मेधा दी से इस पर चर्चा ने मन को झकझोर दिया। हमने मन बनाया कि हम भी गंगा संरक्षण की इस पद यात्रा में शामिल होंगे।

संदीप पांडेय जी को कौन नहीं जानता। उन्होंने शांति और भाईचारे के लिए अनेक पदयात्राएं निकाली हैं। पोखरण परीक्षण के बाद 1999 में पोखरण से सारनाथ तक की डेढ़ हजार किलोमीटर की इस पदयात्रा भी शामिल है। सन् 2002 में सद्भावना के लिए दूसरी पदयात्रा चित्रकूट से अयोध्या तक की। गरीब बच्चों की शिक्षा, परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए निकाली गई पदयात्रा और साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए उनको साल 2002 में एशिया का नोबेल कहे जाने वाले पुरस्कार ‘रेमन मैग्सेसे अवार्ड’ (Ramon Magsaysay Award) से सम्मानित किया गया।

इस बार वे गंगा को बचाने के लिए पदयात्रा पर निकले थे। यात्रा का समापन 17 मार्च को हरिद्वार में होना था। हम 16 तारीख की रात पदयात्रा में शामिल होने हरिद्वार निकल गए। रात एक बजे पहुंचकर विश्राम किया और सुबह पदयात्रा में शामिल हुए। पदयात्रा के दौरान हमने रास्ते में कई किलोमीटर पैदल चलते हुए पर्चे बांटे और नारे लगाए- अविरल गंगा बहने दो, निर्मल गंगा रहने दो। हरिद्वार के लोगों से गंगा बचाने के लिए इकट्ठा होने का आह्वान करते हुए हम मातृसदन पहुंचे।

ये मेरी पहली पदयात्रा थी और मैंने पहली बार किसी संत को अनशन पर लाइव बैठे हुए देखा। इससे पहले मैंने किसी का ऐसा दृढ़ संकल्प नहीं देखा था कि मौत इतनी नजदीक है और चेहरे पर चमक बरकरार। अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद के चेहरे का तेज देखकर लग रहा था कि जैसे वे मौत नहीं नई जिंदगी मिलने वाली है। पिछले 145 दिनों से अनशन पर बैठे एक व्यक्ति के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं है और हर व्यक्ति का वे मुस्कुराकर जवाब देते हैं। इस पदयात्रा पर आए सभी सदस्यों की स्पीच को ध्यानपूर्वक सुनते हैं।

आत्मबोधानंद एक कंप्यूटर इंजीनियर हैं। इन्हें क्या पड़ी थी कि जो अपने प्राणों की परवाह किए बिना पूरी दुनिया के लिए अनशन पर बैठ गए। उनसे मिलकर गंगा संरक्षण की पूरी जानकारी मिली। इससे पहले कौन-कौन इस अभियान के लिए अपने प्राण त्याग चुके हैं और अब कौन से लोग इस अभियान को आगे ले जाने की तैयारी में हैं। अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद की जगह लेने के लिए स्वामी पुनयानंद तैयार हैं जो अभी से अन्न त्यागकर फलाहार पर आ गए हैं।

इससे पहले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जो पहले जीडी अग्रवाल के नाम से जाने जाते थे, इस अभियान के लिए अनशन के 112वें दिन अपनी जान दे चुके हैं। जो IIT कानपुर के प्रोफेसर थे। 2011 में नौजवान साधु स्वामी निगमानंद की भी गंगा में अवैध खनन के खिलाफ अनशन करते हुए 115वें दिन मृत्यु हो गई। 2014 में बाबा नागनाथ की वाराणसी में अनशन करते हुए 114वें दिन मौत हो गया। संत गोपालदास 24 जून 2018 में बद्रीनाथ में अनशन पर बैठे मगर 16 दिसंबर को देहरादून के अस्पताल से गायब हैं।

जैसे हम लोग मातृसदन पहुंचे तो अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद के फोन पर मेधा पाटेकर की कॉल आई। उन्होंने मुस्कुराते हुए अपने गुरू की तरफ देखा और फोन उठा लिया। करीब 10-15 मिनट तक बात होती रही। उनके जवाब से लग रहा था कि मेधा पाटेकर उधर से कह रही हैं कि अनशन तोड़ दीजिए। हर बात के जवाब में वे कहते थे, नहीं नहीं मैं अन्न नहीं ग्रहण करूंगा। वे दक्षिण भारतीय हैं तो कभी-कभी उनकी हिन्दी गड़बड़ा जाती थी- बोलते थे- नहीं मैं नहीं तोड़ुंगी।

बंगाल, नेपाल, उत्तराखंड समेत कई राज्यों से आए एक्टीविस्ट ने अपने विचार रखे और आगे आंदोलन की रूप-रेखा बनाई। संदीप पांडेय ने कहा कि सभी लोगों की राय महत्वपूर्ण है कि किस तरह हम इस आंदोलन को आगे बढ़ा सकते हैं। भूपेंद्र रावत ने कहा जिस तरह भगत सिंह ने देश के लिए हंसते-हंसते जान दे दी आत्मबोधानंद भी सहर्ष अपने प्राण त्यागने के लिए तैयार हैं। मेधा दी ने भी गंगा बचाओ पर अपने विचार रखे और कहा कि हम महिलाओं को गंगा बचाने के लिए आगे आना चाहिए।

क्या हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि हमारी आंखों के सामने एक के बाद एक लोग प्राण त्यागते जा रहे हैं और हमारे ऊपर कोई असर नहीं हो रहा है। ये प्राण त्यागने वाले कौन लोग हैं जो अपने लिए नहीं दुनिया के लिए जी रहे थे और दुनिया के लिए ही प्राण त्यागने को अनशन पर बैठे हुए हैं।

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