जापानी फिल्म ‘ड्राइव मॉय कार’, जटिल रिश्तों की न भूलने वाली कहानी

Drive My Car
जापानी फिल्म 'ड्राइव माई कार' पर सुषमा गुप्ता का आलेख

सुषमा गुप्ता

जापानी फिल्म ‘ड्राइव मॉय कार’ (Drive My Car) पर यह समीक्षात्मक आलेख जानी-मानी कथाकार सुषमा गुप्ता ने लिखा है। वे इस आलेख में पहले ही यह डिस्क्लेमर देना चाहती हैं कि हारूकी मुराकामी की कहानी पर बनी फिल्म ‘ड्राइव मॉय कार’ की लगभग पूरी कहानी उन्होंने इस पोस्ट में लिख दी है। वे कहती हैं, “हालांकि कहानी बताना या समीक्षा जैसा लिखना इस पोस्ट का उद्देश्य बिल्कुल नहीं था। मुझे जिन बातों, दृश्यों और भावनाओं ने झकझोरा मैंने बस उन पर अपना मन यहाँ लिखा।” 

इंसान का ब्रेन एक जटिल मैकेनिज़्म है। उसके बहुत सारे रिएक्शन इतने मिक्स होते हैं कि आप सही-सही कभी भी नहीं बता सकते कि एक उस खास क्षण में एक्जे़क्टली आपने क्या महसूस किया था। प्यार, या उदासीनता या कुछ भी नहीं , या थोड़ा-थोड़ा सब कुछ।

मैंने यह बात पहले भी लिखी है कि आप एक ही इंसान से एक साथ प्रेम में और उसके प्रति उदासीन, दोनों हो सकते हैं। आप किसी को नापसंद करते हुए भी उसके साथ गहरे प्यार में हो सकते हैं। विरोधाभास लगता है पर यह नामुमकिन बात बिल्कुल भी नहीं है। इन फैक्ट हम में से बहुत इस तरह के अनुभव और एहसासों से ही बने हैं। पर हमारा माइंड या तो इस बात को रजिस्टर नहीं करता और रजिस्टर कर भी लेता है तो स्वीकार नहीं करता।

हारुकी मुराकामी की कहानी

हारूकी मुराकामी मुझे बेहद पसंद है। यूँ तो दुनिया में उनके लाखों फैन है पर उन्हें पसंद करने की मेरी दो मुख्य वज़ह हैं। एक तो उनका सर्रियल ताना-बाना इतना कमाल का, इतना अद्भुत और अचंभित करने जैसा है कि कब आप रियल से सर्रियल में प्रवेश करते हैं और कब वापस आते हैं, खुद भी महसूस नहीं होता।

दूसरा, इंसानी भावनाओं, संवेदनाओं और जटिलताओं को जिस तरह से वह परत दर परत खोलते जाते हैं , बहुत ही धैर्य के साथ, एक शांत नदी जिसके भीतर गहरी हलचल है, जो ऊपर से बिल्कुल नज़र नहीं आती, उसकी तह तक ले जाकर आपको रॉ अनपॉलिश्ड अहसासों और विचित्र अनुभवों से रूबरू कराते हैं।

‘ड्राइव मॉय कार’ (Drive My Car) एक जापानी फिल्म है जिसे रयुसुके हमागुची द्वारा सह-लिखित और निर्देशित किया गया है। इस फिल्म को ऑस्कर के अलावा और भी बहुत सारे बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। हारूकी मुराकामी की कहानी ‘ड्राइव माय कार’ जो कि उनके कहानी संग्रह ‘मैन विदाउट वूमेन’ की पहली कहानी है यह उस पर बेस्ड है। पर आप यह नहीं कह सकते कि कहानी ज्यों की त्यों उठा ली गई है।

मैं कहूँगी एकाकीपन का, गहन सघन पीड़ा का, प्रायश्चित का, अपराधबोध का- बीज कहानी से उठाकर एक विस्तृत पेड़- फिल्म के निर्देशक ने (जिन्होंने इसकी पटकथा भी लिखी है) बहुत शानदार तरीके से विकसित किया है।

इस कथा के दो मुख्य किरदार हैं। फिल्म के नायक युसुके काफुकु के रोल में हैं हिदेतोशी निशिजिमा जो फिल्म में थिएटर आर्टिस्ट की भूमिका में हैं। उनके काम ने मुझको गहरा प्रभावित किया। फिल्म में उनकी पत्नी ओतो टीवी सीरियलों में पटकथा लेखक हैं। ब्रेन हेमरेज से उसकी मृत्यु हो जाती है। फिल्म के शुरुआत से अंत तक नायक का अपनी पत्नी के प्रति गहरा प्रेम बना हुआ है और वह यह भी मानता है कि उसकी पत्नी भी उसको बेहद प्यार करती थी।

