एक दुनिया समानांतर : सारा राय के नए संग्रह ‘नबीला और अन्य कहानियाँ’ पर कुछ नोट्स

Sara Rai

वैभव श्रीवास्तव

सारा राय मुझे हिन्दी के ख़ुदरंग कहानीकारों में से एक लगती हैं। उनकी ज़्यादातर कहानियों में उनकी अपनी अलहदा छाप अक्सर ही दिखती है। उनकी पिछली किताबों से ‘कगार पर’ और ‘परिदृश्य’ कहानियाँ मेरे साथ रह गई थीं। इस बरस आए उनके नए संग्रह ‘नबीला और अन्य कहानियाँ’ की भी ज़्यादातर कहानियाँ टिपिकल सारा राय के साहित्य संसार की उपज हैं।

‘नबीला’ कहानी बिना किसी उपदेश के तथाकथित मुख्यधारा के लिए गैर-ज़रूरी सी दिखती एक बांग्लादेशी विस्थापित लड़की की कहानी के ज़रिये विस्थापन, बचपन, बाल-श्रम, आज़ादी और स्त्रीवाद से जुड़े कई सवाल और मुबाहिसे हम तक छोड़ जाती है। नबीला की बाल-सुलभ कल्पनाशीलता से भरी हुई झूठी-सच्ची सम्मोहक कहानियों में जबरन छिन गये एक बचपन की त्रासद गूंज है।

‘परिणय’ कहानी मध्यवर्गीय दाम्पत्य जीवन की बोरियत और पीयर प्रेशर के भोंडे खेल को अनावृत्त करती है तो ‘गोल्डन एनिवर्सरी’ कहानी इसी बोरियत भरे दाम्पत्य में सतह के पीछे चुपचाप बरस रहे सतत प्रेम और परवाह की सरस झांकी दिखाती है। गोल्डन एनिवर्सरी में पारंपरिक किस्सागोई के टूल्स का प्रयोग कहानी की पठनीयता को निखारता है।

‘सीमा-रेखा’ में निर्मल के उपन्यास ‘लाल टीन की छत’ की महक है, लेकिन कहानी का फ़लक इतर है। कहानी जातिवाद के बैगेज के साथ आने वाली शुचिता की भोथरी अवधारणा को दो सहेलियों के बीच बचपन में मेंस्ट्रुएशन को लेकर बरते गये एक झूठ के संदर्भ में रखती है।

‘प्यार’ कहानी प्रेमी के न रहने के बाद प्यार जैसी लगभग अपरिभाषेय भावना को ठीक-ठीक पकड़ने की कोशिश करता हुआ अनूठा, इंटेंस और रसीला लेकिन बेहद उदास कर देने वाला गद्य है। ‘अक्स’ कहानी (?) बनारस और इटली के पलेर्मो शहर के बीच चहलकदमी करते हुए दुनिया भर के इंसानों की नज़र और अहसासों की यक़सानियत पर रोशनी डालती है।

‘सिलसिला’ कहानी रेखाचित्र ज़्यादा है और कहानी कम। एक ऐतिहासिक बाग़ के बाग़बान की ज़िंदगी की छोटी-छोटी डिटेल्स इतने खुशबूदार और ज़ायकेदार तरीके से सामने आती है कि पाठक का मन नाच उठे। और इस बाग़बान की ज़िंदगी के मार्फ़त हमें हमारी स्थूल दुनिया के कामिल होने का संदेश भी सलोने ढंग से मिलता है। मरने के बाद किसी और दुनिया की चाहत की निरर्थकता को भी ख़ूबसूरती से शाया किया गया है। ‘कम बोलने वाले भाई’ कहानी आसन्न मृत्यु के संदर्भ में जिये गये जीवन की नापजोख करते हुए वजूद के बुनियादी सवालों से टकराती है।