बावजूद इसके कि उसकी पत्नी के अपने प्रोफेशन में बहुत सारे एक्टर्स के साथ संबंध रहे। सेक्सुअल संबंध। ओतो के लिए सेक्सुअल संबंध एक तरह से कहानी जनरेट करने का उसका ट्रिगर भी था, जो कि हो सकता है आपको विचित्र बात लगे और आप उसको नाजायज रिश्तों के प्रति उसके आकर्षण की तरह देखें पर ऐसा था नहीं। न ही यह कोई विचित्र बात थी, हाँ सोसाइटी के एक्सेप्टेबल स्टैंडर्ड से यक़ीनन बहुत परे की बात है। पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि हमारे दिमाग की वर्किंग किसी भी चीज़ से ट्रिगर हो सकती है और किसी भी चीज़ से नम्ब भी। दूसरों के लिए आम दिखने वाली बात से आपका दिमाग पूरी तरह से ब्लैंक भी हो सकता है और हाइपर एक्टिव भी।

रिश्तों की जटिलताएं और विरोधाभास

इसी विरोधाभास के चलते फिल्म का नायक भीतर-भीतर टूट गया है। गहरे प्रेम में हम बहुत सारी सच्चाईयों का सामना करने से बचते हैं। कंफर्ट्रेशन एक इतना बड़ा थ्रेट होता है हर रिलेशनशिप में कि जो ज़्यादा गहरे प्यार में होता है , वह हमेशा इस परिस्थिति से बचने की कोशिश करता है। काफुकु भी बहुत सारी बातों का सामना नहीं करना चाहता था।

फिल्म के अंत में उसने माना कि वह भावनात्मक रूप से कमज़ोर था। ओतो को खोने से डरता था इसलिए सामना करने से बचता रहा। साफ पूछने से डरता रहा। उसकी अकस्मात मृत्यु के बाद वह अपने सर्वाइवल के लिए जूझ रहा है। खुद को काम में झोंक के जिलाए रखने की कोशिश कर रहा है। अपनी पत्नी की मृत्यु के दो साल बाद घर से बहुत दूर हीरोशिमा में वह एक प्रोजेक्ट लेता है। जिस कंपनी के लिए प्ले कर रहा है, उसके रूल्स रेगुलेशन है कि वह खुद कार ड्राइव नहीं कर सकता।

इस बात के लिए उसकी सहमति नहीं है और इस बात के लिए वह अपना डिसएप्रूवल कंपनी को जाहिर भी करता है पर कंपनी के रूल्स उसे मानने पड़ते हैं। कंपनी उसको एक ड्राइवर असाइन करती है। 23 साल की लड़की जो इतनी गंभीर और खुद के काम से काम रखने वाली है कि पूरी फिल्म में उसके चेहरे पर कहीं मुस्कुराहट नहीं आती। हाँ आखिरी शॉट में ज़रूर आती है। जो अपने आप में एक दार्शनिक सूक्ति है। इसी लड़की के सानिध्य में काफुकु खुद को भीतर से बेहतर समझ पाता है और वह लड़की भी बीत चुके के साथ एक सामंजस्य बिठाने का साहस कर पाती है।

वह 23 साल की लड़की जिन जीवन यात्राओं से गुज़री हैं वह कड़वे अनुभव लिए हैं। किस तरह से उसने 18 साल की उम्र में आने के बाद खुद का जीवन संभाला है और 18 साल की उम्र तक भी अपनी माँ से मिली हुई यातनाएं उसका जीवन पर गहरी छाप लिए हैं।

यहाँ मैं रुक कर सोचती हूँ कि आखिर किसी भी भयानक गहरी पीड़ा के तल में क्या होता है! क्या हालात या कुछ और! इतना एकांकीपन , ऐसी टूटन इसकी मुख्य वज़ह क्या होती है। और पाती हूँ कि गहरी पीड़ाओं के तल में हमेशा गहरा प्रेम छुपा होता है। मायूसी हताशा निराशा इसी टूटने के टूकड़े हैं जो वजूद में स्थाई तौर पर धंस जाते हैं।

इस ड्राइवर लड़की का नाम फिल्म में मिसाकी है। इसका काम भी बहुत सुंदर है। वह अपन माँ से प्यार करती थी और उतनी ही नफ़रत भी। प्यार इसलिए कि उसकी माँ के अंदर एक नन्ही बच्ची भी थी, जो सिर्फ तब उसे दिखाई देती जब उसकी माँ उसे निर्मम तरीके से पीट लेती थी। उसकी माँ में दिखाई देने वाली उसी बच्ची की झलक उस घर में उसकी माँ के साथ उसका अकेला सर्वाइवल बेस था।

मैं यहाँ सोचती रही, माँ की पीड़ा को, कि वह अपने अंदरुनी सच में कितनी बड़ी होंगी! वह एक स्त्री के रूप में जहाँ भयानक पीड़ा से गुज़रती हुए अपनी बच्ची को बुरी तरह पीट लेती थी, वहीं पीटने के बाद , खुद एक छोटी बच्ची बन कर, उसकी दोस्त बन उसे दुलारने लगती थी।

एहसासों की जटिलताएं कहाँ नहीं है और किस रिश्ते में नहीं हैं!

मिसाकी का कहना था कि उस प्राकृतिक आपदा के दिन वह अपनी माँ को शायद बचा सकती थी पर उसने कोशिश ही नहीं की। पता नहीं क्या हुआ कि वह सुन्न पड़ गई। शायद उसकी माँ के लिए उसकी नफ़रत उसके प्रेम पर ज़्यादा हावी हो गई।

‘एक पल’ सब कुछ बदल देता है

मैंने बहुत देर यहाँ पर फिल्म को पॉज़ करके रखा। वैसे भी यह फिल्म मैंने पूरा दिन लगा कर देखी। इसलिए नहीं कि फिल्म 3 घंटे की है और कोई बोरियत हुई बल्कि इसलिए कि इस फिल्म में बहुत सारे ऐसे दृश्य हैं जो आपको बाध्य करेंगे कि आप फिल्म को कुछ देर रोक दें और उस दृश्य में डूबे रहें। उसे भीतर भीतर जिए।

कोई भी रिश्ता कुछ खास पलों में बहुत निर्णायक मोड़ से गुजर जाता है। उसे एक पल में या तो आप संभाल जाते हैं या सब कुछ खो जाते हैं।

बस ‘एक पल’… एक पल आपकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल देता है। यही नायक के साथ हुआ और यही मिसाकी के साथ, पर घटित हुए को रिवर्स नहीं किया जा सकता। थिंग्स डन कांट भी अनडन।

पर हम यह भी तो सही-सही कभी नहीं जान पाते कि कितना करना है! कितने पर रूक जाना है! और क्या है जिसे नहीं होने देना है।

मेरा खुद का यह मानना है कि हम जिस दिन पैदा होते हैं हमारी नियति में सब कुछ उसी दिन तय कर दिया जाता है। हम अपने ही जीवन के मूकदर्शक हैं। हमें बस प्रयास करते रहना है और लगातार करते रहना है। यही हमारे हाथ में है और यही हम कर सकते हैं। हम वियर एंड टियर प्रोसेस को स्लो कर सकते हैं। पीड़ाओं को अनुभव करते हुए भी, उनके जानलेवा प्रभाव से खुद को किसी तरह से निकाल सकते हैं पर पीड़ाओं में हिस्सेदारी ना हो यह हो नहीं सकता।

इसी कहानी में एक और किरदार भी है। कोजी। एक नौजवान एक्टर, जो ओतो के साथ काम करता था और अब हिरोशिमा में काफुकु के पास ऑडिशन के लिए आता है। जबकि वह एक सफल टीवी स्टार है और उसको इस काम की ज़रूरत भी नहीं थी। पर वह उस इंसान के साथ जुड़ना चाहता है जो उस स्त्री के साथ 23 साल रह चुका था, जिसे कोजी प्रेम करता था और अभी भी करता है। हालाँकि वह इस प्रेम को एक अलग अनुभूति की तरह महसूस करता है। जिसे आप सतही तौर पर तो चिन्हित नहीं ही कर सकते।

काफुकु जानता है कि कोजी की इंवॉल्वमेंट उसकी पत्नी के साथ थी। वह उसे प्ले में रख भी लेता है। पर हेरॉस करने के लिए नहीं बल्कि एक दूसरे से जुड़कर वह उस स्त्री के बारे में और जानते हैं, जिसे वह दोनों ही खो चुके हैं। कोजी का किरदार जिस तरह के विचलन और अस्थिरता से गुज़र रहा है वह हृदय को भेदने जैसा है।

फिल्म खत्म होने के बाद आप पर भी इतने सारे इमोशन्स एक साथ हावी हो जाएंगे कि उनकी दिशा का धागा तो ठीक-ठीक आप भी नहीं पकड़ पाएंगे कि क्या महसूस हो रहा है।

हालाँकि मैंने कहानी का एक विस्तृत ब्यौरा यहाँ लिख दिया है पर यह फिल्म उन खूबसूरत फिल्मों में है, जिसमें देखने वाला अपने मन और अपने ज़हन के हिसाब से बहुत सारी चीजों को एक अलग रोशनी में ही अनफोल्ड करेगा।
हर दृश्य, हर आँख के लिए एक समान नहीं होता।

भावनाओं की जटिलताओं पर बनी यह बेहद सुंदर फिल्म है। मन हो तो देखिएगा।

English Summery:

This article on Japanese film ‘Drive My Car’ is written by noted story writer Sushma Gupta. Apart from the Oscars, the film has received many other major international awards. Drive My Car is based on the story of Haruki Murakami.

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