‘हमाम-दस्ता’ भी निर्मल वर्मा की परम्परा की कहानी है। मुख्य पात्र बड़ी दादी का चरित्र रूपा सिंह की पिछले वर्षों में काफ़ी चर्चित हुई कहानी ‘दुखां दी कटोरी : सुखां दा छल्ला’ की बेबे की याद भी दिलाता है। दोनों कहानियाँ हमारी दकियानूसी दुनिया में स्त्री की नियति के साथ पैवस्त कर दी गयी त्रासदी को मार्मिकता से स्पर्श करती हैं। जहाँ दुखां… की बेबे सांप्रदायिक उन्माद से भरी इस दुनिया में एक विधर्मी प्रेमी की इंसानियत की अनमोल निशानी को उम्र भर बेइंतहा जतन से संभालकर रखती हैं वहीं हमाम-दस्ता की बड़ी दादी अपने चरित्र पर लगे कलंक के साथ जीते हुए भी अपनी बीती मोहब्बत को अपनी छाया में छुपाकर बीतती जाती हैं। कहानी में हमाम-दस्ता एक बिसरी हुई दुनिया की शिनाख़्त का ज़रिया बन जाता है।

 

Nabeela Aur Anya kahaniyan
सारा राय का नया कहानी संग्रह ‘नबीला और अन्य कहानियां’

‘मुजरिम फ़रार’ मेरी नज़र में हिन्दी की क्लासिक कहानियों में शामिल की जा सकती है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में बलत्कृत और बलात्कारी – दोनों के मन मस्तिष्क तक पहुँचने की कोशिश में सारा राय हिन्दी साहित्य को एक अनमोल कहानी दे जाती हैं। हिन्दी पट्टी का रेप कल्चर किसी भी संवेदनशील इंसान से छुपा हुआ नहीं है। ऐसे में हिन्दी साहित्य में इस विषय पर इतना बारीक, संवेदनशील और मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप इस लगभग नाउम्मीद लड़ाई में भी उम्मीद से भर देता है। ‘हाथ पढ़ने वालों का एक ख़्वाब’ कहानी 2018 में कठुआ में हुए रेप केस की पीड़ित बच्ची की याद को समर्पित है और जादुई यथार्थवाद का सहारा लेते हुए इस घटना में निहित असली ट्रेजेडी को चीन्हने का रास्ता दिखाती है।

इस संग्रह की कहानियों में पशु-पक्षियों की सतत और प्रभावशाली मौजूदगी देखी जा सकती है। ‘दूसरा’ कहानी में उल्लू का वाकया अलग-अलग प्रजातियों के आपसी संबंध को नये तरीके से देखने के लिए हमें अचानक से एक धप्पा सा मारता है। ‘मागुर’ कहानी में मछली इतने जीवंत तरीके से सामने आती है कि वेज-नॉन वेज की अकादमिक, वैज्ञानिक बहसों से परे मन किसी और ही धरातल पर असहज हो जाता है। ‘लोखंडवाला का हैमलेट’ में कबूतरों और कव्वों की मौजूदगी को इतने दिलचस्प तरीके से देखा गया है कि आपको पंचतंत्र की कहानियों से लेकर गीतांजलि श्री के बहुचर्चित उपन्यास ‘रेत समाधि’ में कव्वों के प्रयोगधर्मी इस्तेमाल तक सब जैसे एक साथ मिल जाता है। ‘तितली पकड़ना’ कहानी में तितली का और ‘कम बोलने वाले भाई’ कहानी में सड़क-गली के कुत्तों के झुण्ड का वर्णन भी ऐसे ही बहुत जीवंत बन पड़ा है।

सहज जीवन कैसे सारा राय की कहानियों में बहता है इसकी कई बानगियां हैं – बहुत ज़्यादा मीठी चाय को जल्दबाज़ी में ख़तम करने की कोशिश, चींटे के दीवार पर चढ़ने-उतरने में अपनी हार और जीत देखने वाला इंसानी मन, लंबे साहचर्य की वजह से लोगोँ के बीच बिना बात की बात पर होने वाली खीझ और चिढ़ वगैरह। संग्रह के अंत में लेखिका का अपनी नानी के बारे में एक मीठा-भीना सा संस्मरण भी है।

गद्य में ज़ायके की एक वजह सारा राय के गद्य की गहन ऐंद्रिकता भी है। तरह-तरह के पकवानों का ललचा देने वाला वर्णन इसका एक अहम हिस्सा है। कहानी के परिवेश, मौसम और माहौल को वो किसी इंटीमेट पेंटिंग की तरह अपने लेखन-कला के विविध रंगों से इत्मीनान और डीटेलिंग के साथ उभारती हैं।

लारा चाँदनी का आवरण चित्र और शुऐब शाहिद की आवरण सज्जा ख़ूबसूरत है। राजकमल प्रकाशन की पुस्तकों की साज-सज्जा को लेकर सतर्कता प्रशंसनीय है।

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